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कहानी- गिरगिट (Short Story- Girgit)

"ओह नो." कहकर लगभग चीखती हुई पम्मी ने अपनी हथेलियों से अपने दोनों कान दबा लिए, "आई कांट टॉलरेट एनी मोर. तुम अभी जाओ और उसे फाटक के बाहर फेंककर आओ. अगर आज पापा यहां होते और उन्हें पता चलता कि यह गंदी ज़ुबान बोलने वाला आद‌मी तुम्हारा दोस्त है, तो जानते हो क्या होता?"

खन्ना बंगले के गेट तक आया और वापस मुड़ा, लेकिन चार कदम चलने के बाद रुक गया पम्मी अब और भी नाराज़ होगी.

वह तो उसी समय भड़क उठी थी, जब किशोर ड्रॉइंगरूम में घड़घड़ाता हुआ घुसा और कालीन को रौंदता हुआ सोफे पर धम्म से बैठकर एक ठहाके के साथ बोला, "यार खन्ना, तेरा बंगला बड़ी दूर है, लेकिन है आलीशान, बगीचा तो बगीचा, यह साला ड्रॉइंगरूम भी गजब का है."

और उसी वक़्त पम्मी ड्रॉइंगरूम में आई और साला शब्द के साथ फूटती किशोर की ठहाकेदार हंसी पर इस तरह चौंक उठी जैसे उसने सोफे पर किसी मेहमान को नहीं, छत से गिरी छिपकली को देख लिया हो. पम्मी के फड़कते हुए नथुनों को देखकर खन्ना को लगा कि ड्रॉइंगरूम की चारों दीवारों पर अलग-अलग रंग अपनी कलर स्कीम से उखड़कर एकाएक शॉकिंग कंट्रास्ट बन गए. वह किशोर की बगल में बैठता-बैठता उठ गया और वातावरण को शालीन जामा पहनाते हुए बड़े तपाक से पम्मी की तरफ़ बढ़कर बोला, "डार्लिंग, मीट माई फ्रेंड, मिस्टर किशोर, किशोर यह हैं मेरी मिसेज."

किशोर ने होंठ गोल करके हल्की सीटी बजाई और कहा, "अरे वाह, बगीचा ही नहीं, बंगला ही नहीं, तुम्हारी तो यार बीवी भी कम नहीं."

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इसके पहले कि पम्मी का सफ़ेद पड़ा चेहरा ग़ुस्से में लाल हो जाता, खन्ना ने आगे बढ़कर उसकी कोहनी को छूते हुए कहा, "डार्लिंग, किशोर को हम कॉलेज में बातों का बादशाह कहा करते थे."

"बाश्शाओ, हम तो ग़ुलाम हैं, लेकिन खन्ना जैसे बकचोंच के नहीं." कहते हुए किशोर एक झटके के साथ उठा और पारसी थिएटर के अंदाज़ से झुककर आगे बोला, "हम तो ग़ुलाम हैं मलिका-ए-हुस्न के, यानी अपनी भाभी जान के."

कोहनी तनकर बहुत नुकीली हो गई और खन्ना ने अपनी हथेली को हटाकर किशोर की पीठ थपथपाते हुए फिर एक नाकामयाब कोशिश की, "डार्लिंग, यह हज़रत कॉलेज के मशहूर ड्रामा एक्टर भी रह चुके हैं. लगता है कि एक्टिंग इन्होंने आज तक नहीं छोड़ी. क्यों भाई किशोर, यह किस ड्रामे का डायलॉग रहा?"

कमरे की दीवारें किशोर के ठहाके से कांप उठीं. शेल्फ पर रखी हुई वीनस की अर्द्धनग्न मूर्ति के कटे हाथों के साथ-साथ लगा जैसे उसकी नाक भी किसी ने तराश फेंकी हो. पम्मी का चेहरा तमतमा उठा, लेकिन उस तरफ़ से बेफ़िक्र किशोर सोफे पर पसर चुका था और बोल रहा था, "भाभीजान, यह तो सही है कि मा बदौलत कॉलेज के दिनों में नाटकों के लिए कई रातें बरबाद कर चुके हैं. लेकिन असली बात खन्ना जैसे बांगडू कभी भी नहीं समझ पाए कि ये चक्कर नाटकों का नहीं, कलर नाटकों की हिरोइनों के लिए था. हाय खन्ना, तुझे याद है, वो कांता सूद, जरीना, सुषमा सिंहानिया, आरती चटर्जी... भगवान कसम, मैं तो आज भी जब उनके बारे में सोचता हूं तो लगता है मेरे घर में बीवी नहीं, एक प्लेट चावल हो, ब्वायल्ड राइस, वाह! क्या चीज़ें थीं. कोई मुगलिया नमक, कोई पंजाबी मक्खन, कोई बंगाली शहद,"

अब खन्ना की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. पम्मी आग का शोला बन चुकी थी. लेकिन उसने अपने होंठ कसकर भींच रखे थे, खन्ना ने उसकी तरफ़ मुड़कर दबे हुए स्वर में डार्लिंग के साथ कुछ कहना शुरू ही किया था कि वह अपने बॉबकट बालों को झटकती हुई ड्रॉइंगरूम से चली गई.

कमरे में चुप्पी, सांस भी नहीं ले पाई थी कि किशोर ने उठकर खन्ना के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "यार, तेरी बीवी तो मक्खन, नमक, शहद से भी कुछ ऊंची चीज़ मालूम पड़ती है यानी लाल मिर्च..."

और किशोर का ज़ोरदार ठहाका झटककर जाती हुई पम्मी से टकरा कर हिले हुए कमरे के पर्दे को उठाकर पम्मी के पीछे-पीछे उछल पड़ा. खन्ना ने हडबडाकर पर्दे से अपनी नज़रें हटाईं और किशोर का हाथ पकड़ कर उसे लगभग खींचते हुए सोफे पर ला बैठाया और फुसफुसाते हुए कहा, "यार किशोर..." लेकिन इसके आगे वह कुछ बोल नहीं पाया. ठहाके के बाद होंठ नचाकर किशोर ने एक लम्बी सीटी मारी और बड़े खुफिया अंदाज़ से पूछा, "यार खन्ना, यह तो बताओ यह तुम्हारी बीवी है?"

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"क्यों?"

"सीधी सी बात है यार, यह बंगला तुम्हारा अपना है?"

"हां."

"इसे कब बनवाया?"

"बनवाया... मतलब? किशोर यह कम्पनी की तरफ से मिला है."

"हूं, और यह सोफा, यह कालीन, ये सब?"

खन्ना हल्के से मुस्कुराकर अपनी पीठ सोफे पर आराम के साथ टिकाते हुए पैर पर पैर चढ़ाकर बोला, "यह सब कम्पनी से मिला है भाई."

"और यह बीवी, यह भी क्या फ्री फर्निश्ड बंगले के साथ-साथ..."

खन्ना की आंखें थोड़ी सी सिकुड़ गई. उसके हलक में थूक का एक कतरा आकर रुका, "व्हाट डू यू मीन?"

"चलो, मान गए कि तुम्हें फ्री फर्निश्ड बंगले के साथ बीवी नहीं मिली, तब फिर यह कौन है? मुझे तो यह तुम्हारी बीवी नहीं किसी बड़े बाप की बेटी लगती है, क्यों?" और इतना कहकर किशोर फिर अपनी ठहाकेदार हंसी में फूट पड़ा.

एकाएक खन्ना ने महसूस किया कि किशोर नाम का यह प्राणी हद दर्जे का बदतमीज है. आज से दस साल पहले कॉलेज लाइफ में जिसे वह बेतकल्लुफ़ यार समझता आया था वह तो इस कदर इंडियट शख़्स है कि जिसकी बातों को पम्मी के लिए सहन करना तो अलग रहा वह भी अभी तक कैसे गवारा करता आया, उसे आश्चर्य हुआ.

प्लाज़ा में ही वह ग़लती कर बैठा था. उसने पार्क की हुई कार को निकालकर सड़क पर मोड़ा तो ठीक सामने एक टैक्सी रुकी और किशोर उतरा, जिसे बिना किसी दिक्क़त के उसने पहचान लिया और पहचानते ही गाड़ी रोक कर बाहर निकला और बड़े तपाक के साथ उससे मिला. मिलते ही बड़े इसरार के साथ अपने साथ बंगले पर ले आया. इस शहर में आज एक मुद्दत के बाद उसे अपना एक पुराना साथी दिखाई पड़ा था.

अर्दली आया और बोला, "साबा आपका फोन,"

"एक्सक्यूज़ मी" कहकर खन्ना उठा. बेडरूम में पहुंचते ही पम्मी उस पर बिफर पड़ी, "ओ गॉड! हू इज़ दिस इडियट? मैं कहती हूं तुम ऐसे जंगली आदमी को घर पर क्यों ले आए?"

चुपचाप खड़ा हुआ खन्ना अपने को निहायत बेवकूफ़ महसूस कर रहा था. पम्मी दबी पर सख्त आवाज़ में बोल रही थी, "तुम्हें मेरी इन्सल्ट करने का और कोई रास्ता नहीं मिला कि इस घटिया किस्म के आदमी को घर पर ले आए."

खन्ना ने मरी सी आवाज़ में कहा, "पम्मी डार्लिंग, तुम समझती क्यों नहीं हो. मैं इसे कहां लेकर आया. यह शहर में मिल गया और देखते ही इसने मुझे पहचान लिया और ऐसा गले पड़ा कि मैं लाख चाहते हुए भी इसे टाल नहीं पाया. अगर मुझे पता होता तो मैं तुमसे सच कहता हूं कि इसे कभी भी अपने साथ नहीं लाता,"

"माई गॉड! कॉलेज में तुम्हारे ऐसे ही साधी थे? ऐसी वाहियात बातें मैंने आज तक नहीं सुनी. ड्रॉइंगरूम में बैठकर तुम चुपचाप देखते रहे और वह तुम्हारा दोस्त स्लैंग बकता रहा. तुम ऐसी वलगैरिटी कैसे बदर्दाश्त कर सके?"

"प्लीज़ पम्मी, तुम समझ क्यों नहीं रही हो. तुम क्या समझती हो मैं यह सब बर्दाश्त कर पा रहा हूं, लेकिन किशोर... बताओ, मैं अब क्या करू?"

"करना क्या है, गो एण्ड थ्रो हिम आउट."

"लेकिन पम्मी..."

"ओह, नो." कहकर लगभग चीखती हुई पम्मी ने अपनी हथेलियों से अपने दोनों कान दबा लिए, "आई कांट टॉलरेट एनी मोर. तुम अभी जाओ और उसे फाटक के बाहर फेंककर आओ, अगर आज पापा यहां होते और उन्हें पता चलता कि यह गंदी ज़ुबान बोलने वाला आदमी तुम्हारा दोस्त है, तो जानते हो क्या होता?"

खन्ना के गले में थूक का एक कतरा फिर आकर अटक गया. उसने टाई की नॉट पर हाथ फेरकर खंखारते हुए कहने की चेष्टा की, लेकिन कुछ कहे बिना बेडरूम से निकलकर ड्रॉइंनरूम की तरफ़ चल पड़ा.

अभी वह बीच रास्ते में ही था कि फोन की घंटी बज उठी. वह ठिठक गया. घंटी लगातार बजती रही. पम्मी फोन नहीं उठा रही थी. खन्ना पलटकर बेडरूम तक आया. लेकिन दरवाज़े पर पहुंचकर हिचकिचा गया. पहले किशोर से कह आए तब आकर यह फोन उठाएगा. वह मुड़ा तब तक पम्मी ने फोन उठा लिया था, "जी हां.. घर पर ही हैं.. कौन मिस्टर बहल?.. जी, मिस्टर किशोर बहल?.. जी हां-जी हां... अच्छा." और किशोर का नाम सुनते ही खन्ना घबराकर ड्रॉइंगरूम की तरफ़ चल पड़ा.

आया तो देखा सोफा खाली था. किशोर वहां नहीं था. उसने पोर्टिकों में आकर देखा तो बगीचे में भी कहीं किशोर दिखाई नहीं पड़ा. उसने एक ठंडी सांस ली. थैंक्स गॉड, तभी हवा की तेजी के साथ पम्मी उसके पास आई और आते ही बोली, "डार्लिंग, मिस्टर किशोर कहां है?"

और इसके पहले कि खन्ना उसको देता कि वह गंवार किस्म का आदमी जा चुका है, पम्मी ने लगभग हांफती हुई आवाज़ में कहा, "कहां है मिस्टर किशोर बहल? अभी-अभी साहनी साहब का फोन आया था. अपना किशोर उनका कजन है. पता नहीं उन्हें कैसे मालूम हो गया कि वह आज शाम हम लोगों के साथ बिता रहे हैं. डार्लिंग, मैंने तो कह दिया कि मिस्टर बहल इतने दिनों के बाद मिले हैं. इनके बचपन के दोस्त हैं, तो बिना डिनर लिए हम लोग उन्हें कैसे जाने दे सकते हैं?"

"वह तो चला गया!"

"चले गए. चले गए, कहां?" पम्मी जैसे बहुत ज़्यादा घबरा गई.

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"मैं जब ड्रॉइंगरूम में आया तो देखा वह वहां नहीं था. बगीचे में देखने आया कि उसे फाटक से..."

"तुम भी कैसी बातें करते हो... मिस्टर साहनी ने फोन किया था और जानते हो कह रहे थे कि आप लोग कल शाम को चाय पर आप."

"लेकिन डार्लिंग वो..."

"ओफ्फो! तुम यहां खड़े-खड़े क्या कर रहे हो, गेट के बाहर जाकर देखते क्यों नहीं? मैं अभी अर्दली को भी दौड़ाती हूं." कहती हुई पम्मी अन्दर चली गई और वह तेजी के साथ गेट पर आया. गेट खोलकर बाहर निकला, लेकिन काफ़ी दूर तक उसे सड़क पर कोई दिखाई नहीं पड़ा. वह वापस मुड़ा, लेकिन चार कदम चलकर ठिठक गया.

अब पम्मी उसकी इस ग़लती पर कितना नाराज़ होगी, इसका अनुमान करते हुए उसने महसूस किया कि उसके गले में थूक का एक कतरा आकर अटक गया. उसने मरे हुए हाथों से टाई की नॉट आहिस्ते-आहिस्ते खोलनी शुरू कर दी.

- जोतिन्दर सिंह सोहत

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