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फिक्सड डिपॉज़िट से सुरक्षित करें भविष्य (Secure Your Future With Fixed Deposit)
फिक्स्ड डिपॉज़िट (Fixed Deposit) (एफडी) एक ऐसा फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट है, जिसके ज़रिए इन्वेस्टर्स को सामान्य सेविंग्स अकाउंट्स की तुलना में ज़्यादा ब्याज (Interest) मिलता है. यह बहुत ही सुरक्षित इन्वेस्टमेंट माना जाता है. वैसे तो एफडी हर हाल में एक बेहतरीन विकल्प माना जाता है, लेकिन एफडी की जमा रक़म को आप मेच्योरिटी पीरियड के बाद ही निकाल सकते हैं.
एफडी आपकी गाढ़ी मेहनत की कमाई को सुरक्षित रखकर आपको सेविंग्स अकाउंट की तुलना में ज़्यादा ब्याज दिलाता है. ये पूरी तरह से रिस्क फ्री रिटर्न्स हैं. कुछ बैंक एफडी होल्डर्स के लिए कुछ अतिरिक्त सेवाएं, जैसे- एफडी सर्टिफिकेट पर वाजिब रेट पर लोन आदि की सुविधा प्रदान करते हैं. ब्याज दर का रेट 4 से 11% हो सकता है. एफडी की अवधि 10, 15 या 45 दिन, डेढ़ साल, पांच साल या अधिकतम 10 साल हो सकती है. ये इन्वेस्टमेंट्स पोस्ट ऑफिस स्कीम से ज़्यादा सुरक्षित होते हैं, क्योंकि ये ‘डिपॉज़िट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी स्कीम ऑफ इंडिया’ के तहत सुरक्षित हैं. इसके अलावा एफडी इन्वेस्टमेंट्स इन्कम टैक्स व वेल्थ टैक्स से जुड़ी सुविधाएं भी प्रदान करते हैं.
एफडी के प्रकार
1. सिंपल (सामान्य) एफडी: आमतौर पर भारत में एफडी का ब्याज हर तीसरे महीने में दिया जाता है. ब्याज को या तो ग्राहक के सेविंग्स अकाउंट में जमा कर दिया जाता है या फिर चेक के ज़रिए उन्हें भेज दिया जाता है. इसे सिंपल एफडी कहते हैं.
2. क्युमूलेटिव (संचयी) एफडी: इस तरह के एफडी में एफडी होल्डर ब्याज की रक़म को दोबारा एफडी अकाउंट में इन्वेस्ट कर देता है. इसमें जमा रक़म को क्युमूलेटिव एफडी कहते हैं. इस तरह के डिपॉज़िट्स में ब्याज की रक़म इन्वेस्टमेंट की रक़म के साथ एफडी की मेच्योरिटी पर दी जाती है.
इन्कम टैक्स रेग्युलेशन्स के मुताबिक अगर एफडी की मेच्योर रक़म 20 हज़ार रुपए से ज़्यादा है, तो उसका पेमेंट कैश में नहीं किया जाएगा. इसे ‘अकाउंट पेयी’ या ‘क्रॉस चेक’ के ज़रिए दे सकते हैं या फिर कस्टमर के सेविंग्स या करंट अकाउंट में जमा कर सकते हैं.
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एफडी के फ़ायदे
- अगर आपके पास अतिरिक्त जमा रक़म है, तो उसे सेविंग्स अकाउंट में रखने की बजाय फिक्स्ड डिपॉज़िट के अकाउंट में डाल दें. इस तरह आपको पहले से ज़्यादा ब्याज मिलेगा.
- एफडी होल्डर्स एफडी अमाउंट के 80 से 90% वैल्यू डिपॉज़िट पर लोन ले सकते हैं. लोन का ब्याज दर डिपॉज़िट के ब्याज दर का 1 से 2% हो सकता है.
- भारत के नागरिक कम से कम 3 महीने के लिए ये अकाउंट खोल सकते हैं.
- फिक्स्ड डिपॉज़िट्स में कम्पाउंडिंग पावर यानी जमा करने की ख़ासियत होती है. जमा की गई रक़म पर मिलनेवाले ब्याज को दोबारा इन्वेस्ट करके फिक्स डिपॉज़िट पर ज़्यादा से ज़्यादा रक़म कमाई जा सकती है.
- किसी बैंक में फिक्स्ड डिपॉज़िट होने से आपके लिए उस बैंक से फाइनेंशियल ट्रांज़ैक्शन्स करना आसान हो जाता है.
- किसी भी बैंक में फिक्स डिपॉज़िट अकाउंट खोलने से पहले बाकी बैंकों की स्कीम्स के साथ तुलना ज़रूर कर लें.
यहां एक बात यह भी गौर करनेवाली है कि अगर एफडी पर दिया जानेवाला ब्याज़ एक साल में 10 हज़ार से ज़्यादा हो जाए, तो उस पर टैक्स भी लगता है. इन्कम टैक्स रेग्युलेशन्स के तहत बैंक सीधे आपके फिक्स्ड डिपॉज़िट से ही टैक्स काटकर आपको टीडीएस सर्टिफिकेट इश्यू करते हैं.
कैसे करें फिक्स डिपॉज़िट?
फिक्स डिपॉज़िट करने की प्रक्रिया बहुत ही आसान है. इसके लिए ज़्यादातर बैंकों ने न्यूनतम शुरुआती रक़म 10 हज़ार रुपए रखी है. शहर-गांव व उनकी इन्कम आदि को ध्यान में रखकर अलग-अलग बैंक के लिए यह रक़म अलग-अलग हो सकती है. गांव में रहनेवाले लोगों को भी इसकी तरफ़ आकर्षित करने के लिए उन्हें काफ़ी रियाइतें दी जाती हैं. डॉक्यूमेंट्स के तौर पर आपको आइडेंटिटी प्रूफ, रेसिडेंट प्रूफ, सिग्नेचर प्रूफ व सीनियर सिटिजन के मामले में एज प्रूफ देना पड़ता है.
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