काकी सिर पर पल्लू देती हुई तुरंत चली आईं मीरा के साथ. तिल की बर्फी बनाते हुए तिल के और भी न जाने कितने व्यंजन और यादें सुना दी काकी ने. मीरा देख रही थी कि काकी अनुभव और ज्ञान का जैसे ख़ज़ाना है और वो अब तक पड़ोस में रहते हुए भी इस ख़ज़ाने से वंचित रही. काकी से बात करते हुए कितना कुछ सीख सकती थी वो अब तक.
"ये तिल लाया हूं. बर्फी बना लेना." अरविंद ने तिल का पैकेट रखते हुए कहा.
"मुझे कहां आता है बर्फी बनाना. प्रसाद के लिए बाज़ार से बनी बनाई ले आते, झंझट ख़त्म." मीरा खीज कर बोली.
"क्या करूं दुकानदार ने जबरन पकड़ा दिए. इंटरनेट पर देख लेना बहुत सी विधियां मिल जाएंगी बर्फी बनाने की. इंटरनेट सबका गुरु है." अरविंद बोला और ऑफिस के लिए निकल गया.
मीरा ने तीन-चार विधियां देख लीं, लेकिन कुछ समझ नहीं आया. ठीक नहीं बनी या बिगड़ गई, तो तिल बेकार हो जाएंगे. तभी पड़ोस की काकी का ध्यान आया. काकी से पूछकर बनाऊंगी, तो बिगड़ने पर पूछ तो पाऊंगी कि अब क्या करूं. पर आज तक तो कभी उनके पास जाकर बैठी नहीं अब अपने काम के लिए जाना क्या अच्छा लगेगा. लेकिन कोई चारा नहीं था, तो पहुंच गई.
"अरी बिटिया आओ-आओ." काकी उसे देखते ही खिल उठी.
"वो काकी मुझे तिल की बर्फी बनानी थी. क्या आपके पास समय होगा ज़रा-सा…" मीरा ने संकोच से पूछा.
"हां, क्यों नहीं बिटिया, अभई चलकर बनवा देत हैं.
उ मा कौन बड़ी बात है."
काकी सिर पर पल्लू देती हुई तुरंत चली आईं मीरा के साथ. तिल की बर्फी बनाते हुए तिल के और भी न जाने कितने व्यंजन और यादें सुना दी काकी ने. मीरा देख रही थी कि काकी अनुभव और ज्ञान का जैसे ख़ज़ाना है और वो अब तक पड़ोस में रहते हुए भी इस ख़ज़ाने से वंचित रही. काकी से बात करते हुए कितना कुछ सीख सकती थी वो अब तक.
ज़रा-सा अपनापन और मान देते ही स्नेह का झरना फूट पड़ा उनके हृदय से. आभासी गुरु में यह स्नेह, यह आत्मीयता, जीवंतता कहां मिलती है भला.
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"ये लो बिटिया. बन गई तोहार तिल की बर्फी." उनके पोपले मुंह पर प्रसन्नता और संतुष्टि थी.
मीरा चकित थी दूसरे की मदद करके इतनी ख़ुशी भी हो सकती है किसी को.
"अब आप आराम से बैठिए काकी. मैं चाय बनाती हूं. कितना कुछ सीखना है आपसे अभी."
काकी के पोपले मुख पर छाए स्नेह के भावों की मिठास ने मीरा को तृप्त कर दिया. अब जो भी सीखना है, इसी जीती-जागती गुरु से ही सीखूंगी.
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