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कहानी- बॉबी का निर्णय (Short Story- Bobby Ka Nirnay)

"कैसे हो बॉबी?" फोन विनोद का था. दोनों ओर के हालचाल का आदान-प्रदान होने के बाद विनोद बोला, "रीमा भी यही खड़ी है, तुमसे बात करना चाहती है."
फोन पर रीमा की आवाज़ आई, "हेलो बॉबी, मैं बोल रही हूं."
बॉबी की पकड़ फोन पर और मज़बूत हो गई. क्षण मात्र में बॉबी ने एक निर्णय लिया और अपने रूंधे गले पर काबू पाते हुए बोला, "तुम मेरी मां बनोगी?"
उधर सन्नाटा छा गया.

तीसरी बार दरवाज़े की घंटी बजी, तो विनोद को मजबूरन आंखें खोलनी पड़ीं. घड़ी की ओर नज़र डाली, सुबह के आठ बजे थे. "क्या बात है, आज बीना ने जगाया भी नहीं और घंटी की आवाज़ पर दरवाज़ा भी नहीं खोला."
आंखें मलते हुए, उसने दरवाज़ा खोल दिया. सामने दूधवाला खड़ा था. नींद में ही दूध लेकर वह किचन की ओर चल दिया बीना वहां भी नहीं थी. उसने ज़ोर से आवाज़ दी "बीना!"
दूध गैस पर रखकर और गैस जलाकर वह पलटा, तो बॉबी आंखें फाड़े उसे घूर रहा था. शायद विनोद की आवाज़ से जाग गया था.
"क्या हुआ पापा?"
"तुम्हारी मम्मी कहां…" कहते-कहते उसे झटका लगा. उसकी आंखों से नींद गायब हो गई और उसे ऐसा लगा, मानो उसे किसी अन्य दुनिया से इस दुनिया में पटक दिया गया हो. बॉबी मासूमियत से विनोद को घूर रहा था.
"बीना है कहां अब… वह तो उसे छोड़कर जा चुकी है. उसे ही क्या वह तो सबको छोड़कर जा चुकी है. अब कभी वापस नहीं आएगी वह, उसे मरे तो कई महीने हो गए. विनोद ने सहमे हुए बॉबी को अपने सीने से लगा लिया. वह किसी तरह अपने दोनों बेटों के दिल से बीना की याद को दूर रखना चाहता था, इसलिए बीना की मृत्यु के बाद से वह अपना दुख भूलकर उन दोनों का ध्यान बंटाने का प्रयत्न करता आ रहा था. पर आज अचानक उसने फिर बीना को आवाज़ देकर बॉबी की यादों को कुरेद दिया था. उसे मम्मी याद आ गई थीं. शायद पिछली रात विनोद देर तक अपनी शादी का कैसेट देखते-देखते सो गया था, इसीलिए सवेरे गफलत में यह ग़लती हो गई.
बॉबी ने फिर घिसा-पिटा सवाल कर दिया, "पापा, मम्मी हम सबको अकेला छोड़कर भगवान के पास क्यों चली गई?"
"बेटा बताया न, जो लोग अच्छे होते है, उन्हें भगवान अपने पास बुला लेते हैं."
"पापा, भगवान को मालूम नहीं कि मम्मी का एक छोटा बेटा भी है, जो उनको याद करके बहुत रोएगा?" बॉबी के आंसू निकल चुके थे.
"भगवान सब जानते हैं. वे यह भी जानते हैं, तुम्हारा अब स्कूल जाने का समय हो गया है और तुम अभी तक तैयार नहीं हुए हो." विनोद ने बात टालने का प्रयत्न किया. विनोद की चाल काम कर गई. बॉबी तुरंत बोला, "अरे हां पापा! आज तो मेरी कराटे की क्लास है. कराटेवाली ड्रेस लेकर जाना है."
चिंटू बड़ा था. बीना की मृत्यु के बाद से ही वह गुमसुम अवश्य हुआ, पर ऐसा लगता था मानो रातोंरात ही वह अपनी उम्र से कई वर्ष बड़ा हो गया हो. पापा के काम में हाथ बंटाना, बॉबी को तैयार करना आदि कार्य उसने स्वयं ही अपने हाथ में ले लिए थे. मां के विषय में वह कभी अपने पापा से कुछ नहीं पूछता था, वह जानता था कि ऐसा करने से पापा को बुरा लगेगा.
बच्चों के स्कूल जाने के बाद घर का सूनापन विनोद को काटने लगा. गुज़रे कुछ महीनों में उसके जीवन में जो तूफ़ान आया था, उसका शोर कानों में पुनः गूंजने लगा. बीना को हल्का सा बुखार हुआ था. रात में डॉक्टर ने दवा भी दे दी थी. पर शायद भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था. सवेरा होते-होते बीना ने संसार छोड़ दिया. विनोद गुम सा हो गया. चिंटू ने तो अपने आपको संभाल लिया, पर बॉबी को संभालना मुश्किल हो रहा था. वह अभी बहुत छोटा, अपनी दादी की गोद में घुसा हुआ वह बस रोए ही जा रहा था, "भगवानजी, मेरी मां वापस कर दो."

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आनन-फानन में सारे दोस्त-रिश्तेदार आदि इकट्ठे हो गए. सबकी ज़ुबान पर एक ही बात थी 'कितनी कम उम्र में बुला लिया ऊपरवाले ने. इतने छोटे-छोटे बच्चे कैसे रहेंगे बिन मां के? और फिर विनोद का भी तो सोचो, इतनी पहाड़ सी ज़िंदगी कैसे गुज़ारेगा अकेले? उसकी भी तो अभी कोई उम्र नहीं है… सैंतीस साल की उम्र भी कोई उम्र है?"
रिश्तेदारों की बातें विनोद के दिल में अधिक चुभन पैदा कर रही थीं. उसका मन होता था कि सब लोग चले जाएं, उसे अकेला छोड़ दें… जिससे वह अकेले में फूट-फूटकर रो सके. पिछले चंद महीनों में उसने जाना कि वास्तव में पत्नी के न होने से आदमी कितना टूट जाता है.
बीना के जाने के बाद से विनोद स्वयं को अधूरा महसूस करने लगा, अंदर-ही-अंदर घुलने लगा, उसके मां-पिता से उसकी यह हालत देखी न गई. उन्हें लगा कि यदि विनोद ऐसी ही हालत में कुछ और दिन रहा, तो अवश्य ही बीमार पड़ जाएगा. बहुत सोचने पर उनको यह लगा कि विनोद की दूसरी शादी ही उसका हल है. विनोद को जीवनसाथी मिल जाएगा और बच्चों को एक मां भी. पर अब प्रश्न यह था कि विनोद से कहे कौन? उनके कहने से तो वह मानेगा नहीं, आख़िर इसका जिम्मा उन्होंने विनोद के सबसे अजीज दोस्त प्रेम को दिया.
एक दिन दोनों चाय की चुस्कियां ले रहे थे, तो प्रेम ने बात छेड़ दी, "यार विनोद, एक बात कहूं, तू बुरा तो नहीं मानेगा?"
विनोद मुस्कुराया, "अरे यार, तेरी बात का कभी बुरा माना है मैंने."
"तू दूसरी शादी क्यों नही कर लेता? अभी तो तू इस शहर में है… अंकल-आंटी बच्चों को देख लेते हैं. कल को दूसरे शहर में तबादला हो गया, तो कौन देखेगा बच्चों को?"
"पागल हो गया है क्या? इस बुढ़ापे में शादी करूंगा मैं? इतने बड़े-बड़े बच्चों के लिए नई मम्मी लाऊंगा?"
"ज़रूरत बच्चों से अधिक तुझे है. बच्चे तो बड़े हो जाएंगे, स्कूल से कॉलेज… फिर नौकरी… और फिर उनकी शादी और उनका परिवार. यह सब होते-होते वक़्त का पता भी नहीं चलेगा, और तब तू और भी अकेला हो जाएगा. अभी तो तेरी उम्र भी कुछ नहीं है… उस समय क्या पचपन-साठ साल की उम्र में जीवनसाथी ढूंढ़ेगा? मेरी बात पर बहुत शांति से सोच और बोल." प्रेम ने ऐसा तर्क रखा था कि विनोद उसकी बात से प्रभावित होने लगा.
"बोल क्या कहता है?" प्रेम ने आतुरता दिखाई,
"यार मैं तो बिल्कुल कन्फ्यूज़ हो गया. चलो, एक बार को यह मान भी लिया जाए कि दूसरी शादी मेरे लिए आवश्यक है, पर…"
"पर क्या?"
"क्या नई पत्नी बच्चों का ठीक तरह से ध्यान रख पाएगी? क्या वह उन्हें वही प्यार दे पाएगी, जो उन्हें बीना से मिलता था?"
"लड़की देख-समझकर जानी-पहचानी लाई जाएगी, ऐसे ही आंख बंद करके थोड़े ही ले आएंगे."
विनोद ने थोड़ी देर सोचकर कहा, "ठीक है."
प्रेम ने यह ख़ुशख़बरी उसके मां-पिता को भी दे दी, दोनों की ख़ुशी का पारावार ही न था.

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उधर विनोद इस विषय में और अधिक सोचने लगा. एक अनजान जीवनसाथी के साथ बाकी का जीवन व्यतीत करने की आशा उसको अधीर बनाने लगी. वह उस दिन का बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगा जब उसके जीवन में कोई सुयोग्य साथी पदार्पण करेगा और उन तीनों के जीवन में फिर से रस घोल देगा. बस एक ही भय उसे खाता था कि कहीं कोई ग़लत लड़की उनके जीवन में न आ जाए.
एक शाम प्रेम बरामदे में बैठा था और विनोद की मां बगल में बैठी सब्ज़ी काट रही थी. सामने लॉन में दोनों बच्चे और रीमा खेल रहे थे.
मौक़ा देखकर प्रेम ने बात छेड़ी, "आंटी, यह रीमा कैसी लड़की है?" "
"बहुत अच्छी है बेटा, बिन मां-बाप की लड़की अपने दूर के रिश्ते के चचेरे भाई के साथ बगल में ही रहने आई है… अभी साल भर से. और कोई नहीं है इसका. भाभी से अधिक पटती नहीं है, पर क्या करे कहीं और रह भी नहीं सकती. दिनभर मेरे यहां ही रहती है. अब तो इतना घुल-मिल गई है कि पूछो मत. बीना के जाने के बाद से घर का सारा काम अब यही संभाल लेती है. चिंटू और बॉबी की तो यह बिल्कुल दोस्त बन गई है, मना भी किया कि इतना मत क़रीब आ हम लोगों के. कल को ब्याह के चली जाएगी, तो हमें बहुत सूना लगेगा. तो हंसती है और कहती है कि मेरी शादी बॉबी से कर दो तो तुम्हारे पास ही रहूंगी. इतनी उम्र हो गई, पर बेचारी की शादी भी नहीं हो रही."
"आंटी, विनोद के लिए कैसी रहेगी यह?" प्रेम ने हिम्मत करके पूछ ही लिया.
"यह तो कभी मेरे ध्यान में ही नहीं आया."
"देखो आंटी, इस समय हमें ऐसी लड़की चाहिए, जो सीधी-सादी हो, घर में सबसे घुलमिल जाए और बच्चों को प्यार से रखे. में कई दिनों से रीमा पर नज़र रखे था. मेरी कसौटी पर तो यह बिल्कुल खरी उतरती है. बाकी जैसा आप लोग ठीक समझे."
शाम को ही विनोद के पापा से बात हो गई. उन्होंने भी कहा कि हमें तो बस लड़की चाहिए, बाकी कुछ नहीं. रीमा के भाई-भाभी तो बिना किसी ख़र्चेवाली शादी से बहुत ख़ुश हुए. विनोद ने पहले तो एतराज किया कि रीमा और उसमें दस वर्ष का अंतर है, पर फिर सबके समझाने पर मान गया.
शादी की तैयारिया होने लगी. विनोद को अपने अंदर एक नया उत्साह सा महसूस होने लगा, मानो जीवन में कोई बहार आनेवाली हो.
परंतु होनी को शायद कुछ और ही मंज़ूर था. बॉबी ने घर में चलनेवाली चहल-पहल और तैयारियों के विषय में पूछताछ करनी शुरू कर दी. जब उसे बताया गया कि उसकी नई मां आनेवाली है, तो वह बिदक गया, "नहीं! मेरी पुरानी मां ही वापस आने वाली है. वह पापा से कह गई हैं कि वह जल्दी ही वापस आएं‌गी अपने बॉबी के पास!"
सब घरवालों ने बहुत समझाने की कोशिश की, पर सब नाकाम… बॉबी टस से मस नहीं हुआ. विनोद को जब पता चला, तो वह परेशान हो उठा. उसने दूसरी तरह से बॉबी को समझाने की ठानी. एक दिन वह दोनों बच्चों को घुमाने ले गया. और मौक़ा देखकर उसने धीरे से बात छेड़ दी, "रीमा तुम्हें कैसी लगती है?" बॉबी भी मूड़ में आ चुका था. बोला "बहुत अच्छी है. वह मुझे पढ़ाती भी बहुत प्यार से है. बिल्कुल नहीं डांटतीं और मेरे साथ ख़ूब खेलती हैं."
"अगर रीमा हमारे घर हमेशा के लिए रहने आ जाए, तो कैसा रहेगा?"
"बहुत मज़ा आएगा, पर वह आएंगी?"
"हम उन्हें तुम्हारी मम्मी बनाकर लाएंगे."
बॉबी ने अपनी पैनी नज़र विनोद पर गड़ा दी और तुनककर बोला, "नहीं! मेरी मम्मी की जगह कोई दूसरा नहीं आएगा."
"पर अभी तो तुम कह रहे थे कि वह बहुत अच्छी है, फिर क्या परेशानी है?" बॉबी ने बड़े-बूढ़ों की तरह कहा, "सौतेली मां, सौतेली ही होती है."
विनोद चौका, "ऐसा किसने कहा तुमसे?"
"किसी एक ने थोड़े ही कहा है. चौबीस नंबरवाली आंटी ने कहा, स्कूल में बिट्टू, मॉली, किक्की ने कहा, स्कूल बस के कण्डक्टर ने कहा, शोभा दीदी ने कहा, बिट्टन मौसी ने भी ऐसा ही कहा, सबने कहा था कि सौतेली मां डायन होती है, उसे घर में मत घुसने देना. वह तुम्हें और भैया को खा जाएगी और पापा को लेकर कहीं दूर उड़ जाएगी."
विनोद समझ गया, बात संभालने की गरज से उसने बॉबी को समझाया, "बेटा, वे लोग ग़लत बोलते हैं."
बॉबी कहां माननेवाला था, "इत्ते सारे लोग झूठ थोड़े ही बोलेंगे, हिना दीदी ने तो मुझे सौतेली मां की बहुत डरावनी कहानी सुनाई थी, न बाबा, मैं नहीं आने दूंगा सौतेली मां को. और फिर मम्मी भी तो आकर लड़ेंगी मुझसे कि मैंने उनके पीछे किसी और को मम्मी कैसे कह दिया."


विनोद की शादी कैंसिल हो गई. उसके दिल में जो आशा की किरण जागी थी, वह एक झटके में ही बुझ गई.
दिन गुज़रे…. हफ़्ते गुज़रे…. महीने गुज़रे और कुछ वर्ष भी गुज़र गए, पर तीनों की ज़िंदगी में आया वह शून्य वैसे ही बना रहा और तीनों ने जैसे उस शून्य के साथ जीना भी सीख लिया. दोनों बच्चे बड़े हो गए. बॉबी भी अब समझ गया कि उसकी मां वापस आनेवाली नहीं, क्योंकि वह ऐसी जगह पहुंच गई थी, जहां से कोई वापस नहीं आ सकता.
चिंटू का दाखिला इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया. उसे दूसरे शहर जाना था. बॉबी भी उसके साथ जाने की ज़िद पकड़ बैठा. विनोद ने सोचा कि उसका तबादला अब कभी भी हो सकता है, सो उसने बॉबी का भी उसी शहर के एक स्कूल में दाखिला करा दिया. चिंटू और बाँबी के रहने का प्रबंध विनोद ने दीनू बाबू के घर में करा दिया.
दीनू बाबू विनोद के क़रीबी थे. उम्र में बड़े थे, पर विनोद उनको अपना बड़ा भाई मानता था. पत्नी का काफ़ी पहले देहान्त हो चुका था. उसके दोनों बच्चे अपनी-अपनी नौकरी के कारण मुम्बई में फ्लैट लेकर रहते थे. दीनू बाबू अकेले थे. चिंटू और बॉबी से उन्हें बचपन से ही लगाव था. उन्होंने ही उन दोनों को अपने पास रखने की ज़िद की थी, जिससे उनके घर का सूनापन ख़त्म हो जाए और उन्हें बुढ़ापे के लिए सहारा मिल जाए.
वहां जाने पर बॉबी को बड़ा अच्छा लगा. नई जगह… नए लोग…. नए-नए दोस्त. दीनू अंकल भी बहुत अच्छे थे. खाली समय में दीनू अंकल बॉबी के साथ कैरम, ताश, शतरंज वगैरह खेलते थे. दीनू बाबू बॉबी का इतना ख़्याल रखते थे कि बॉबी उनको बहुत चाहने लगा था.
एक दिन शाम को बॉबी जब खेलकर घर लौटा, तो अंकल कमरे में अधेरा किए बैठे थे. बॉबी ने लाइट जलाई, तो उसे लगा कि अंकल शायद रो रहे थे. बॉबी ने अंकल को कुरेदा, पहले तो वह कुछ न बोले, पर बॉबी के ज़िद करने पर उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने दोनों बेटों को दीवाली की छुट्टियों में अपने पास बुलाया था, पर वे नहीं आ रहे हैं. लिखा है कि उनके बच्चे महाबलेश्वर जाने की ज़िद कर रहे है, इसलिए अब वे लोग शायद गर्मियों की छुट्टियों में आएंगे,"
बॉबी ने उन्हें दिलासा दिया, "कोई बात नहीं अंकल, गर्मी की छुट्टियों में पांच-छह महीने ही तो रह गए हैं, थोड़ा इंतज़ार ही सही."
"वही तो कर रहा हूं, पिछले सात सालों से ये लोग यही लिखते आ रहे हैं, पर आता कोई नहीं."
"तो आप क्यों नहीं चले जाते मुम्बई?"
"कैसे जाऊं इस बुढ़ापे में? और फिर वे लोग कहते हैं कि उनके फ्लैट बहुत छोटे हैं… मुझे उनके साथ रहने में दिक़्क़त होगी, मेरी तो आंखें तरस गई हैं उन लोगों को देखने के लिए."
अंकल बोलते जा रहे थे, जैसे दिल की भड़ास निकाल रहे हो, "तेरे आने से पहले मैं किसी से बात करने को भी तरस जाता था. कितनी देर अख़बार पढूं या कितनी देर टी.वी. देखें? कोई अपना भी तो होना चाहिए, जिससे दिल की बात कह सकें. सिर में दर्द होता है, तो अपने हाथों से ही दबा लेता हूं. बुखार होता है, तो कोई हाल पूछनेवाला नहीं, हर पड़ोसी काम-धंधेवाला या परिवारवाला है, उसको मेरे लिए फ़ुर्सत थोड़े ही है. किसी से थोड़ी देर बात करने लगता हूं, तो वह किसी ज़रूरी काम का बहाना करके निकल लेता है."
बॉबी ने बात का रुख बदलने का प्रयत्न किया, "छोड़िए अंकल, अब मैं तो हू यहां. आप मुझसे बातें करिए और मेरे साथ खेलिए, मैं आपकी उम्र का तो नहीं हूं, पर मुझे आप अपना दोस्त समझिए."
अंकल सहसा ही हंस दिए, शायद इतने छोटे बच्चे के आगे बचपना करके उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हुआ था.
अंकल शतरंज का बोर्ड लाने गए, तो उनके नीचे दबा हुआ एलबम बॉबी को दिखाई पड़ गया. उसके आने से पहले शायद अंकल वही एलबम देख रहे थे. उसने खोल के देखा, तो वह अंकल की शादी का एलबम था. बॉबी पन्ने पलटते हुए एक-एक फोटो देखने लगा, उसे पता ही नहीं चला, कब अंकल आकर उसके पीछे खड़े हो गए थे.
"यह तेरी आंटी थी बेटा." अंकल की आवाज़ ने बॉबी को चौंका दिया. बाँबी के हाथ से एलबम लेकर अंकल जैसे अतीत में खो गए और ख़ुद से बातें करने लगे, "कितनी अच्छी लगती थी न? जानते हो जब यह मुझे छोडकर गई थीं, तो मेरे दोनों बेटे बहुत छोटे थे. मैंने इनको पिता और मां बन कर पाला."
"आपने दूसरी शादी क्यों नहीं की?" चिन्टू ने पूछा.
"कर लेता, पर मेरे बेटों को 'सौतेले' शब्द से सारे रिश्तेदारों और मिलनेवालों ने इतना डरा दिया था कि वह नई मां लाने के लिए राज़ी ही न हुए. तो मैंने भी इरादा छोड़ दिया. अगर मैं तब दूसरी शादी कर लेता, तो इनकी नई मां इन लोगों के काम आती और आज बुढ़ापे में वह मेरे सुख-दुख का सहारा होती. जब उनको साये की ज़रूरत थी, मैंने वे ज़रूरत पूरी की, पर आज मुझे सहारे की ज़रूरत है, तो वे लोग भूल गए. अब वे मुझे यहां पटककर ख़ुद मुंबई में रह रहे हैं. यह भी नहीं सोचते कि बुड्ढा अकेला पड़ा होगा."
दीनू बाबू अपने आंसू छुपाने के लिए तुरंत मुड़कर अंदर वाले कमरे की ओर बढ़ गए, पर बाँबी ने उनकी आंखों में आंसू देख लिए थे. उसे उनके बेटों पर बहुत ग़ुस्सा आया और वह ग़ुस्से में ही बड़बड़ाया, "औलाद अपने स्वार्थ के लिए कितना गिर सकती है, भैया, क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा अगर अंकल उन लोगों के साथ रह लेंगे. थोड़ा-बहुत तो एडजस्ट किया ही जा सकता है. ख़ुद तो दोनों वहां मुम्बई में रह रहे हैं और अपने पिता को अकेला छोड़ा हुआ है. अपने स्वार्थ के लिए अंकल को शादी नहीं करने दी और अब जब उनको जीवनसाथी की आवश्यकता है, तो उनका सहारा भी नहीं बनाना चाहते. हम दोनों भाई तो अपने पापा का कितना ध्यान रखते हैं… है न भैया?"
चिन्टू ने धीरे से कहा, "हम दोनों भाइयों ने भी तो अकेला छोड़ दिया है अपने पापा को.." बॉबी ने झट सफ़ाई दी, "पर, वह तो पढ़ाई की वजह से.. मजबूरी में."
चिन्टू ने अगली दलील दी, "तो क्या हुआ…‌ कल को मजबूरी का नाम नौकरी या छोटा फ्लैट हो जाएगा. तूने भी तो पापा को दूसरी शादी करने से रोका था. हमारे पापा भी इसी तरह किसी जीवनसाथी के लिए तड़पेंगे और तब कोई बॉबी तेरी ही तरह हम दोनों को गालियां देगा."

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बॉबी को इतने खुले आक्रमण की आशा नहीं थी. उसे ज़बर्दस्त झटका लगा और साथ ही आश्चर्य भी हुआ.
"भैया इतने वर्षों तक यह बात दिल में ही रखे थे?"
फोन की घंटी से उसका ध्यान टूटा, "हेलो!"
"कैसे हो बॉबी?" फोन विनोद का था. दोनों ओर के हालचाल का आदान-प्रदान होने के बाद विनोद बोला, "रीमा भी यही खड़ी है, तुमसे बात करना चाहती है."
फोन पर रीमा की आवाज़ आई, "हेलो बॉबी, मैं बोल रही हूं."
बॉबी की पकड़ फोन पर और मज़बूत हो गई. क्षण मात्र में बॉबी ने एक निर्णय लिया और अपने रूंधे गले पर काबू पाते हुए बोला, "तुम मेरी मां बनोगी?"
उधर सन्नाटा छा गया. फिर विनोद की आवाज़ आई, "बॉबी, तुमने क्या कह दिया बेटे कि रीमा भाग गई."
"पापा, अगले हफ़्ते मैं भैया के साथ दो दिन के लिए आप लोगों के पास आ रहा हूं. तब तक आप दोनों शादी की तैयारी कर लीजिए, मैं अब उन्हें मम्मी कहना चाहता हूं."
विनोद को अपने कानों पर विश्वास ही न हुआ.
बॉबी ने अपनी बात जारी रखी, "और पापा, हम सब लोग फिर मिलकर दिवाली यहीं दीनू अंकल के साथ मनाएंगे."
बॉबी ने कनखियों से देखा, अंकल अपने आंसू पोंछ रहे थे, शायद ख़ुशी के आंसू थे. उसे लगा कि उसके इस एक निर्णय से न जाने कितने लोगों के आंसू धुल जाएंगे.
- अनुराग डुरेहा

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