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विज्ञान कथा- विकल्प (Science Fiction- Vikalp)

अब स्क्रीन पर ग्रह के दृश्य उभरने लगे थे. अचानक हम चौंक गए. स्क्रीन पर अनूठा दृश्य आ रहा था. दृश्य किसी मैदान का था. कुछ बच्चे खेल रहे थे. अनूठे बच्चे… छोटे-छोटे हाथ-पैर, कमज़ोर शरीर और एक बड़ा बेडौल-सा सिर. दृश्य एक बालक पर केंद्रित हुआ. प्रो. ने कंप्यूटर को गहराई से उस बच्चे का अध्ययन करने का निर्देश दिया. अचानक बच्चा अनियंत्रित गति से वयस्क होने लगा, फिर बूढ़ा हुआ, अंतत मर गया. हम लोग स्तब्ध रह गए. इसे देख कर ऐसा लग रहा था गोया किसी वीडियो फिल्म को तीव्र गति दे दी गई हो.

अंतरिक्ष यान में सफ़र करते हुए एक लंबा वक़्त गुज़र चुका था और हम प्योरिकन के काफ़ी नज़दीक आ चुके थे. ज्यों-ज्यों हम उस अनजान ग्रह के निकट पहुंच रहे थे प्रो. भास्करन के चेहरे की चमक बढ़ती जा रही थी.
"इस विचित्र ग्रह की खोज मेरे पिता ने की थी. वे मूल नीग्रो जाति के थे, पर मेरी मां भारतीय थीं. जब मैं काफ़ी छोटा था, तब ही मेरी मां चल बसी थीं. उनकी याद को ताज़ा रखने के लिए पापा ने इस ग्रह का नाम प्योरिकन रखा…" प्रो. अपनी धुन में बताए जा रहे थे.
"क्या नाम था उनका?" मैंने बीच में ही टोका.
"प्रियंका, पर पापा उन्हें 'प्यारी' नाम से पुकारते थे." फिर प्रो. उस ग्रह का अध्ययन करने लगे. यह अपनी पृथ्वी से क़रीब 6.5 प्रकाश वर्ष दूर है. प्रकाश एक सेकंड में 2,99,776 कि.मी. की दूरी तय करता है और एक वर्ष में लगभग साढ़े तीन करोड़ सेकंड होते हैं. इस तरह हम लोग अरबों कि.मी. की दूरी तय कर चुके थे.
अब स्क्रीन पर ग्रह के दृश्य उभरने लगे थे. अचानक हम चौंक गए. स्क्रीन पर अनूठा दृश्य आ रहा था. दृश्य किसी मैदान का था. कुछ बच्चे खेल रहे थे. अनूठे बच्चे… छोटे-छोटे हाथ-पैर, कमज़ोर शरीर और एक बड़ा बेडौल-सा सिर. दृश्य एक बालक पर केंद्रित हुआ. प्रो. ने कंप्यूटर को गहराई से उस बच्चे का अध्ययन करने का निर्देश दिया. अचानक बच्चा अनियंत्रित गति से वयस्क होने लगा, फिर बूढ़ा हुआ, अंतत मर गया. हम लोग स्तब्ध रह गए. इसे देख कर ऐसा लग रहा था गोया किसी वीडियो फिल्म को तीव्र गति दे दी गई हो.


"प्रो. मुझे तो लगता है, यहां समय अनियमित हो गया है. आपको याद है न… मैंने आपको जे. जी. बलार्ड की एक किताब पढ़ने को दिया था- 'मेमोयर्स ऑफ स्पेस एज' उसमें किसी शहर में समय के अनियमित होने का उल्लेख है. यहां कहीं ऐसी ही बात तो नहीं…"
"… अरे नहीं. वो तो मात्र एक विज्ञान कथा है." प्रो. भास्करन ने मेरी बात को काटते हुए कहा.
"पर प्रो. कल का साइंस फिक्शन ही तो आज का सच है. दो-तीन सौ वर्ष पहले हवाई जहाज, कंप्यूटर आदि की तो कल्पना ही की जाती थी. कई विज्ञान कथाएं सच सावित हुई हैं." मैं बताए जा रहा था, पर प्रो. का ध्यान मेरी तरफ़ नहीं था. वह उस ग्रह का पृथ्वी से तुलनात्मक अध्ययन करने में व्यस्त थे. कंप्यूटर से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस सौर मंडल में इस प्योरिकन के अतिरिक्त छह अन्य ग्रह भी थे. यह पृथ्वी से कुछ अधिक पुराना था. यहां ऑक्सीजन और नाइट्रोजन की मात्रा काफ़ी कम रह गई थी.
"प्रो. अब तक हम इस ग्रह के तीन चक्कर लगा चुके हैं, पर हमें कोई भी संकेत नहीं मिला है. कहीं क्वासिर भूल तो नहीं गए." मैंने प्रो. का ध्यान भंग किया. क्वासिर प्योरिकन के जाने-माने वैज्ञानिक थे.
"हो भी सकता है. उनके बुलाने के एक वर्ष के बाद हम प्योरिकन तक पहुंच सके हैं. दूरी ही इतनी है कि हम क्या कर सकते हैं." फिर कुछ रूक कर प्रो. ने कहा, "मुझे लगता है कि क्वासिर…" तभी कंप्यूटर से बीप-बीप की आवाज़ आने लगी. स्क्रीन पर कुछ संकेत आ रहे थे. हां, यह संकेत क्वासिर का ही था, जो हमारे यान को उतरने की अनुमति दे रहा था.

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हमारा अंतरिक्ष यान गोलाकार चक्कर लगाते हुए प्योरिकन की धरती पर उतर चुका था. दूर से हरा दिखनेवाला प्योरिकन भयावह और उजाड़ लग रहा था. दूर-दूर तक सपाट भूमि थी और वातावरण भी काफ़ी गर्म था. उमस भरी हवा में चिपचिपाते हम इधर-उधर ताक रहे थे.
"हमारे सम्मानित मेहमानों, आपका स्वागत है." तभी एक आवाज़ आई. हम लोगों ने इधर-इधर देखा. सिवाय हमारे अंतरिक्ष यान के दूर-दूर तक कुछ भी नहीं था. पुन वही आवाज़ आई, "आपको हुई असुविधा के लिए खेद है. कुछ ही देर में आप सब कुछ देखने में समर्थ हो जाएंगे."
फिर धीरे-धीरे सब कुछ स्पष्ट दिखने लगा. हम एक विशाल प्रयोगशाला के सामने थे. हम अंदर प्रविष्ट हुए. प्रयोगशाला सैकड़ों मीटर तक फैली थी. सामने एक केबिन था. अंदर छोटे-छोटे हाथ-पैर, कमज़ोर शरीर और एक बड़ी खोपड़ीवाला क्वासिर इतना दुर्बल था कि वह केवल बोल ही सकता था. केबिन का कांच के अदृश्य होने पर हम अंदर गए.
"मैं हज़ारों वर्षों से ऐसा ही हूं." क्वसिर ने बताया.
सुनकर हमें आश्चर्य हुआ और पुराने ऋषि-मुनियों की याद आ गई.
"क्या, यहां की पूरी धरती ऐसी ही है…" प्रो. भास्करन ने आश्चर्य और अधीरता से पूछा.
"नहीं, यह मेरी प्रयोगशाला है. बाहरी शत्रुओं से रक्षा के लिए मैंने इस स्थान को ऐसा बनाया है. मेरी इच्छा के बिना आप यहां कुछ भी नहीं देख सकते." क्वासिर ने कहा.
"आपकी ऐसी स्थिति कैसे हो गई..?" मैंने क्वासिर की हालत देख कर पूछा.
"सुनाता हूं. कृपया, आप लोग भी बैठ जाएं." उसने बैठ जाने का इशारा किया. वह सामान्य होने की कोशिश कर रहा था. उसकी सांसें बंद थी, लेकिन वह बिल्कुल ठीक था.
"मैं इस ग्रह का बड़े वैज्ञानिकों में से एक हूं. हमारे सौर मंडल में और भी ग्रह हैं. पर उन पर जीवन का नामो-निशान नहीं है. हमारा विज्ञान द्रूत गति से उन्नति कर रहा था. एक तरफ़ हमारी आबादी तेजी से बढ़ रही थी, वहीं दूसरी ओर वनस्पति कम होती जा रही थी. इसके कारण हमारे ग्रह पर ऑक्सीजन की मात्रा काफ़ी कम हो गई. पर मानव भी अद्भुत जीव है. वह कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी स्वयं को उसके अनुकूल ढाल लेता है. हम लोगों ने पेड़-पौधों से प्रकाश-संस्लेषण का गुण सीखा. इससे हम बिना ऑक्सीजन के भी रहने में सक्षम हो पाए, लेकिन बाकी जीव ऐसा करने में असमर्थ साबित हुए और अंतत लुप्त हो गए."
"यहां प्रत्येक मानव ज्ञान और केवल ज्ञान चाहने लगा था. वह अधिक से अधिक मानसिक कसरत करने लगा. बाकी सारे कार्य कंप्यूटर और रोबॉट द्वारा होने लगा. हम इतने विकसित हो चुके थे कि केवल मानसिक तरंग से ही कंप्यूटर नियंत्रित होने लगा था. हमारे चाहने भर से ही कोई भी कार्य हो सकता था."


"पर बाद में हमें अपने भूल का एहसास हुआ. छोटे-बड़े सभी कार्यों को कंप्यूटर ही अंजाम देते थे. शारीरिक श्रम नहीं करने के कारण हमारा शरीर कमज़ोर होता चला गया. स्त्रियां बच्चों को जन्म देने असक्षम हो गईं. प्रयोगशाला में परखनली शिशु बनाए जाने लगे, पर हम मृत्यु पर विजय नहीं पा सके थे. दूसरी तरफ़ परखनली शिशु भी प्रदूषण से लड़ने में असक्षम साबित हुए. हमारे पास सारी सुविधाएं थीं, पर हमें अपना अस्तित्व ही संकट में पड़ा नज़र आने लगा." "अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हमने एक विकल्प की खोज की. हमने मानव मस्तिष्क से निकलनेवाली विभिन्न तरंगों का संपर्क सुपर कंप्यूटर से स्थापित कर दिया. साथ ही शरीर के जीवन की आवश्यक क्रियाओं को नियंत्रित करनेवाले जींस, हार्मोंस, एन्जाइम्स जैसे तत्वों को कंप्यूटर के सहारे अपने नियंत्रण में कर लिया. इस तरह अपने जीवन काल को हमने अपने वश में कर लिया. हमने बुढ़ापा और मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली थी."
"यह एक विस्तृत कंप्यूटर नेटवर्क द्वारा ही संभव हो सका. इस कार्य को नियंत्रित करने का भार मुझे और मेरे साथ पांच अन्य वैज्ञानिकों को सौंपा गया, पर सुपर कंप्यूटर में कुछ तकनीकी गड़बड़ी आ जाने के कारण उन पांचों की मृत्यु हो चुकी है." क्वासिर शून्य की ओर देखते हुए बोल रहा था.
"लेकिन यह सब हुआ कैसे..?" प्रो. भास्करन ने असहाय क्वासिर की तरफ़ गौर से देखते हुए पूछा.
"बताता हूं…" थके हुए क्वासिर ने कुछ रूक कर फिर से कहना शुरू किया, "समय की गति भी अजीब होती है. क़रीब दस हज़ार वर्षों तक हमने सुपर कंप्यूटर को अपनी मानसिक तरंगों के नियंत्रण में रखा, पर आज से दो वर्ष पहले सुपर कंप्यूटर में कुछ तकनीकी ख़राबी आ गई. हम लोग काफ़ी प्रयास के बावजूद उसे नियंत्रित करने में सफल नहीं हो पाए. अब स्थिति यह है कि यहां सभी की उम्र अनियमित, अनियंत्रित और अनिश्चित हो गई है. कोई पल भर में अपनी पूरी ज़िंदगी जी लेता है, तो कोई महीनों तक अपने जीवन का आधा मिनट भी नहीं गुज़ार पाता." इतना कह कर क्वासिर चुप हो गया.
"आपने तो बचाव के उपाए किए ही होंगे." मैंने पूछा.
"हां, मैंने अन्य सौर मंडलों के ग्रहवासियों को ख़बर की. वहां से वैज्ञानिक आए भी, पर यहां की स्थिति देखकर उन्हें समय की अनियमितता का आभास हुआ और वे उल्टे पांव लौट गए. मुझे तो लग रहा था कि आप भी लौट जाएंगे, पर आप आए. मेरी मृत्यु का भी कोई ठिकाना नहीं है." क्वासिर के चेहरे पर उदासी साफ़ झलक रही थी. उसने आगे कहा, "इस संकट से बचने का विकल्प अब आप ही ढूंढ़ सकते हैं."
"मैं पूरी कोशिश करूंगा." हम लोगों ने क्वासिर को विश्वास दिलाते हुए कहा.


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क्वासिर के साथ हम कई दिनों तक सुपर कंप्यूटर की ख़राबी तलाशने और उसे ठीक करने का प्रयास करते रहे, पर हमें कोई सफलता नहीं मिली. वास्तव में वहां का विज्ञान पृथ्वी की तुलना में काफ़ी आगे था. आख़िर में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पूरे कंप्यूटर नेटवर्क को ही नष्ट कर दिया जाए.
यह सुनकर थका हुआ क्वासिर का चेहरा और भी उदास और चिंतित हो गया. वैसे भी समय और चिंता ने उसके चेहरे को भावहीन और कांतिहीन कर दिया था.
"सुपर कंप्यूटर नेटवर्क के नष्ट होते ही हमारे सभी प्रकार के कंप्यूटर नष्ट हो जाएंगे, क्योंकि हमने जीवन काल संबंधी नेटवर्क को अलग से स्थापित नहीं किया है. हम विज्ञान की दृष्टि से लाखों वर्ष पीछे चले जाएंगे. हमारा सारा तकनीकी ज्ञान इन्हीं कंप्यूटरों में क़ैद है. इतने दिनों में भले ही हमने अपना शारीरिक विकास काफ़ी हद तक कर लिया है. हमारी प्रजनन क्षमता भी अब सामान्य है, पर हम फिर से आदि काल में जाने की स्थिति में आ गए हैं." क्वासिर निराशा के सागर में था.
हम लोग प्रयोगशाला से निकल कर मुख्य कंप्यूटर चैंबर की ओर चल पड़े. वह शहर से अस्सी किलोमीटर दूर था. हाइड्रोजन चालित कार से हम वहां के लिए निकलें. कंप्यूटर से नियंत्रित होनेवाली कार में शायद क्वासिर की यह अंतिम यात्रा थी.
रास्ते का दृश्य अजीबोगरीब था. एक व्यक्ति मूर्ति की भांति चलती हुई अवस्था में गतिहीन था. कंप्यूटर की ख़राबी के कारण वह कुछ सोचने में भी असक्षम था. तभी एक बच्चा अनियंत्रित गति से वयस्क होने लगा और देखते ही देखते बूढ़ा होकर मर गया. सब कुछ देखकर समय की अनियमितता का आभास अब नहीं हो रहा था. यहां तो सभी की ज़िंदगी और मौत ही अनिश्चित और अनियंत्रित थी. अगर कोई सामान्य था, तो वह महज़ ही एक इत्तफ़ाक था.
कुछ ही देर में हम लोग मुख्य कंप्यूटर चैंबर में थे. क्वासिर के निर्देश पर प्रो. ने एक डाटा का निर्माण किया. क्वासिर ने एंटर दबाया. कंप्यूटर से बीप… बीप… की तेज आवाज़ आने लगी. एकाएक सारे कंप्यूटरों ने काम करना बंद कर दिया. क्वासिर के मुख से ख़ुशी और दुख मिश्रित एक चीख निकल गई. प्योरिकन नाम के इस ग्रह पर विज्ञान के नाम पर कुछ भी नहीं बचा था. सारे उपकरण अब मॉडल मात्र थे.
वर्षों तक विज्ञान को भोगनेवाले प्योरिकनवासी पल भर में लाखों वर्ष पीछे वाली अवस्था में आ गए थे, पर अब सभी अनियंत्रित और अनिश्चित जीवन और मृत्यु से बहुत-बहुत दूर थे. क्वासिर की कार भी अब बेकार हो चली थी. तभी कई प्योरिकनवासी भी आ चुके थे. उनके चेहरे पर विज्ञान के खोने के ग़म से ज़्यादा नई ज़िंदगी पाने की ख़ुशी थी. क्वासिर के चेहरे पर से अब उदासी के बादल भी छंट गए थे.
"हम यह काम पहले भी कर सकते थे, पर तब हमारा बाहरी दुनिया से हमेशा के लिए संपर्क कट जाता." क्वासिर ने कहा. प्योरिकनवासियों द्वारा पृथ्वी से वैज्ञानिकों और शिक्षकों के एक दल भेजने के अनुरोध को स्वीकार कर हम लोग विदा हुए. मैं और प्रो. भास्करन सोच रहे थे कि क्या कभी हम पर भी ऐसा संकट आ सकता है… तब क्या कोई अन्य ग्रह हमारी सहायता करेगा और तब हम क्या विज्ञान रहित जगत में लौटना स्वीकार कर पाएंगे!

देवांशु वत्स

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Photo Courtesy: Freepik

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