अप्रिय ख़्यालों के बोझ तले मैं छटपटा उठा कि तभी हंसती-मुस्कुराती सोलह श्रृंगार किए हुए मेघाली मेरे सामने आई. जिस मेघाली के सोलह श्रृंगार किए रूप पर मैं दीवाना हुआ जाता था, संदेह की आग में आज उसका वही अप्रतिम रूप मुझे चुभने लगा था.
मैं आज सुबह से बेहद व्यस्त हूं. एक फाइल निबटा कर मैंने साइलेंट मोड पर रखा अपना मोबाइल चेक किया. पत्नी मेघाली के बीस-पच्चीस व्हाट्सएप मैसेज आ चुके थे, ‘तीन बज चुके हैं. कितनी देर में आ रहे हो?’ तभी ख़्याल आया, आज तो उसका पहला करवा चौथ है. वह भूखी-प्यासी मेरा इंतज़ार कर रही होगी.
मैंने पेंडिंग फाइल फुर्ती से निपटाई और घर के लिए रवाना हो गया. घर पहुंच कर दरवाज़े पर पहली दस्तक के साथ ही मेघाली ने दरवाज़ा खोला. वह मोबाइल पर किसी से बात कर रही थी.
“किससे बात कर रही हो?”, मैंने सवालिया निगाहों से पत्नी की ओर देखा.
“कुणाल! मेरे हस्बैंड से बात करो.”
कॉल पर ही मेघाली ने कुणाल से मेरा परिचय कराया, “कुणाल, यह मेरे हस्बैंड, परिन.”
“हाई कुणाल! कैसे हो,” मैंने नज़र भर के मेघाली के इस फ्रेंड को देखा जिसका ज़िक्र उसने अपनी लगभग सालभर की शादीशुदा ज़िंदगी में आज तक नहीं किया. ख़ासा हैंडसम बंदा लगा मुझे. हंसा तो लगा जैसे मुंह से फूल झड़ रहे हों. वाकई में ज़बरदस्त पर्सनैलिटी थी.
तभी मन में हमेशा की तरह संशय का कांटा चुभने लगा, 'कहीं यह मेघा का पुराना बॉयफ्रेंड तो नहीं? इतनी घुलमिल कर बात कर रही है.'
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मैंने कुणाल से अपनी गपशप को विराम दिया और सोफे पर अधलेटा हो मेघाली की प्रतीक्षा करने लगा, लेकिन मेघाली अभी तक अपने फ्रेंड के साथ बातचीत में व्यस्त थी. मन में खीज उठी. कहां तो पच्चीस-पच्चीस मैसेज भेज दिए, ‘जल्दी घर आओ और अब मैडम को फ़ुर्सत ही नहीं है अपने फ्रेंड से बातचीत करने से.’
आधा घंटा होने आया. प्यास से मेरा गला सूखने लगा, लेकिन एक ग्लास पानी लाने तक की इच्छा न थी.
इस बार बेहद झुंझलाहट से मैंने तनिक तेज़ स्वर में आवाज़ ऊंची की, “मेघाली, भई अब बस भी करो.”
तभी मेघाली के चहकते स्वर कानों में पड़े, “कुणाल, फोन करते रहना और अपनी ख़ैरियत देते रहना. सैटरडे-संडे मैं पूरी तरह से फ्री रहती हूं. बेझिझक फोन करना. चलो, सी यू, बाय.” लेकिन मेघाली का अंतिम वाक्य मन में शक की चिंगारी जला चुका था और मैं आशंका के झूले में पेंगे लगाने लगा.
मेघाली ने मुझे आज तक इस कुणाल के बारे में क्यों कभी नहीं बताया?
अंतस की माटी में फूटा संदेह का बिरवा अब वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका था. 'हो ना हो यह मेघाली का बॉयफ्रेंड ही है.'
तभी हाथ में मोबाइल झुलाते मेघाली मेरे पास आई और मनमोहक मुस्कान के साथ इतनी देर तक कुणाल के साथ बात करने की कैफ़ियत देने लगी, “परिन, किसी ज़माने में यह मेरा बेस्ट फ्रेंड हुआ करता था. मेरी शादी से कुछ दिनों पहले ही यह यूएसए चला गया और मैं अपनी जॉब और तुम्हारे साथ बिज़ी हो गई. ऑफिस में कैसा रहा?” लेकिन मैं तो शायद वहां होकर भी नहीं था.
शक की चिंगारी शोला बनकर मेरा सुख-चैन भस्म किए जा रही थी.
अतीत की परछाइयां सुनहरे उजास भरे वर्तमान को अपनी गिरफ्त में लेने लगी थीं.
अप्रिय ख़्यालों के बोझ तले मैं छटपटा उठा कि तभी हंसती-मुस्कुराती सोलह श्रृंगार किए हुए मेघाली मेरे सामने आई. जिस मेघाली के सोलह श्रृंगार किए रूप पर मैं दीवाना हुआ जाता था, संदेह की आग में आज उसका वही अप्रतिम रूप मुझे चुभने लगा था.
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मेरा उतरा हुआ व्यग्र चेहरा देख मेघाली ने मेरे कंधों पर झुकते हुए पूछा, “क्या हुआ जान? कुछ अपसेट लग रहे हो. ऑफिस में कुछ हुआ?”
“कुछ नहीं… कुछ नहीं… आज सुबह से बहुत व्यस्तता रही. थोड़ी देर सो लूंगा, तो ठीक हो जाऊंगा.”
मैं कपड़े बदल फ्रेश हो बिस्तर पर लेट गया. मन एक बार फिर से मथने लगा. कॉलेज के ज़माने का नासूर एक बार फिर से रिसने लगा.
इंजीनियरिंग कॉलेज में मैं सुहानी के संपर्क में आया. वक़्त के साथ हमारी दोस्ती प्रगाढ़ होने लगी और मैं उसे लेकर भविष्य के ख़्वाब बुनने लगा. लेकिन एक दिन मेरी उम्मीदों का गुलशन उजड़ गया, जब उसने बताया कि वह मुझसे पहले एक रिलेशानशिप में रह चुकी है. मैंने उससे दोस्ती तोड़ दी. मैं बेहद परेशान रहने लगा.
इंजीनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल में रहते हुए जब भी अपने इर्दगिर्द देखता, चारों ओर हर लड़की को किसी लड़के के साथ अफेयर में देखता. शायद ही कोई होती, जो किसी रिश्ते में कमिटेड न होती. घर में इतनी दूर हर लड़की सपोर्ट के लिए अपनी पसंद के लड़के को बॉयफ्रेंड बना ही लेती.
यह सब देख-सुन मेरा आदर्शवादी मन बेहद व्यथित होता. मन में रह-रहकर बस यही प्रश्न उठता, क्या मुझे कभी भी कोई सीधी-सच्ची ऐसी लड़की मिलेगी, जिसका कोई पास्ट ना हो… जितना यह सोचता मेरे ख़्यालों के दरिया में उतनी ही शिद्दत से तूफ़ान आता.
यही सब सोचते-सोचते मैं डिप्रेशन में रहने लगा. जब भी किसी लड़की को किसी लड़के के साथ हंसी-ख़ुशी चहकते हुए देखता, मन में बस यही विचार आता, ‘यह लड़की ठीक नहीं. न जाने कितनों हूं जुड़ी होगी.. अगर मेरे शादी भी ऐसी ही किसी लड़की से हो गई, तो क्या होगा?' यह अप्रिय सोच जल्दी ही मन की गांठ बन गई, जो वक़्त के साथ उलझती ही गई.
तभी उन्हीं दिनों मुझे अनन्या जैसी समझदार लड़की दोस्त के रूप में मिली. बेहद बिंदास और बेफिक्र लड़की थी, पर सोच से बेहद गंभीर और संजीदा. वक़्त के साथ हमारी दोस्ती परवान चढ़ती जा रही थी.
मुझे आज तक याद है मेरे अवसाद के दिनों में उसने डिप्रेशन के साये से मुझे बाहर निकालने में काफ़ी मदद की थी. वो अक्सर मुझसे कहती, "जिस चीज़ पर तुम्हारा बस ना हो, उसे लेकर परेशान होना निहायत ही बेवकूफ़ी है. जो अभी तक घटा नहीं, उसे लेकर चिंता करना भी निरी बेवकूफ़ी है."
लेकिन मेरे वहम का मर्ज बढ़ता ही जा रहा था. इसी चिंता में मेरा वज़न कम होता जा रहा था. भूख कम हो गई थी. रात-रातभर करवटें बदलता रहता.
मेरा यह हाल देख अनन्या मुझे एक बेहद अनुभवी साइकिएट्रिस्ट के पास ले गई.
उस साइकिएट्रिस्ट ने मेरे कानों में हेल्दी लाइफस्टाइल जीने का गुरुमंत्र फूंका. मैं धीरे-धीरे अपने डिप्रेशन से बाहर आने लगा.
योग, मेडिटेशन, प्राणायाम, सुकून भरे संगीत से मेरा अशांत चित्त बहुत हद तक शांत हुआ और धीमे-धीमे मुझे अपने बेमानी शक के कीड़े से निजात मिली. आज एक मुद्दत बाद वही डिप्रेशन मुझे फिर से अपने चंगुल में फंसाने लगा था.
मेघाली किचन में व्यस्त हो गई और मैंने घर के बाहर बगीचे में चहलकदमी करते हुए अनन्या को वीडियो कॉल लगाया और उससे अपनी परेशानी शेयर की.
पिछली बार की तरह पहले तो उसने मुझे ज़ोर की डांट पिलाई और फिर अपना मंत्र एक बार फिर से मेरे कानों में दोहराया, “ज़िंदगी तब शुरू होती है जब आपका जीवनसाथी आपकी ज़िंदगी में आता है. उसके अतीत से आपको कोई मतलब नहीं होना चाहिए.”
उसके इस एक कथन ने मुझमें नूतन प्राणों का संचार कर दिया. उसके बाद उसने और भी कई बातें समझाई. जितना अनन्या के कहे के बारे में सोचता, उतनी ही शिद्दत से मेरी दुविधा के बादल छंटने लगे.
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सही तो कहा अनन्या ने. मेघाली के साथ मेरी एक नई ज़िंदगी का आगाज़ ही तो हुआ है. उमंग से लबरेज़ हो मैं उठ बैठा.
सोलह श्रृंगार में सजी-धजी मेघाली का दमकता रूप-सौंदर्य देख अंतस का अंधेरा छंटने लगा. नई उम्मीदों का उजास अंतर्मन में उतर आया. छत पर एक चांद बदलियों की ओट से झांक रहा था और एक चांद मेरे पहलू में था.
हसरतों का दरिया बहने लगा और मैं गुनगुना उठा, "एक रात में दो-दो चांद खिले…"
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