क्या है सेल्फीटिस?
बार-बार सेल्फी लेना और सोशल मीडिया पर पोस्ट करना एक गंभीर मानसिक अवस्था है, जिसे सायकोलॉजिस्ट्स ने ‘सेल्फीटिस’ का नाम दिया है. पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल 2014 में किया गया, जब अमेरिकन सायकैट्रिक एसोसिएशन इसे डिस्ऑर्डर घोषित करने पर विचार कर रही थी. इसके बाद नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी और थियागराजर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट ने अमेरिकन रिसर्च में कितनी सच्चाई है, उसका पता लगाने के लिए आगे स्टडी की. अपनी स्टडी में इन्होंने पाया कि वाक़ई ‘सेल्फीटिस’ एक मानसिक विकार है. इसके बाद रिसर्चर्स ने एक बिहेवियर स्केल बनाया, ताकि इस बात की जांच की जा सके कि सेल्फीटिस किस लेवल पर है.सेल्फीटिस के लेवल्स
बॉर्डरलाइन: दिनभर में कम से कम 3 बार सेल्फी लेना, पर उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट न करना. अगर आप भी सुबह, दोपहर, शाम सेल्फी लेते हैं, तो समझ जाइए कि आप बॉर्डरलाइन पर हैं. अक्यूट: दिनभर में कम से कम 3 बार सेल्फी लेना और हर बार सोशल मीडिया पर पोस्ट करना गंभीर अवस्था है. अगर आप ऐसा कुछ करते हैं, तो इसे अवॉइड करना शुरू करें. क्रॉनिक: दिनभर सेल्फी लेने से ख़ुद को रोक न पाना. बार-बार सेल्फी लेते रहना और सोशल मीडिया पर 6 बार से ज़्यादा पोस्ट करना क्रॉनिक लेवल है. इन पर सेल्फी लेने का जुनून हर व़क्त सवार रहता है. इंटरनेशनल जरनल ऑफ मेंटल हेल्थ में छपी स्टडी में इस बात की पुष्टि की गई है कि सेल्फीटिस एक मेंटल या सायकोलॉजिकल डिस्ऑर्डर है. हालांकि अभी भी कुछ लोग हैं, जो इसका विरोध कर रहे हैं. उनके मुताबिक किसी भी रवैये को नाम देने भर से वह विकार में परिवर्तित नहीं हो जाता.यह भी पढ़ें: ‘वाहन’ से जानें किसी भी वाहन की जानकारी
सेल्फीटिस बिहेवियर स्केल
ख़ुद को 1-5 तक की रैंकिंग दें, जहां 5 का मतलब है आप उस बात से पूरी तरह सहमत हैं, वहीं 1 का मतलब है कि आप उससे बिल्कुल सहमत नहीं. आपका स्कोर जितना ज़्यादा होगा, सेल्फीटिस की संभावना उतनी ज़्यादा होगी. - सेल्फी लेने से मेरा मूड अच्छा हो जाता है. - फोटो एडिटिंग टूल्स का इस्तेमाल करती हूं, ताकि दूसरों से बेहतर दिख सकूं. - इससे मैं कॉन्फिडेंट महसूस करती हूं. - अलग-अलग पोज़ेज़ में सेल्फी शेयर करने पर मेरा सोशल स्टेटस बढ़ जाता है. - सेल्फी पोस्ट करते रहने से मैं ख़ुद को पॉप्युलर महसूस करती हूं. - इससे मेरा तनाव दूर होता है. - ज़्यादा सेल्फी पोस्ट करती हूं, ताकि ज़्यादा लाइक्स और कमेंट्स मिलें. - सोशल मीडिया पर दोस्तों की तारीफ़ सुनने के लिए सेल्फी पोस्ट करती हूं. - ख़ूब सेल्फी लेती हूं, फिर अकेले में देखती हूं, इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है. - अगर सेल्फी नहीं लेती हूं, तो अपने पीयर ग्रुप से अलग-थलग महसूस करती हूं.सेल्फी न बन जाए ‘किलफी’
हाल ही में हुए एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि पूरी दुनिया में सेल्फी लेने के चक्कर में सबसे ज़्यादा लोगों की मौत भारत में ही होती है, जिसे ‘किलफी’ कहते हैं. इस बात की गंभीरता का पता इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया में होनेवाली सभी सेल्फी डेथ्स के 50% मामले भारत में होते हैं. - 2014-2016 के बीच सेल्फी के कारण 127 मौतें हुईं, जिनमें से 76 इंडिया में हुईं. - ज़्यादातर सेल्फी डेथ का कारण समंदर या नदी में सेल्फी लेते हुए या टू व्हीलर पर स्टंट करते हुए या फिर बिल्डिंग से गिरने से हुई.क्या है सोल्यूशन?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, क्योंकि यह एक एडिक्शन या लत है, इसलिए इसे छुड़ाने के लिए सायकोलॉजिस्ट्स वही तरीक़ा अपनाते हैं, जो व्यसन मुक्ति के लिए किया जाता है. - सेल्फी लें, पर कोशिश करें कि सोशल मीडिया पर पोस्ट न करें. - ख़ुद को कैमरे के लेंस से देखना बंद करें. आप जैसे हैं, वैसे ख़ुद को स्वीकारें. - अगर आप ख़ुद को कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं, तो किसी मनोचिकित्सक से मिलें.- दिनेश सिंह
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