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कहानी- बंधन (Short Story- Bandhan)

"तुम जानती नहीं हो मिर्च बवासीर में तकलीफ़ देती है?.. मार डालो इसी तरह.."
"आपसे पहले मैं मरूंगी घुट-घुटकर…‌देख लीजिएगा…"
लड़ाई मरने-मारने तक पहुंच गई थी, मन खिन्न हो गया. क्यों देखूं मैं फोटो किसी लड़की की? क्या होगा शादी करके? ये सब?.. लिफ़ाफ़ा ले जाकर मां के पलंग पर पटक दिया.

बायोडाटा पढ़ना शुरू ही  किया था कि मां की रुआंसी आवाज़ कानों में पड़ी, "वो छोड़िए… आपने मेरे ज़ेवर किससे पूछकर बेचे थे?"
"जिसने बनवाए थे, उसी से पूछकर, "पिताजी भी ग़ुस्से में थे, "मायके से तो लाई नहीं थी ना… वहां से तो एक शानदार चेन आई थी मेरे लिए… नकली!"
"अच्छा! अपने भाई-भतीजों को कुछ ना कहना कभी… पप्पू मेरे सामने मंदिर से सिक्का चुराकर भागा था…"
वैसे ये सब कुछ नया नहीं था मेरे लिए… बात शुरू हुई थी खाने में ज़्यादा मिर्च को लेकर और कहां से कहां पहुंंच गई थी. मैं मुश्किल से दो दिनों की छुट्टी लेकर आया था.
आते ही पिताजी ने ये फोटो और बायोडाटा वाला लिफ़ाफ़ा पकड़ा दिया, तब तक ये सब…
"तुम जानती नहीं हो मिर्च बवासीर में तकलीफ़ देती है?.. मार डालो इसी तरह.."
"आपसे पहले मैं मरूंगी घुट-घुटकर…‌देख लीजिएगा…"
लड़ाई मरने-मारने तक पहुंच गई थी, मन खिन्न हो गया. क्यों देखूं मैं फोटो किसी लड़की की? क्या होगा शादी करके? ये सब?.. लिफ़ाफ़ा ले जाकर मां के पलंग पर पटक दिया.
मुश्किल से पौना घंटा भी नहीं बीता होगा कि रसोईंघर से बर्तन गिरने की आवाज़ आई. मैं हड़बड़ाकर भागा…‌ वहां जो देखा, उस पर यक़ीन करना मुश्किल था. पिताजी रसोईघर में मां को अपने हाथ से बड़े प्यार से खाना खिला रहे थे और मां किसी बात पर हंसते-ह़सते दुहरी हुई जा रही थीं… मैं  जल्दी से लिफ़ाफा अपने कमरे में उठा लाया!
- श्रुति‌ सिंघल

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