"बलजीत, नेहा मेरे लिए बहुत ख़ास है. वह आम महिलाओं की तरह चूल्हा-चौका संभालने या बच्चे पैदा करने के लिए नहीं बनी है. भगवान ने उसे किसी विशिष्ट प्रयोजन हेतु इस दुनिया में भेजा है. अपने काम के प्रति उसका समर्पण ऐसा है कि बड़े-बड़े प्रोजेक्ट वह डेडलाइन तय कर चुटकियों में तैयार कर लेती है. पर बेचारी को इसकी क़ीमत भी चुकानी पड़ रही है…"
गाड़ी ने स्पीड पकड़ी तो पूजा और नेहा की बातों ने भी स्पीड पकड़ ली. दोनों पिछले चार दिनों में स्वाति की शादी में की मस्ती के एक-एक पल को फिर से जीने लगीं. तभी नेहा के मोबाइल पर आए मैसेज ने उसके मस्ती भरे मूड पर विराम लगा दिया.
"क्या हुआ? सब ठीक तो है?" पूजा ने पूछा.
"हां बिल्कुल. बॉस ने कुछ काम भेजा है, देखती हूं." नेहा लैपटॉप खोलकर बैठ गई. तो पूजा भी आसपास के यात्रियों को देखने लगी. सामनेवाली सीट पर कोने में बैठी एक महिला को लगातार अपनी ओर ताकते देख पूजा थोड़ा असहज हो उठी. पर पूजा से नज़रें मिलते ही वह महिला मुस्कुराते हुए उठी और पूजा के बगल में आकर बैठ गई. नेहा सहित अन्य सहयात्रियों को मजबूरन उसके लिए जगह बनानी पड़ी.
"आप तारिणी की क्लासटीचर हैं न?" बैठते ही उसने सवाल दाग दिया.
"तारिणी? ओह हां. मेरी ही क्लास में है. आप उसकी मदर?"
"हां ठीक पहचाना आपने." वह उत्साहित होकर पूजा के और पास खिसक ली.
"पैरेंट्स मीटिंग में मिले थे हम आपसे." उसका देसी लहज़ा सुन कुछ सहयात्री मंद-मंद मुस्कुराने लगे थे. पर पूजा अप्रभावित बनी रही. स्कूल पैरेन्ट्स मीटिंग में सभी तरह के अभिभावको से मिलते-मिलते वह इन सबकी अभ्यस्त हो चुकी थी.
"हम जानते हैं वो पढ़ाई में ज़्यादा अच्छी नहीं है, पर फिर भी हम चाहते हैं कि वो ज़िंदगी में कुछ बन जाए… डॉक्टर, टीचर, वकील, कुछ भी… बस कैसे भी हो, अपने पैरों पर खड़ी हो जाए. हम भी शादी के बाद ही बी. ए, एम. ए. सब किया है और अब बी. एड कर रहे हैं."
"ओह वाह! बहुत अच्छे!" पूजा ने प्रोत्साहित किया.
"पर उसका ध्यान दूजी चीज़ों में ज़्यादा है. उसको अच्छा खाने-पहनने का शौक है. सिनेमा देखना पसंद है. अपनी ओर से मैं उस पर पूरी नज़र रखे हूं. पर आप से भी थोड़ी उम्मीद रखती हूं… वो क्या हैं कि…" वह महिला पूजा को अपनी दर्द भरी दास्तां सुनाने लग गई थी. नेहा ने अपना पूरा ध्यान लैपटॉप पर केन्द्रित कर लिया था. कुछ अन्य सहयात्री भी उकताकर आपस में बतियाने लगे थे. पर पूजा सहित एक-दो और सहयात्री उस महिला की आपबीती ध्यान से सुनने लगे.
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नेहा का काम समाप्त हुआ तब तक दोनों सहेलियों का स्टेशन आने में थोड़ा ही वक़्त बचा था. वह महिला शायद अपनी आपबीती सुना चुकी थी, क्योंकि पूजा उसे ढांढ़स बंधा रही थी कि उसकी बेटी अपनी मां से सीख लेकर अवश्य कुछ बनकर दिखाएगी. वह महिला अपनी सीट पर लौट गई तो नेहा अपनी उत्सुकता नहीं रोक सकी.
"कैसी है इसकी बेटी?"
"क्लास की सबसे डफर स्टूडेंट है. पास होने के भी लाले पड़ रहे हैं." पूजा धीरे से उसके कान में फुसफुसाई.
"तो फिर तुमने उससे खरी-खरी बात बोली क्यों नहीं कि वह अपनी बेटी से बेकार ही उम्मीद न लगाए?"
"तुमने शायद गौर नहीं किया कि उसकी ज़िंदगी कितनी संघर्षपूर्ण रही है. कितनी उम्मीदों से वह अपनी उस इकलौती संतान को पाल रही है. कितनी उम्मीद से वह मेरे पास आई थी. क्या वह अपनी बेटी और उसके कैलिबर को नहीं जानती? मुझसे बेहतर जानती है. पर फिर भी उसने उम्मीद नहीं छोड़ी है. निरंतर प्रयत्नरत है. तो मैं उसकी उम्मीदें तोड़ने वाली कौन होती हूं? और हो सकता है कल को ये मां-बेटी मुझे ही ग़लत सिद्ध कर दें. बल्कि इस महिला का जीवट देखकर तो मैं चाहती हूं कि वे मुझे ग़लत सिद्ध करें. नेहा, सामनेवाला जब दिल से सवाल कर रहा हो तो उसे दिमाग़ से जवाब देना मेरी नज़र में तो अक्लमंदी नहीं है." पूजा की बातों ने नेहा को गहराई तक प्रभावित किया था. विशेषकर उसके कहे अंतिम वाक्य ने तो नेहा को आत्मविश्लेषण के लिए मजबूर कर दिया था. अभी चार दिन पहले की ही तो बात है. शादी में जाने की तैयारी निबटाकर वह लैपटॉप पर प्रोजेक्ट का काम समाप्त कर लेने के इरादे से बैठी ही थी कि नहाकर बेहद रोमांटिक मूड में कमरे में घुसे विदित ने उसे बांहों में भर लिया था.
"इतने दिनों के लिए दूर जा रही हो. एडवांस में भरपाई करना तो बनता है जानू."
नेहा झटके से दूर खिसक गई थी.
"नो विदित प्लीज़! चार दिन शादी में कुछ काम नहीं हो पाएगा. इसलिए मैंने पहले से ही इस प्रोजेक्ट के लिए आज की डेडलाइन फिक्स कर दी थी. चाहे रात भर बैठना पड़े मुझे इसे आज पूरा करना ही होगा."
नेहा को याद आ रहा था सिर्फ़ यही नहीं प्यार में डूबकर विदित कई बार उससे अब दो से तीन हो जाने का आग्रह भी कर चुका था. पर नेहा को हर बार ही ऐसे अवसरों पर कभी अपना प्रमोशन याद आ जाता तो कभी नए फ्लैट या कार की ईएमआई की डैडलाइन.
"साल भर बाद मैं एसोसिएट होनेवाली हूं. फिर प्लान करें तो बेहतर नहीं होगा? आख़िर पेट में नौ महीने रखकर तो मुझे ही घूमना है न?"
हर काम में सहयोग करने वाला विदित भला इसमें क्या सहयोग कर सकता था? इसलिए मन मारकर उसे अपने उत्तेजना के आवेग को शांत करना पड़ा था. और इधर एसोसिएट हो जाने के बाद अब नेहा पर जल्द से जल्द वीपी बन जाने का भूत सवार हो गया था.
"मैंने वीपी बनने की डेडलाइन तय कर ली है. दो साल के अंदर ही अंदर…" वह अक्सर गर्व से कहती.
ऐसा नहीं कि प्रमोशन की चाह केवल नेहा को ही थी और विदित अपने करियर के प्रति सर्वथा उदासीन था. फ़र्क़ था तो बस इतना कि दोनों की प्राथमिकताएं अलग थीं. तभी तो विदित उसके सम्मुख छोटे से लेकर बड़ा प्रस्ताव तक दिल से रखता है. चाहे वह होटल में डिनर का प्रस्ताव हो या दो से तीन हो जाने का प्रस्ताव. लेकिन उसने आज तक रखे ऐसे हर प्रस्ताव का जवाब दिमाग़ से देकर विदित को कितना हर्ट किया है इसका एहसास नेहा को आज हो रहा था.
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मोबाइल बजा तो नेहा की चेतना लौटी. बॉस का फोन था. स्टेशन से सीधे ऑफिस आने का निर्देश था. ज़रूरी मीटिंग रखी गई थी.
"पर सर एक बार फ्रेश…" नेहा ने कहना चाहा.
"हमारा ऑफिस घर जैसी सुविधाएं इसीलिए उपलब्ध करवाता है, ताकि एम्पलॉइज़ का बेकार समय नष्ट न हो. नेहा, तुम ऑफिस आकर भी फ्रेश हो सकती हो." उधर से फोन काट दिया गया था. बहस की कोई गुंजाइश न देख नेहा ख़ुद को सीधे ऑफिस जाने के लिए तैयार करने लगी. तभी विदित का कॉल आ गया.
"हाय डार्लिंग, कैसी रही विजिट? मैं तुम्हें लेने स्टेशन निकल रहा हूं."
"नहीं नहीं! तुम मत आना. मैं तुम्हें फोन करने ही वाली थी. बॉस ने गाड़ी भेज दी है. मुझे सीधे ऑफिस पहुंचना होगा. ज़रूरी मीटिंग है."
"क्या जानू, इतने दिनों बाद आई हो और… अच्छा, शाम को घर जल्दी पहुंचने की कोशिश करना. मेरा यार बलजीत डिनर पर आ रहा है अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ. हम लोग तो उसकी शादी में भी नहीं जा पाए थे."
"पर मैं डिनर कैसे मैनेज करूंगी? आई मीन इतने दिनों बाद लौटी हूं. घर में क्या है, क्या नहीं? पहले देखना पड़ेगा तभी तो कुक को बता बताऊंगी कि क्या बनाना है?" हमेशा की तरह वर्कप्रेशर बढ़ते ही नेहा झल्ला उठी थी.
"ओके रिलेक्स डार्लिंग! तुम चिंता मत करो. खाना मैं बाहर से पैक करवाकर ले आऊंगा. तुम बस डिनर टाइम तक घर ज़रूर पहुंच जाना."
"ठीक है, मैं कोशिश करूंगी." एक ठंडी सांस छोड़ते हुए नेहा ने फोन बंद कर दिया था.
"चार दिन वहां शादी में नेटवर्क नहीं मिल रहा था तो कितने आराम से दिन गुज़रे. घर पहुंचने से पहले ही फिर वही आपाधापी वाली ज़िंदगी शुरू हो गई. जाने वैसे चिंतामुक्त दिन फिर कब नसीब होगें?" नेहा ने गौर किया उसकी मनःस्थिति से सर्वथा अनजान पूजा अपने फोन पर लगी हुई थी.
"चुनचुन ने ज़्यादा परेशान तो नहीं किया न तुम्हें? क्या? अच्छा जनाब! मेरे बिना बाप-बेटी ज़्यादा आराम से रहे. ठीक है तो फिर मैं घर ही क्यों लोटूं? मैं अपनी फ्रेंड के यहां जा रही हूं… क्या? घंटे भर से स्टेशन पर सूख रहे हो? हाय राम! तो इतनी जल्दी लेने क्यों आए? अच्छा अब कुछ नारियल पानी या जूस वगैरह पी लो. और चुनचुन को भी पिला दो. उससे कहना ममा उसके लिए बहुत सुंदर फ्रॉक लेकर आई है… तुम्हारे लिए? कुछ नहीं! अरे बाबा, ऐसा हो सकता है कि बाहर जाऊं और तुम्हारे लिए कुछ न लाऊं? सरप्राइज़ है, घर पहुंचकर बताऊंगी… क्या मेरे लिए भी घर पर सरप्राइज़ है? क्या? बताओ न?" पूजा आसपास का सब कुछ भूल फोन पर ही बच्चों की तरह ठुनकने लगी थी. उसे देखकर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि वह एक बेहद ज़िम्मेदार और अनुभवी शिक्षिका है. नेहा को अपनी ओर टकटकी बांधे देख पूजा लजा गई और सामान समेटने का उपक्रम करने लगी.
खाली होती रेल नेहा को अपने अंदर भी एक रीतेपन का एहसास करा रही थी. पूजा को गर्मजोशी और आत्मीयता से पति और बच्ची से मिलते देख रीतेपन की यह कसक और भी गहरा उठी थी. ड्राइवर ने आगे बढ़कर उसके हाथ से सूटकेस थाम लिया तो नेहा जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाकर गाड़ी में जाकर बैठ गई. पूरे दिन एक के बाद एक मीटिंग और प्रजेन्टेशन ने उसे बुरी तरह थका दिया. 'आज तो घर लौटकर भी आराम नहीं है’ सोचते हुए नेहा घर में घुसी तो मनपसंद गर्मागर्म सूप की सुगंध ने उसके मुंह में पानी भर दिया.
"आओ नेहा, बिल्कुल सही वक़्त पर आई हो. पहले अपना फेवरेट सूप पीकर थकान मिटा लो. फिर चेंज वगैरह कर लेना. बलजीत से तो तुम पहले मिल चुकी हो. ये जस्सीजी हैं. इन्होंने तो आते ही साधिकार रसोई संभाल ली है. मेरे मना करते-करते भी देखो सूप गर्म करके ले ही आईं."
नेहा ने ‘थैंक्यू’ कहते हुए सूप उठा लिया.
"इस वक़्त मुझे वाकई इसकी बहुत ज़रूरत थी. सॉरी जस्सीजी, जो काम मुझे करना चाहिए था आपको करना पड़ रहा है."
"अरे कोई गल नहीं परजाई जी. जस्सी तो जहां जाती है उस घर और घरवालों को अपना बना छोड़ती है. मेरे तो सारे घरवालों को इसने अपने वश में कर लीना है. घर में कोई मेरी तो सुनता ही नहीं, सब इसी की बात मानते हैं. आज तो इसने खाना लगाया ही है, कभी बनवाकर देखो. उंगलियां चाटते रह जाओगे." बलजीत ने गर्व से कहा तो जस्सी लजा गई.
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नेहा को पूरी उम्मीद थी विदित यह मौक़ा हाथ से नहीं जाने देगें. अब वे अवश्य दोस्त के सामने अपने दिल की भड़ास निकालेगें. अतः चेंज करने के बहाने वह उठकर अंदर चली गई. चेंज करके रसोई में पहुंची तो पाया जस्सी वहां पहले से मौजूद थी. विदित द्वारा पैक करवाकर लाया खाना वह डोगों में सजा रही थी.
"बलजीत भैया आपकी ठीक ही तारीफ़ कर रहे थे. आप वाकई गृहलक्ष्मी हैं." नेहा कहे बिना नहीं रह सकी.
"श्श! असली तारीफ़ तो अब हो रही है. ध्यान से सुनिए." जस्सी ने कहा तो नेहा कान लगाकर सुनने लगी. विदित यह सब क्या कह रहा है? नेहा को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था.
"बलजीत, नेहा मेरे लिए बहुत ख़ास है. वह आम महिलाओं की तरह चूल्हा-चौका संभालने या बच्चे पैदा करने के लिए नहीं बनी है. भगवान ने उसे किसी विशिष्ट प्रयोजन हेतु इस दुनिया में भेजा है. अपने काम के प्रति उसका समर्पण ऐसा है कि बड़े-बड़े प्रोजेक्ट वह डेडलाइन तय कर चुटकियों में तैयार कर लेती है. पर बेचारी को इसकी क़ीमत भी चुकानी पड़ रही है. अब आज का ही उदाहरण ले लो. बेचारी सहेली की शादी से लौटी नहीं कि इधर मैंने उम्मीदें लगानी शुरू कर दीं. उधर उसके बॉस ने तो गाड़ी भेजकर स्टेशन से ही ऑफिस बुलवा लिया. इसलिए मेरा प्रयास रहता है उस पर घर-परिवार की कम से कम ज़िम्मेदारियां लादूं, ताकि वह अपना प्रबुद्ध दिमाग़ और बेशक़ीमती समय बड़े-बड़े कामों में लगा सके."
"आप बहुत लकी हैं भाभी." कहते हुए जस्सी ने आत्मीयता से नेहा के गालों पर लुढ़क आए आंसू पोंछ दिए तो नेहा की तंद्रा लौटी. कुछ पलों के लिए शायद वह किसी और ही दुनिया में चली गई थी.
रात में विदित चेंज कर बेडरूम में घुसे तो चौंक उठे. नेहा बत्ती बुझाए आकर्षक नाइटी में बिस्तर पर उसका इंतज़ार कर रही थी.
"आज तो जनाब के तेवर कुछ बदले-बदले लग रहे हैँ. (लैपटॉप की ओर इंगित करते हुए) गोद का बच्चा भी इधर छिटका पड़ा है. आज की कोई डेडलाइन तय नहीं कर रखी है क्या?"
"कर रखी है न! दो से तीन होने की!" नेहा ने शरारत से विदित को रजाई में खींच लिया था.
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