उसे भी ऐसा लगता था कि कविता अब उसके मन में नहीं है. फिर अजय के साथ उसका बहुत ही प्रगाढ़ संबंध है. वह उससे इतना प्रेम करता है, पर वही बात हमेशा उसे सताती रहती थी कि दोनों एक ही छत के नीचे रह रहे हैं.
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार प्रीति अजय से मिलने उसके फ्लैट में गई. डोरबेल बजाने के बाद वह इंतज़ार करने लगी. थोड़ी ही देर के बाद दरवाज़ा खुला. वह अपेक्षा कर रही थी कि अजय दरवाज़े पर होगा, पर सामने थी कविता. वह अभी भी नाइट गाउन में थी जबकि सुबह के दस बज चुके थे. शायद थोड़ी देर पहले ही वह सोकर उठी थी. कविता ने उसे देखा. उसके चेहरे पर उसे देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. प्रीति ने उसे गुड मॉर्निंग कहना चाहा, पर तब तक वह बिना कुछ बोले पलटकर अंदर चली गई. न अंदर आने को कहा, न बैठने को. प्रीति चुपचाप अंदर आ गई और ड्रॉइंगरूम में सोफे पर बैठ गई. उसे अजय पर ग़ुस्सा भी आ रहा था. एक दिन पहले ही प्रोग्राम निश्चित हो गया था और वह जानता था कि दस बजे उसे आना है. फिर भी दरवाज़ा उसने नहीं खोला. कविता को देखकर वह असहज हो जाती थी. इसका कारण यह था कि कविता अजय की एक्स थी और उससे उसकी कभी बात नहीं हुई थी.
थोड़ी ही देर में अजय आ गया. शायद वह वॉशरूम में था.
“कैसी हो?” अजय ने कुछ झेंपते हुए पूछा. शायद उसे लेट लतीफ़ होने का कुछ अफ़सोस था.
“ठीक हूं.” प्रीति ने कहा. कह तो गई प्रीति पर सच पूछा जाए तो वह ठीक नहीं थी. कविता को देखकर वह हमेशा की तरह असहज हो गई थी.
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“पांच मिनट में मैं तैयार होकर आता हूं, पर पहले तुम्हारे लिए चाय बना दूं?” अजय ने कहा.
“नहीं, इसकी ज़रूरत नहीं है. मैं चाय पीकर आई हूं. ज़रूरत होगी तो चाय बाहर पी लेंगे. तुम जल्दी से तैयार होकर आओ.” प्रीति ने कहा.
इस बीच किचन से कप हाथ में लिए कविता अपने रूम में चली गई. ड्रॉइंगरूम की स्थिति ऐसी थी कि किचन से निकलने पर कोई सहज ही दिख जाए. किचन से निकलते ही डाइनिंग स्पेस था और उसके पार उसका रूम था. अजय का रूम दाहिनी ओर था.
अजय अपने रूम में कपड़े बदलने चला गया. प्रीति वहीं बैठी अपने मोबाइल पर कुछ-कुछ देखती रही. उसे यह डर सता रहा था कि कहीं कविता फिर बाहर न आ जाए. वैसे इसकी संभावना कम ही थी. वह मोबाइल पर व्यस्त भले ही दिख रही थी, पर उसका मस्तिष्क कविता और अजय के बारे में ही सोच रहा था. कविता का अजय के साथ कुछ माह पहले तक प्रेम संबंध था. दोनों में काफ़ी अच्छी मित्रता थी और दोनों ने मिलकर दो कमरों का एक फूल फर्निश्ड फ्लैट किराए पर ले रखा था. बाद में किसी बात पर दोनों में अनबन हो गई. अनबन इतनी बढ़ गई कि दोनों एक-दूसरे से बात तक नहीं करते थे, पर एक मजबूरी थी दोनों की जिसके कारण उन्होंने एक ही छत के नीचे साथ रहते रहने का निर्णय लिया था. मजबूरी यह थी कि फ्लैट ग्यारह महीने के लिए किराए पर लिया गया था. ग्यारह महीने पूरे होने में अभी तीन महीने शेष थे. फ्लैट ऑनर ने अनुरोध करके अग्रिम किराया लेना चाहा. यदि वह अग्रिम किराया वापस कर देता तो दोनों कहीं और रहने चले जाते, पर ऐसा नहीं हो पा रहा था और रकम अच्छी-ख़ासी थी. दिल्ली में ऐसे भी किराया काफ़ी ज़्यादा है फ्लैटों का. अतः दोनों प्रतीक्षा कर रहे थे अवधि पूरा होने की, ताकि किसी और फ्लैट में शिफ्ट करें.
“चलें.” इस बीच अजय ने आकर कहा. वह नीले रंग के जींस और नारंगी रंग के टी-शर्ट में बहुत ही आकर्षक लग रहा था.
उसकी आवाज़ सुनकर प्रीति एकदम से चौंक गई. उसे इस कदर चौंकते देखकर अजय ने कहा, “मोबाइल में कोई इतना डूब जाता है क्या?”
क्या कहती प्रीति? वह मोबाइल में नहीं अजय और कविता के संबंध के बारे में सोच रही थी. यहां आना उसे बहुत ही असहज लगता था, पर मजबूरी थी. वह उठ खड़ी हुई. दोनों बाहर निकले. अजय ने दरवाज़ा लॉक कर दिया. दरवाज़े पर ऐसा लॉक लगा था जिसे बाहर और अंदर दोनों ओर से खोला जा सकता था. इसकी दो चाभियां थीं और अजय और कविता के पास एक-एक चाभी थी.
“कविता को बता तो दो कि तुम बाहर जा रहे हो.” प्रीति ने धीमे से कहा.
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“हम एक-दूसरे को कुछ बताने की आवश्यकता नहीं समझते हैं. एक चाभी है उसके पास. दरवाज़ा खोलना होगा तो खोल लेगी.” अजय ने कहा.
दोनों निकल पड़े. आज दोनों ने बाहर जाकर खाने-पीने और मौज मनाने का निर्णय लिया था. पहले किसी रेस्टॉरेंट में ब्रेकफ़स्ट का इरादा था. फिर इंडिया गेट जाना था. दोपहर का खाना खाने के बाद 'पुष्पा 2: द रूल' फिल्म देखने का विचार था. डिनर भी दोनों ने एक रेस्टॉरेंट में कर लिया और फिर अपने-अपने घर वापस चले गए. प्रोग्राम के अनुसार सारे काम हुए. पर पता नहीं क्यों प्रीति के मस्तिष्क में कविता का रूखा व्यवहार छाया रहा.
घर आकर भी प्रीति के मन में यही सवाल आ रहा था कि अभी अजय और कविता एक ही फ्लैट में होंगे. दोनों एक ही छत के नीचे रह रहे हैं. दोनों में एक समय में प्रेम संबंध था. कहीं फिर से दोनों एक-दूसरे के संपर्क में न आ जाएं. हालांकि अजय से कई बार इस बारे में बात हुई थी और उसने साफ़-साफ़ कहा था कि अब उसके मन में कविता के प्रति कोई भावना अगर है तो वह नफ़रत की भावना ही है. उसने जिस तरह का व्यवहार कर ब्रेकअप किया था, अब उसके साथ फिर से रिलेशनशिप नामुमकिन है. उसे भी ऐसा लगता था कि कविता अब उसके मन में नहीं है. फिर अजय के साथ उसका बहुत ही प्रगाढ़ संबंध है. वह उससे इतना प्रेम करता है, पर वही बात हमेशा उसे सताती रहती थी कि दोनों एक ही छत के नीचे रह रहे हैं.
न जाने क्यों उसे लगा कि एक बार कविता से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए. लेकिन अजय के सामने कविता से बात करना ठीक नहीं लगेगा. इसके लिए उसे अलग से बात करनी होगी. काफ़ी सोच-विचार के बाद उसने कविता से मिलने का मन बना लिया. इसके लिए उसने शनिवार का दिन चुना. अजय शनिवार को ऑफिस जाता था और सोमवार को उसका ऑफ रहता था जबकि कविता के ऑफिस में शनिवार को छुट्टी रहती थी.
अगले शनिवार को वह कविता के घर पहुंच गई. डोरबेल बजाने पर कविता ने दरवाज़ा खोला. उसने कुछ कहा नहीं पर प्रश्नवाचक मुद्रा में वहीं खड़ी रही मानो कह रही हो आज तो अजय है नहीं फिर किससे मिलने आई हो.
“मैं तुमसे कुछ बात करने के लिए आई हूं.” प्रीति ने कहा.
कविता ने उसे अंदर आने का इशारा किया और दरवाज़े से हटकर अंदर चली गई. प्रीति भी उसके पीछे-पीछे चली गई. कविता ने सपाट चेहरा बनाकर उसे बैठने का इशारा किया और ख़ुद भी बैठ गई.
“कविता, बुरा मत मानना. मैं जानती हूं कि अजय से तुम्हारा रिलेशनशिप था और अब नहीं है, पर तुम दोनों एक ही छत के नीचे रहती हो. मेरे मन में यह भय है कि कहीं तुम दोनों फिर से एक-दूसरे के संपर्क में आ जाओ तो मैं बीच में न रहूं तो अच्छा है.”
कविता कुछ देर तक प्रीति को देखती रही. मानो सोच रही हो कि क्या कहे. शायद वह प्रीति को बेवकूफ़ समझ रही थी. उसका चेहरा अभी भी भावहीन और सपाट था.
“देखो तुम जो भी हो, एक बात अच्छी तरह समझ लो कि अगर कोई किसी से मिलना चाहे तो इसके लिए कोई ज़रूरी नहीं कि एक ही छत के नीचे रहे. सात समंदर पार जाकर भी लोग एक-दूसरे से मिल सकते हैं. और अगर कोई किसी से न मिलना चाहे तो एक ही बिस्तर पर रह कर भी न मिले. मिलना न मिलना मन में एक-दूसरे के प्रति जुड़ी भावना से होता है, न कि इस बात पर कि वे कितनी दूरी या कितने पास रहते हैं. रही बात कभी रिलेशनशिप में रहने की तो वह अब अतीत की बात है. अगर तुम लिखित में आश्वासन चाहती हो कि तुम्हारे प्रेमी से मेरा कोई संबंध नहीं रहेगा तो मैं वह भी दे सकती हूं. चाहो तो स्टाप्म पेपर पर भी दे सकती हूं. और एक ही छत के नीचे हम सिर्फ़ कुछ हज़ार रुपए बचाने के लिए रह रहे हैं. तीन महीने के बाद हम अलग-अलग छत के नीचे रहेंगे.” कविता ने कहा.
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उसके एक-एक शब्द से लग रहा था कि वह अजय से कोई संबंध नहीं रखना चाहती है. यहां तक कि उसने अजय का नाम तक अपनी ज़ुबान से नहीं लिया था.
“ओके, मुझे लगा तुमसे इस बारे में बात कर लेनी चाहिए इसलिए आ गई थी. थैंक्यू. चलती हू़.” प्रीति ने कहा.
“रुको, आई हो तो चाय पीकर जाओ.” कविता ने कहा.
“नहीं चलती हूं फिर कभी आऊंगी.” प्रीति ने कहा.
“अरे, फिर कब आओगी. तुम्हारे लिए अलग से नहीं बना रही. अपने लिए बना ही रही हूं. एक कप बढ़ा लूंगी.”
प्रीति बैठ गई. कुछ ही देर में कविता चाय बनाकर लेती आई. दोनों ने साथ-साथ चाय पी. इस बीच कई तरह की बातें हुईं, पर अजय के बारे में कोई बात नहीं हुई.
प्रीति कविता से मिलकर वापस आई तो उसके मन में संदेह के जो बादल उमड़-घुमड़ रहे थे वे अब छंट चुके थे.


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Photo Courtesy: Freepik
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