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कहानी- आंधी के बाद (Short Story- Aandhi Ke Baad)

इसी गहराई को समझने के लिए मैंने आप दोनों को तीन महीने का समय दिया था. फिर भी आप लोगों को समझ में नहीं आया कि आप दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी हैं. कैसे पति-पत्नी हैं आप? कोई झुकने को तैयार ही नहीं?”
“नहीं मैं झुकने को तैयार हूं! मैं तनुज से माफ़ी मांगने को तैयार हूं. मुझसे ग़लती हो गई. तनुज जो चाहेगा वही मैं करूंगी.” तन्वी की आंखें भर आई थीं.

आज की सुबह बहुत ही उदासी से भरी हुई थी.जब तन्वी की नींद टूटी,‌ उसे अपने पूरे शरीर में एक झुरझुरी महसूस हो रही थी. उसका पूरा बदन टूट रहा था.
वह उठ कर बैठ गई. पूरे घर में एक अजीब सी चुप्पी पसरी हुई थी. घर का माहौल बहुत ही ज़्यादा शांत था. ऐसा लग रहा था किसी बड़े तूफ़ान के आने से पहले की दस्तक है. मोबाइल पर मैसेज था. आज कोर्ट में लास्ट हियरिंग है उसके और तनुज की फिर उन दोनों के बीच सब कुछ ख़त्म हो जाएगा. आज दोनों पूरी तरह से अलग हो जाएंगे.
ना चाहते हुए भी आज उसका ध्यान तनुज और ख़ुद के बीते हुए पलों को याद करने लगा था. आज वह तनुज के प्रति थोड़ी जुड़ाव सी महसूस करने लगी थी.
पिछली बार की हियरिंग में जज साहिबा ने उसे लताड़ते हुए कहा था, “शादी गुड्डे-गुड़ियों का खेल नहीं. जब मन किया खेल लिया, जब मन किया तो छोड़ दिया. आप दोनों पति-पत्नी हैं. एक बार आप दोनों एक-दूसरे को समय दीजिए और एक-दूसरे की ग़लतियां माफ़ करके देखें.”
तीन महीने का समय मिला था, लेकिन इन तीन महीनों में ना तो तनुज ने पहल दिखाई और न ही तन्वी ने.

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दोनों ही अपने पद और अहंकार के नशे में चूर थे. तन्वी एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर रही थी. तनुज भी उतनी ही बड़ी कंपनी में अच्छी तनख्वाह में काम कर रहा था.
आज कोर्ट में जाने के नाम से ही उसके मन में अजीब से ख़्याल आने लगे.
पता नहीं तनुज क्या रिएक्शन देगा? क्या कहेगा उससे. अब तनुज के बिना ही उसे पूरी ज़िंदगी गुज़ारनी है.”
फ्रेश होने के बाद वह आईने के पास आकर खड़ी हो गई. उसके बाल पूरी तरह से उलझे हुए थे. उसके ख़ुद की ज़िंदगी की तरह.
उसे अपने बालों में कंघी करने का भी मन नहीं कर रहा था. उसने अपनी आंखों को ध्यान से देखा. उसके कोर भीगे हुए थे.
नाश्ते का समय हो गया था. उसके पिता देवेश बाबू ने आवाज़ लगाई तो वह बाहर निकल कर डाइनिंग हॉल में आ गई. लगभग सभी लोग वहां बैठे हुए थे. वहां भी एक अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी.
उसे देखते ही पापा देवेश बाबू ने हल्का सा मुस्कुरा कर कहा, “आओ बेटी, बैठो नाश्ता करो.”
“जी.” वह शांति से बैठ गई. उसने ध्यान दिया, आज कोई उसे कुछ भी नहीं कह रहा था. सब अपने आप में ही व्यस्त दिखाने की कोशिश कर रहे थे.
बड़े भैया प्रणव और भाभी अदिति दोनों ही जॉब करते थे. अदिति किचन में मां की मदद करवा रही थी. वह हेल्पर की मदद से डाइनिंग टेबल पर नाश्ता रखवाने लगी.
कुणाल भी आकर बैठ गया. उसने बैठते ही सभी को गुड मॉर्निंग कहा.‌पूरे डाइनिंग टेबल पर शांति पसरी हुई थी. तन्वी भी सिर झुका कर अपना कॉफी और सैंडविच लेकर बैठ गई. आज ना उससे काॅफी पिया जा रहा था और ना सैंडविच खाया जा रहा था.

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अदिति भी उसके सामने आकर बैठ गई.
तन्वी का उतरा हुआ चेहरा और हुलिया देखकर उसकी ओर व्यंग्य से मुस्कुराते हुए अदिति ने कहा, “क्या बात है तन्वी, आज तो तुम्हारी हियरिंग है ना!”
“हम्...” हल्के से अपना सिर हिला कर तन्वी ने जवाब दिया.
“फिर तुम्हें आज तनुज की याद आ रही है क्या? अपनी शक्ल देखी हो? ना बालों में कंघी है ना आंखों में काजल. क्या हुलिया बना ली हो?”
भले ही अदिति की बात दिल से निकली हो, मगर वह तीर की तरह तन्वी के दिल में चुभ गई. वह कुछ नहीं बोली.
एक तनाव सा पसर गया था. माहौल को हल्का करने की गरज से देवेश बाबू ने कहा, “सब लोग सुनो भई, कुणाल भी शादी करने के लिए तैयार हो गया है और हमारे पास कोई ऑप्शन है नहीं, उसकी पसंद में हां में हां मिलाने के सिवाय. क्योंकि हमें भी लड़की पसंद है. कुणाल की पसंद हमारी पसंद.” वह बोलकर ज़ोर से हंसने लगे.
मगर कुणाल चिढ़ गया.
“हां पर… मैं यह सोच रहा था पापा कि शादी सादगी के साथ ही कर लूं. एक साधारण सी पार्टी कर लेते हैं. कोर्ट में शादी कर लेते हैं.”
“ऐसा क्यों?” तन्वी के मुंह से निकल गया.  
“क्यों!.." कुणाल उसकी तरफ़ घूरते हुए इस तरह से देखा कि तन्वी चुप लगा बैठी.
उसका दिमाग़ भन्ना उठा.
क्या मेरे कारण? उसने अपने आप से पूछा. ऐसा तो नहीं कि कुणाल को अपने ससुरालवालों, अपने दोस्त और कलीग्स के बीच बताते हुए शर्म आ रही है कि मेरी बहन एक डाइवोर्सी है!
तन्वी का सारा देह झुरझुरा उठा. हम कितनी भी तरक़्क़ी कर लें, लेकिन हमारी सोच वही होती है.
और वह आज तक वह किस मृग मरीचिका के पीछे भाग रही थी! यह उसका अपना घर है?
“मैं अपने घर जा रही हूं!” यही बोलकर वह शान से तनुज का घर छोड़कर निकल आई थी. आज उसके इसी अहंकार ने उसके मुंह पर तमाचा जड़ दिया था.
तब तक तन्वी की मां राधा जी भी वहां आकर बैठ गईं और फिर प्रणव भी आकर बैठ गया.
“मुझे आज कीर्तन में जाना है.नाश्ता करके मैं निकल जाऊंगी.”
“बेटा, आज तुम्हारी हियरिंग है ना?” सिर्फ देवेशजी को तन्वी की थोड़ी-बहुत चिंता थी, जो दिख रही थी.
“जी पापा.”
“मगर मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता. तुम्हें पता है कि तीन महीने से मेरे शोरूम में कितनी उठा-पटक मची हुई है. आज मैंने सारे स्टाफ की मीटिंग बुलाई है.”
अपना पल्ला झाड़ते हुए प्रणव बोला, “मेरी भी बहुत ज़्यादा अर्जेंसी है, मगर मैं तुम्हें कोर्ट तक छोड़ सकता हूं. तुम बस तैयार हो जाओ .”
“मैं तैयार हूं बस कपड़े चेंज करने हैं.”
“कैसी बात कर रही हो तुम तन्वी! ऐसे जाओगी? कहीं तुम्हें तनुज की याद तो नहीं सताने लगी. ऐसा तो नहीं की तलाक़ लेते हुए तुम फिर उसी के सपने सजा बैठी हो?” अदिति व्यंग्य से मुस्कुरा दी.
अपनी पत्नी के तीखे व्यंग्य को इग्नोर करते हुए प्रणव ने तन्वी से कहा, “कम फास्ट तन्वी, जल्दी करो. मुझे देर हो रही है. मैं तुम्हारा गाड़ी में इंतज़ार कर रहा हूं.”
प्रणव बाहर निकलकर गाड़ी में बैठ गया. तन्वी झटके से उठी और अपने कमरे में जाकर आईने के पास खड़ी हो गई. आज उसका मन कुछ भी करने का नहीं कर रहा था.
लगभग 8-10 महीने पहले वह तनुज का घर छोड़कर आ गई थी. तब से दोनों लगातार ही अलग रह रहे थे. अंततः दोनों ने अलग होने का फ़ैसला कर लिया था.
बाहर से प्रणव के कार की हॉर्न उसके कानों में पड़ रही थी. उसने अपने बालों में रबरबैंड लगाया और अपना पर्स और फाइल लेकर गाड़ी की ओर भागी. उसने सीट बेल्ट लगाकर आंखें बंद कर लिया और सीट पर सिर टिकाकर बैठ गई.
पूरे रास्ते प्रणव चुप ही रहा, एक शब्द भी नहीं बोला.
तन्वी भी आंखें बंद किए चुपचाप बैठी रही.
तनुज देवेशजी के दोस्त का बेटा था.
फैमिली फ्रेंड होने के नाते उसका घर आना-जाना लगा रहता था. दोनों के बीच बचपन से दोस्ती थी और यह दोस्ती कब प्रेम में बदल गया था, यह उसे भी नहीं पता चला था.
दोनों सजातीय थे और उस पर फैमिली फ्रेंड.
दोनों फैमिली को इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी तो चट मंगनी पट ब्याह हो गई थी.
तन्वी तनुज का साथ पाकर बहुत ख़ुश थी. उसे अपना प्यार मिल गया था. ससुराल भी जान-पहचान का था तो सब तन्वी को हाथों हाथ लिए रहते थे.
तन्वी और तनुज दोनों ही एक बहुत अच्छी कंपनी में जॉब कर रहे थे. दोनों अपनी ज़िंदगी से बहुत ख़ुश थे. कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन जब धरातल में ज़िंदगी आने लगी तो तनुज अब व्यावहारिक हो चला था. वह तन्वी का पति बन गया था.
दोनों के बीच बात-बात पर बहस होने लगी. दोनों के खयालात एक-दूसरे से उलट पड़ रहे थे. तन्वी को घर के काम करना पसंद नहीं था. तनुज चाहता था कि तन्वी कम से कम एक समय उसे अपने हाथों से खाना बनाकर खिलाए. उसकी पर्सनल केयर करे.
मगर तन्वी को यह सब पसंद नहीं था. उसे लगता था कि शादी के बाद तनुज उसके ऊपर कुछ ज़्यादा ही हावी हो रहा है और अपनी डिक्टेटरशिप लाद रहा है.
धीरे-धीरे दोनों के बीच लड़ाइयां बढ़ने लगी.
एक दिन तनुज ने ग़ुस्से में कह दिया, “यह मेरा घर है. यहां तुम्हारी मर्ज़ी नहीं चलेगी.” और तन्वी भी गुस्से में बोल दिया था, “अगर यह तुम्हारा घर है तो फिर रहो अपने घर में, मैं अपने घर जा रही हूं!”
और बड़ी शान से अपने सामान उठाकर अपने पापा के घर आ गई थी.
उसके जाने के बाद तनुज भी घमंड में भरकर उसके पास तलाक़ का नोटिस भिजवा दिया था. कुछ दिनों तक दोनों परिवारों ने दोनों की सुलह कराने के लिए कोशिश भी की, मगर दोनों ही अपने ज़िद पर अड़े हुए थे. कोई भी झुकने के लिए तैयार नहीं था.
वह पिछले आठ-दस महीने से कोर्ट और केस के चक्कर लगा रही थी.
वकीलों ने उसके और तनुज के बीच के रिश्ते को हर दृष्टिकोण से छीछालेदर कर दिया था. इतना ज़्यादा कि रिश्तों की किर्चें तन्वी  को चुभने लगे थे.
उसे ऐसा लगने लगा था कि इस रिश्ते से वह जितना जल्दी हट जाए, उसके लिए उतना ही अच्छा रहेगा.
मगर आज घर के इस माहौल ने उसके ऊपर वज्रपात कर दिया था. जिस शान से वह तनुज का घर छोड़ कर आई थी कि मैं अपने घर जा रही हूं! आज वही मृग मरीचिका सा लगने लगा था.
“मेरा घर यह तो हो ही नहीं सकता, कभी भी नहीं!” वह बुदबुदा उठी.
तभी कार की लंबी हॉर्न बजने लगी और तन्वी अपने विचार श्रृंखला से बाहर आ गई. प्रणव उसकी ओर घूर रहा था.
“क्या बात है तन्वी! कहां खोई हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना!”
“हम्म... बस थोड़ा हेडेक है!” उसने सीट बेल्ट हटाकर गाड़ी का दरवाज़ा खोलते हुए कहा.
प्रणव ने गाड़ी रोकते हुए कहा, “आज मेरी इंपॉर्टेंट मीटिंग है. मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता. सॉरी! आज तुम्हें अपने आप मैनेज करना होगा.”
“कोई बात नहीं मैं कर लूंगी.”
जैसे उसने गाड़ी का दरवाज़ा बंद किया प्रणव तेजी से कार को बैक कर आगे निकल गया.
उसने कुछ कहने की ज़रूरत भी नहीं समझी! आज उसकी बहन किस मानसिक स्थिति से गुज़र रही है, इसके लिए कोई भी उसके साथ खड़ा नहीं है? कहने को दो भाई हैं, माता-पिता हैं, एक भाभी है, मगर कोई भी उसके साथ नहीं! आज मेरी ज़िंदगी का फ़ैसला होने वाला है. और शायद एक फ़ैसला और हो गया कि मैं अपनी ही घर में बोझ हूं. उस घर में मेरा कोई वजूद नहीं.
तन्वी का मुंह कसैला हो गया. वह कोर्ट रूम की तरफ़ बढ़ गई. एक बंद कमरे में जहां आज उसके भाग्य का फ़ैसला होने वाला था.
उस कमरे में दो-तीन कुर्सियां रखी हुई थीं. उसके वकील ने उसे ले जाकर बैठा दिया. थोड़ी देर बाद तनुज भी वहां आ गया था.
तन्वी ने उसकी और देखा. उसकी दाढ़ी बड़ी हुई थी. बाल भी बेतरतीब थे. वह कहीं खोया हुआ, उलझा हुआ सा लग रहा था. ऐसा लग रहा था कि वह रात में बहुत रोया हो!
“क्या बात है तन्वी, तुम बहुत ही उदास लग रही हो?” जैसे ही तनुज की नज़र उस पर पड़ी वह चिंतित हो उठा.
“मुझे शायद फीवर है!” तन्वी ने उदास मन से कहा .
“अरे फिर तुमने दवा लिया कि नहीं?”
“नहीं!”
“क्या यार क्या करती हो? अपना केयर नहीं रख सकती कभी भी. अभी तक तुम्हारी आदत नहीं गई?” तनुज उसके पास आकर उसकी माथा छूकर बोला. "तुम्हें सच में बुखार है. मैं तुरंत तुम्हारे लिए क्रोसिन लेकर आता हूं.”
कुछ कहने से पहले ही वह तेजी से बाहर निकल गया और पास के केमिस्ट से क्रोसिन की टेबलेट और पानी की बोतल लेकर आ गया.
“लो जल्दी से दवा खा लो!” तन्वी ने दवा निगल लिया.

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पहली बार उसे ऐसा लग रहा था कि वह कड़वी दवाई नहीं कोई मिठाई खा रही है.
थोड़ी देर बाद जज साहिबा भी आकर सामने चेयर पर बैठ गईं.
उन्होंने अपने मोटे चश्मे से दोनों को घूरते हुए देखा, फिर बोलीं, “तो आप दोनों ने क्या फ़ैसला किया?”
दोनों ही चुप रहे.
उन दोनों को चुप देखकर वह ग़ुस्से में बोलीं, “आप दोनों एक उच्च पद पर काम करते हैं. पढ़े-लिखे अच्छे फैमिली से बिलॉन्ग करते हैं, फिर भी आप दोनों एक नासमझ कपल हैं. आपसे बेहतर तो फुटपाथ पर रहने वाले, झुग्गियों में रहने वाले मजदूर हैं, कम से कम उन्हें अपने रिश्तों के बारे में तो पता है, उनकी अहमियत के बारे में पता है. पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा होता है कि एक और एक मिलकर ग्यारह हो सकते हैं और ना भी हुए तो दो तो हो ही जाते हैं. आप दोनों दो नहीं एक हैं! यह कब समझेंगे?
इसी गहराई को समझने के लिए मैंने आप दोनों को तीन महीने का समय दिया था. फिर भी आप लोगों को समझ में नहीं आया कि आप दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी हैं. कैसे पति-पत्नी हैं आप? कोई झुकने को तैयार ही नहीं?”
“नहीं मैं झुकने को तैयार हूं! मैं तनुज से माफ़ी मांगने को तैयार हूं. मुझसे ग़लती हो गई. तनुज जो चाहेगा वही मैं करूंगी.” तन्वी की आंखें भर आई थीं.
“दैट्स गुड! यह है स्मार्ट वाइफ की निशानी.” जज साहिबा मुस्कुराईं.
“मैं भी माफ़ी मांगने के लिए तैयार हूं. मैंने महसूस कर लिया इतने दिनों में कि मैं तन्वी के बगैर नहीं रह सकता.” तनुज की आवाज़ भर्रा गई थी.
“मैं भी यही चाहती हूं. तुम दोनों अपने पद और पैसे को किनारे रख दो और रिश्तो के गहराइयों में उतर कर देखो तो पता चलेगा कि तुम दोनों दो नहीं एक हो. तभी तो पति-पत्नी को एक कहा जाता है.”
“बिल्कुल सही!”‌ दोनों वकीलों ने एक-दूसरे का हाथ मिलाया और गले से लगा लिया.
एक-दूसरे को बधाई देते हुए कहा, ”हमारे पास कई तरह के केस आते हैं सर, लेकिन ऐसे केसेस में हम हारना ही पसंद करते हैं. हमें दिलों को तोड़ना मंज़ूर नहीं.”
“क़िस्मत से एक अच्छा जीवनसाथी मिलता है और अपनी ग़लती से उसे खोना कोई बुद्धिमानी नहीं.”
“आप दोनों बिल्कुल सही कह रहे हैं. मैं यह भूल गई थी कि मैं अब एक पत्नी हूं. पहले मैं उसकी गर्लफ्रेंड थी, मगर शादी के बाद अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास नहीं था मुझे. मैं अब तक तनुज को वही समझ रही थी जैसा पहले समझती थी. उसकी टोका-टोकी मुझे अच्छी नहीं लगती थी, मगर अब अपनी ग़लती का एहसास हो गया है!” तन्वी सिसक उठी.
“मुझे भी! मैं तन्वी से कुछ ज़्यादा ही उम्मीदें लगा बैठा था और भूल गया था कि वह मेरी पत्नी है. अब मैं शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा.”
“बस, अंत भला तो सब भला!”आप दोनों अब जाइए अपने घर.” दोनों वकीलों ने कहा.
“तो हम दोनों घर चलें तन्वी?” तनुज का चेहरा खिल उठा था.
“हां तनुज मैं अपने घर जाना चाहती हूं. तुम्हारे साथ!”
तन्वी ने तनुज का हाथ थाम लिया और तनुज ने तन्वी का. दोनों अपने घर की ओर बढ़ चले.

- सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

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