“तुम्हारा रूखापन, मुझे न समझना यह मुझे व्यथित कर जाता था, पर उदय के रूप में तो तुम मुझे ऐसे बिल्कुल नहीं लगे. असल में रिश्ता चाहे जो हो, प्रयास अगर दोनों तरफ से न हो तो वह कायम नहीं रह पाता है, ख़ासकर पति-पत्नी का.” रेवती की आंखें गीली हो गई थीं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि ज़िंदगी उसके साथ कैसा खेल खेल रही थी. दुबारा ज़िंदगी उसे वहीं ले आई थी, जहां उसने पीछे पलटकर न देखने का फ़ैसला किया था.
“तंग आ गया हूं तुम्हारी रोज़-रोज़ की चिक-चिक से. जब देखो ताने देती रहती हो या किसी न किसी बात पर लड़ती रहती हो. कुछ कहो तो मुंह फुलाकर बैठ जाती हो या खाना नहीं बनाती हो. हद होती है हर बात की.” पंकज ग़ुस्से से फ्लावर वाज़ पटकते हुए चिल्लाए.
“तो मैं ही कौन-सा ख़ुश हूं तुमसे. जब से शादी हुई है तुम्हारी कुंठाओं और हीनभावना को झेल रही हूं. तुम से ज़्यादा पढ़ी-लिखी हूं और ज़्यादा कमाती हूं तो इसमें मेरा क्या दोष है. शादी से पहले तो ये सब तुम्हें मेरी क्वालीफिकेशन लगती थी और अब तुम्हें इन्हीं बातों से कॉम्पलेक्स होता है. तुम्हारा फॉल्स ईगो हमारे रिश्ते को कभी पनपने नहीं देगा.” रेवती भी उतनी ही तीव्रता से चिल्लाई. हालांकि उसकी आंखें नम हो गई थीं. वह उस दिन को कोस रही थी जब मम्मी-पापा के कहने पर उसने पंकज से शादी करने की स्वीकृति दी थी. वह जानती थी कि उसका ज़्यादा क्वालीफाई होना और ज़्यादा कमाना दोनों ही बातें एक दिन पंकज के मेल ईगो को हर्ट करेंगी और इससे उनके वैवाहिक रिश्ते पर आंच आ सकती है. पर पापा ने उसे समझाया था कि पंकज बहुत ही सलुझा हुआ और मैच्योर इंसान है. ऐसा कभी नहीं होगा.
खाक मैच्योर और सुलझा हुआ इंसान है, रेवती ने सोचा.
“ख़ुश नहीं हो, तो क्यों रह रही हो मेरे साथ, किसने तुम्हें ज़बर्दस्ती रोका हुआ है. तुम्हारे जैसी बददिमाग़ औरत के साथ रहना भी कौन चाहता है. जब से शादी हुई है मैं ही कौन-सा ख़ुश हूं. हर बात में अपनी चलाती हो. ग़ुस्सा तो हमेशा नाक पर रखा रहता है. मेरे घरवालों से ही कौन-सा बहुत अच्छे से पेश आती हो.” पंकज बोलते ही जा रहे थे. वैसे इस तरह की लड़ाई होना कोई नई बात नहीं थी. शादी के तीन साल हो गए थे और हर रोज़ ही किसी न किसी बात पर उनकी बहस या लड़ाई हो जाती थी. ऐसा लगता था मानो एक-दूसरे के लिए बने ही नहीं हैं.
“अपने घरवालों की बात मत करो, एकदम जाहिल लोग हैं, हर बात पर टोकते हैं. नौकरी करती हूं तो आने में देर भी हो जाती है. बस, तुम्हारी मां के सवालों की बौछार शुरू हो जाती है. इतने ही दकियानूसी हो तो नौकरीवाली बहू लानी ही नहीं चाहिए थी, पर पैसों का लालची तो पूरा परिवार है.” यह सुन पंकज का हाथ रेवती पर उठने वाला था कि उसका रौद्र रूप देख वो रुक गए.
“ख़बरदार जो मेरे ऊपर हाथ उठाया, डोमेस्टिक वॉयलेंस का केस कर दूंगी.”
“बस बहुत हुआ, आज तो मैं फ़ैसला करके ही रहूंगा. अच्छा यही होगा कि हम म्यूचुअली अलग हो जाएं.” दोनों के घरवालों ने बहुत समझाया कि डिवोर्स लेना समाधान नहीं है, मिल बैठकर बात कर लेनी चाहिए, पर उन दोनों का यही कहना था कि उनके संबंधों में इतनी कड़वाहट आ चुकी है कि अब साथ रहना मुमक़िन नहीं है.
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अलग हो जाने के बाद बीती यादों से निकलना आसान नहीं होता. कड़वाहट के साथ-साथ कुछ प्यार भरे पल भी दोनों को टीस देते हैं, लेकिन वक़्त के साथ नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करना भी ज़रूरी होता है, वरना इंसान के लिए ख़ुद को समेटना मुश्किल हो जाता है.
रेवती को उसकी फ्रेंड्स ने आइडिया दिया कि वह अपने नाम का फेसबुक अकाउंट बंद कर नई पहचान से अकाउंट बना ले ताकि पंकज उसे किसी भी तरह से तंग न कर सके. उसने अपनी फ्रेंड लिस्ट से भी उसे ब्लॉक कर दिया.
रेवती चाहती थी कि वह उस शहर को ही छोड़ दे, पर चाहकर भी वह अपना ट्रांसफर दूसरे शहर में नहीं करवा पाई. एक साल हो गया था उन्हें एक-दूसरे से अलग हुए और रेवती को महसूस हो रहा था कि उसे जैसे उसका प्यार मिल गया है. फेसबुक पर ही दोस्ती हुई थी उसकी उदय से. उससे चैट करते हुए उसे हमेशा लगता कि वही उसके लिए परफेक्ट साथी है, कितनी अच्छी सोच थी उसकी.
“तुम कितनी टैलेंटेड हो और इतनी बड़ी पोस्ट पर होने के बावजूद एकदम डाउन टु अर्थ हो. मुझे ख़ुशी है कि तुम मेरी फ्रेंड बनी हो. अपनी फोटो भी अपलोड करो ना.”
उदय के इस मैसेज के जवाब में रेवती, जो उससे मान्या बनकर चैट करती थी, ने लिखा, “थैंक यू फॉर द कॉप्लीमेंट. मुझे भी ख़ुशी है कि तुम मेरे फ्रेंड हो. फोटो अपलोड करने का अभी टाइम नहीं आया है. थोड़ा इंतज़ार करो. तुमने भी तो अपलोड नहीं की है फोटो.”
जब भी समय मिलता दोनों फेसबुक पर चैट करते. एक-दूसरे की पसंद-नापसंद, आदतें और शौक़, दोनों अच्छी तरह से जान गए. यहां तक कि एक-दूसरे की राय भी वे लेने लगे थे.
“मुझे तो लगता है मान्या कि तुम्हारे पास हर समस्या का समाधान होता है, एकदम परफेक्ट सोल्यूशन देती हो.” उदय के कमेंट पर वह स्माइली भेज देती.
वह अक्सर सोचती कि कितना फ़र्क़ है पंकज और उदय की सोच में. पंकज को लगता था कि वह केवल समस्या पैदा करना जानती है, सोल्यूशन ढूंढ़ना नहीं और उदय है कि उसे उसकी हर बात अच्छी लगती है. पंकज ने कभी उसकी तारीफ़ तक नहीं की थी. हमेशा उसमें कमियां ही निकालता रहता था. शादी के बाद उसे केवल इसी में इंटरेस्ट रहा कि वह कितना कमाती है. महीना शुरू होते ही वह उसका वेतन मांगना शुरू कर देता था. वह पंकज से प्यार चाहती थी, पर शायद उसे प्यार का मतलब तक पता नहीं था. न कभी हंसता था, न ही ख़ुश रहता था. उसके लिए तो खड़ूस शब्द ही एकदम उपयुक्त है, पर वह क्यों सोच रही है उसके बारे में. पंकज न सही पर उसने तो उसके क़रीब जाने की बहुत कोशिश की थी. उसे सच्चे दिल से अपनाना चाहा, पर उसने तो जैसे अपने चारों ओर मोटी-मोटी दीवारें खड़ी कर रखी थीं. पास ही नहीं आने देता था उसे. उसकी जिस काबीलियत की पंकज ने हमेशा अवहेलना की, उदय को वही पसंद है और शायद इसलिए उनके बीच की घनिष्ठता बढ़ती जा रही है.
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हालांकि उदय से चैट करते समय अक्सर उसे पंकज की याद आ जाती है और वह सोचती कि काश! पंकज भी ऐसा होता तो उसकी ज़िंदगी यूं न बिखरती. रिश्ता बेशक टूट क्यों न गया हो, लेकिन पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा होता है कि अलग होने के बावजूद यादें लिपटी ही रहती हैं, चाहे वे सुखद हों या दुखद. रेवती भी पंकज को याद कर दुखी हो जाया करती थी. आख़िर कहां चूक हो गई थी उससे. इसीलिए उदय के बहुत बार कहने पर भी वह उससे मिलने को तैयार नहीं होती थी. नया रिश्ता बनाने में डर लगता था उसे. फिर उसकी सच्चाई जानने के बाद भी क्या उदय उससे वास्ता रखना चाहेगा, यह भय भी उसे उससे मिलने से रोकता. डिवोर्सी होने का ठप्पा जो उसके ऊपर लगा था, वह उसकी आनेवाली ज़िंदगी पर अनेक सवाल उठा सकता था. समाज तो औरत को ही दोषी मानता है.
“तू बहुत प्रीज्यूडिस हो रही है रेवती. तूने अपनी तरफ़ से बहुत कोशिश की थी, पर पंकज तुझे समझ नहीं पाया या फिर जो भी कारण हो, तुम दोनों की नहीं बनी. अब इस वजह से आने वाली ख़ुशियों के लिए दरवाज़े बंद कर देना बेवकूफी होगी. मेरी राय में तुझे एक बार उदय से मिल लेना चाहिए. उसे सच बता दे और फिर जो होगा देखा जाएगा. उसे अंधेरे में रखना भी ठीक नहीं है. अगर वह सचमुच तुझे पसंद करने लगा है तो उसे इस संबंध को आगे बढ़ाने में कोई आपत्ति नहीं होगी.” रेवती की कलीग संजना ने उसे समझाया.
धड़कते दिल के साथ रेवती ने उदय के साथ मिलने का टाइम फिक्स किया. अपने पसंदीदा रेस्तरां में शाम पांच बजे जब वह उससे मिलने पहुंची तो उसे एक झटका लगा. पंकज भी रेस्तरां में प्रवेश कर रहे थे. वह उनसे नज़रें बचाकर एक कोने में जाकर बैठ गई, पर आंखें थीं कि पंकज पर से हटने का नाम नहीं ले रही थीं.
कितना बदलाव आ गया था पंकज में. दुबले भी हो गए थे. लगता था उसके जाने के बाद पंकज ने अपना ख़्याल रखना ही छोड़ दिया था. वही तो उनकी सारी बातों का ख़्याल रखती थी. बहुत देर इंतज़ार करने के बाद भी जब उदय नहीं आया तो उसने फेसबुक पर उसे मैसेज भेजा, “कब आओगे, बहुत देर से वेट कर रही हूं.”
उसका तुरंत रिप्लाई आया, “कब से बैठा हूं रेस्तरां में, तुम कहां हो?”
“सबसे आख़िर में कोने की सीट पर बैठी हूं. नीले रंग का सूट पहना है.”
पंकज ने जैसे ही मुड़कर देखा तो रेवती की जैसे सांसें ही रुक गईं. नहीं, यह नहीं हो सकता. पंकज उदय नहीं हो सकता.
“ऐसा होना कैसे संभव है रेवती… तुम मान्या हो?” पंकज की आवाज में थरथराहट थी.
“और तुम उदय कैसे हो सकते हो. वह तो कितना मैच्योर प्रतीत हो रहा था. यह तो सरासर धोखा है.” रेवती जाने के लिए उठ खड़ी हुई तो पंकज ने उसे रोका.
“तुम्हारे जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं कितना ग़लत था. असल में मुझे तुम्हारे जैसी ही लाइफ पार्टनर चाहिए थी, पर तब मैं तुम्हारी कद्र नहीं कर सका, पर तुम्हें मुझमें क्या अच्छा लगा जो मुझे फ्रेंड बना लिया. मेरी सारी आदतें तो तुम्हें बुरी लगती थीं.”
“तुम्हारा रूखापन, मुझे न समझना यह मुझे व्यथित कर जाता था, पर उदय के रूप में तो तुम मुझे ऐसे बिल्कुल नहीं लगे. असल में रिश्ता चाहे जो हो, प्रयास अगर दोनों तरफ से न हो तो वह कायम नहीं रह पाता है, ख़ासकर पति-पत्नी का.” रेवती की आंखें गीली हो गई थीं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि ज़िंदगी उसके साथ कैसा खेल खेल रही थी. दुबारा ज़िंदगी उसे वहीं ले आई थी, जहां उसने पीछे पलटकर न देखने का फ़ैसला किया था.
“असल में हम दोनों बने ही एक-दूसरे के लिए हैं, पर अपने-अपने अहम् के चलते हम अपने ऊपर एक आवरण डाले जीते रहे और फेसबुक पर जब हम अपने असली रूप में पारदर्शी हुए तो हम एक-दूसरे को पसंद करने लगे. मुझे लगता है जब वक़्त ने हमें दुबारा मिलाया है, तो हमें दुबारा एक-दूसरे को फिर से मौक़ा देना चाहिए.” पंकज बोले.
“क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि इस बार हमारा फेसबुक वाला प्यार सफल हो पाएगा?” रेवती मुस्कुराई.
“पुराने रिश्ते की ख़ातिर इस बंदे को एक मौक़ा दे दो. वादा करता हूं, इस बार शिकायत का कोई मौक़ा नहीं दूंगा.”
रेवती ने तुरंत फेसबुक पर एक स्माइली के साथ मैसेज भेजा, “मुझे मंज़ूर है.”
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