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कहानी- दिवाली का उपहार (Short Story- Diwali Ka Uphaar)

''मुझे पटाखे नहीं चाहिए. जब आदित्य भैया पटाखे छुड़ाते हैं, तो मैं उन्हें देखकर ही ख़ुश हो लेता हूं. और वैसे भी ये पटाखे तो पल भर के आनंद के लिए हैं. मैंने यह पढ़ा भी है कि इनसे पर्यावरण को भी बहुत नुक़सान पहुंचता है, इसलिए मुझे पटाखे नहीं चाहिए.''

दिवाली को अभी चार दिन शेष थे, पर शहर में आतिशबाज़ी तो दशहरे से ही होनी शुरू हो गई थीं. यहां नन्दू लगातार पिछले आधे घंटे से मालिक के बेटे आदित्य को भी पटाखे छुड़ाते देख रहा था. कभी वह अनार जलाता, तो कभी रॉकेट. नन्दू उसकी आतिशबाज़ी देखकर उछल-उछलकर ताली बजाता, तो मालिक उसे दया भाव से देख लेते.
नन्दू के पिता रामकिशन, आदित्य के यहां‌ सालों से काम करते थे. आदित्य के पिता हर दिवाली नन्दू और उसके पिता को कुछ न कुछ विशेष उपहार ज़रूर देते थे. आज जब नन्दू के पिता काम ख़त्म करके घर को जाने लगे, तो मालिक बोले, ''भाई रामकिशन, ये लो तुम्हारे महीने के पैसे और साथ ही कुछ अतिरिक्त पैसे भी रख लो, इस दिवाली पर मैं तुम्हारे लिए कोई उपहार नहीं लाया. इस बार तुम अपनी ज़रूरत के हिसाब से अपने मन का समान ले लेना."


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''जी मालिक." कहता हुआ रामकिशन अपने बेटे नन्दू के साथ घर चलने को हुआ, तो मालिक ने उसके बेटे नन्दू को रोकते हुए कहा, ''रामकिशन तुम घर जाओ, नन्दू को उसके मन का कुछ दिलाकर हम उसे बाद में घर छोड़ देगें.'' तभी नन्दू के पिता हामी भरते हुए वहां से चले गए.
कुछ देर बाद मालिक अपने बेटे के साथ नन्दू को लेकर कार से चल दिए. चलते-चलते उन्होंने पटाखों की दुकान के बाहर कार रोकी और कुछ देर में नन्दू को अपने बेटे के साथ पटाखों की दुकान के सामने खड़ा करते हुए बोले, ''अब तुम दोनों दिल खुलकर पटाखे ख़रीद लो और नन्दू तुम बिल्कुल निःसंकोच होकर पटाखों की ख़रीददारी करो, इस दिवाली यही तुम्हारा उपहार है.''
तभी मालिक के बेटे आदित्य ने पटाखों से एक बड़ा सा थैला भर लिया. पर नन्दू ने कुछ भी नहीं ख़रीदा. उसके कुछ न ख़रीदने का कारण जब मालिक ने पूछा, तो नन्दू मासूमियत से बोला, ''मुझे पटाखे नहीं चाहिए. जब आदित्य भैया पटाखे छुड़ाते हैं, तो मैं उन्हें देखकर ही ख़ुश हो लेता हूं. और वैसे भी ये पटाखे तो पल भर के आनंद के लिए हैं. मैंने यह पढ़ा भी है कि इनसे पर्यावरण को भी बहुत नुक़सान पहुंचता है, इसलिए मुझे पटाखे नहीं चाहिए.''
 मालिक, ''नन्दू, तो तुम्हें क्या चाहिए बेटा!''
''एपीजी अब्दुल कलामजी की लिखी किताब 'अग्नि की उड़ान' उसे ख़रीदने का मेरा बड़ा मन है. मेरे पास कुछ पैसे हैं, बाबा थोड़ा और देगें तो मैं उस किताब को ख़रीद लूंगा.''


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मालिक कुछ कहते इसके पहले ही आदित्य ने अपने थैले की पटाखे कम कराते हुए कहा, ''पापा, इस दिवाली मैं थोड़े कम पटाखे छुड़ा लूंगा. आप मेरे पटाखे से बचे हुए पैसे नन्दू को दे दो, क्योंकि पढ़ी हुई किताब का ज्ञान पटाखों की तरह क्षणिक आनन्द देनेवाला नहीं होगा.''
मालिक की आंखें तरल हो गईं और वे वहां से सीधे नन्दू को बुक स्टॉल ले गए, उसे उसके मन का दिवाली उपहार दिलाने के लिए.

writer poorti vaibhav khare
पूर्ति खरे

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Photo Courtesy: Freepik

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