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कहीं हमेशा के लिए ना छिन जाए आपकी आंखों की रोशनी (Retinal Disease And Its Prevention)

आंख हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें सबसे नाजुक होता है रेटिना, जो आंख का पिछला पर्दा है. इसकी मदद से ही हम सामने होनेवाली हलचल को देख और समझ पाते हैं. आमतौर पर रेटिनल बीमारी के लक्षणों में दर्द नहीं होता. एक आंख का रेटिना ख़राब हो जाए, तो दूसरी अच्छी आंख इसकी क्षतिपूर्ति करती है, इसलिए मरीज़ इस बीमारी की पहचान नहीं कर पाता. आइए जानते हैं, इस बीमारी और इसकी रोकथाम के बारे में मोहाली के आई और रेटिना सर्जन डॉ. अनुराग
सिंह से.

डॉ. अनुराग सिंह कहते हैं यह बीमारी उम्र बढ़ने के साथ होती है, इसलिए इसे उम्र से संबंधित एज रिलेटेड मैकुलर डिजनरेशन या एएमडी कहते हैं. 10 से 35 प्रतिशत लोग, जो 40 साल के ऊपर हैं, इसके रिस्क ज़ोन में रहते हैं. 60 और 70 वर्ष की उम्र से यह प्रतिशत बहुत बढ़ जाता है.

कारण

  • हाई ब्लडप्रेशर या डायबिटीज़
  • बढ़ती उम्र तथा मोटापा
  • इस बीमारी का ख़तरा धूम्रपान करने वालों को सामान्य लोगों से दुगना होता है
  • शरीर में एंटीऑक्सीडेंट लेवल का कम होना
  • अनुवांशिक (माता-पिता से बच्चों में)
  • कुछ विशेष प्रकार की दवाइयां लेने से

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क्या होता है मैकुलर डिजनरेशन (एएमडी)
जब शरीर में एंटीऑक्सीडेंट का लेवल कम हो जाता है, तो हर जगह फ्री रेडिकल्स बनने लगते हैं. रेटिना के मैकुला में मेटाबॉलिज़्म के फलस्वरूप पीले रंग का पदार्थ बनता है, जो रेटिना की नीचे की परत में जमा हो जाता है. इसे ड्रोसन कहते हैं. यह मैकुलर डिजनरेशन की शुरुआत की स्टेज होती है. यह वार्निंग साइन है. ड्रोसन छोटे मीडियम और बड़े होते हैं. मैकुलर डिजनरेशन (एएमडी) दो प्रकार का होता है.

  • ड्राई (सूखा) मैकुलर डिजनरेशन
  • वेट (गीला) मैकुलर डिजनरेशन

ड्राई (सूखा) मैकुलर डिजनरेशन
रेटिना का मैकुला हमारी आंख की सीध में आनेवाली वस्तु को देखने में मदद करता है. यह एक ऐसी बीमारी है, जो सीधे देखने की नज़र को धुंधला कर देती है. इसमें सीधी नज़र को नियंत्रित करने वाला हिस्सा मैकुला क्षतिग्रस्त हो जाता है. इसमें केवल सेंट्रल विजन प्रभावित होती है. साइड विजन यानी चीज़ों को किनारे (साइड) से देखने की क्षमता ठीक होती है.

लक्षण और इलाज
ड्राई (सूखा) एएमडी में दिखने में कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता, परंतु मरीज़ को महसूस होता है कि पढ़ते समय उसे तेज़ रोशनी चाहिए. इसके अलावा वह अलग-अलग लाइट के अनुकूल नहीं हो पाता यानी उसे हल्की रोशनी से तेज़ रोशनी में जाने में तकलीफ़ होती है, क्योंकि सीधे देखने की नज़र प्रभावित होती है, इसलिए चेहरे देखना, पढ़ना, फोन देखना, गाड़ी चलाना या खाना बनाना जैसे कामों में कठिनाई आना शुरू हो जाती है. यदि इस समय मरीज़ आई चेकअप के लिए जाता है, तो डॉक्टर को चेकअप में ड्रोसन दिखाई देंगे यानी रेटिना की ख़राबी दिखाई देगीे, जिसे देखकर डॉक्टर आगे का इलाज करेंगे और मरीज़ की दृष्टि जाने का ख़तरा कम हो जाएगा.

वेट (गीला) मैकुलर डिजनरेशन
यह ड्राई (सूखा) एएमडी की एडवांस्ड स्टेज है. इसमें ड्रोसन के कारण परदे के रेटिना की नीचे की परत नष्ट होने लगती है और इसके नीचे कई असामान्य ब्लड वेसल्स विकसित होने लगती हैं. यह रेटिना के अंदर भी हो सकती है. चूंकि यह ब्लड वेसल्स असामान्य होती हैं, इसलिए यह रिसने या लीक होने लगती हैं. नॉर्मल ब्लड वेसल्स कभी भी लीक नहीं होती. जब यह असामान्य ब्लड वेसल्स लीक होती हैं, तो परदे के अंदर या परदे के नीचे खून भी आ जाता है. हेमरेज या पानी जमा हो जाता है. इससे मैकुला को नुक़सान पहुंचता है और उस पर घाव हो सकता है. इस वेट एएमडी में तेज़ी से अंधापन बढ़ने लगता है. यह जितने बड़े होते हैं, उतना ही रिस्क होता है मैकुलर डिजनरेशन का और उतना ही हाई रिस्क होता है दृष्टि जाने का.

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लक्षण और इलाज
बहुत से लोगों को तब तक एहसास नहीं होता कि उन्हें गीला एएमडी है, जब तक उनकी नज़र बहुत धुंधली ना हो जाए. मरीज़ को सीधे देखने की नज़र में गहरे रंग का लाल, भूरा या काला धब्बा दिखाई देता है, जिसका आकार समय के साथ बढ़ सकता है. इसमें सीधी लाइन टेढ़ी-मेढ़ी, तिरछी या लहरदार दिखनी शुरू हो जाती है. इन्हें रंग भी फीके दिखने लगते हैं. इनकी आंखों को कम रोशनी में एडजस्ट होने में अधिक समय लगता है और तेज़ रोशनी में असुविधा महसूस होती है. इन्हें फोन का फॉन्ट बड़ा करना पड़ सकता है. मरीज़ को सामने से नहीं दिखता. सामने काला धब्बा दिखता है, मगर किनारे (साइड) से दिखाई देता है. इसीलिए वह अपनी गर्दन घुमाकर या आंखें घुमाकर या थोड़ा टेढ़ा होकर बात करता है. बीमारी की आख़िरी स्टेज में मरीज़ को मोटे-मोटे चश्मे, जिन्हें हम मैग्नीफाइंग ग्लास कहते हैं, लगाने पड़ सकते हैं, जिससे उसे बड़े-बड़े अक्षर दिखते हैं और वह पढ़ सकता है. इसमें आंख के अंदर इंजेक्शन लगाकर इलाज किया जाता है, जो रोग की तीव्रता के अनुसार बार-बार लगाना पड़ सकता है.

कैसे करें रोकथाम?

  • धूम्रपान न करें. यदि करते हैं तो जल्द से जल्द उसे छोड़ने का प्रयास करें.
  • हरी पत्तेदार सब्ज़ियां खाएं. इससे जोख़िम कम हो जाता है.
  • फिश खाएं. शोधों से पता चला है कि फिश खानेवालों में इस रोग की संभावना बहुत कम होती है.
  • यदि आप पोषक और संतुलित आहार नहीं लेते, तो इस रोग की चपेट में आ सकते हैं. डॉक्टर की सलाह से मल्टीविटामिन रोज़ लें. इससे ख़तरा कम हो जाता है.
  • रोज़ाना फलों की दो या तीन सर्विंग्स खाएं. सुखे मेवों का सेवन करें. इससे एएमडी होने का ख़तरा कम हो जाता है. यदि यह बीमारी हो गई है तो उसके बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने में मदद मिलती है.
  • अपने ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रखें. शोधों में इनके और एमडी के बीच संबंध पाया गया है.
  • धूप के सीधे संपर्क में आने से बचें. जब भी धूप में निकलें, धूप का चश्मा पहन कर निकलें.
  • आपकी जीवनशैली सक्रिय होनी चाहिए. हल्का सा व्यायाम और सुबह-शाम सैर अवश्य करें.
    कुछ बीमारियों के लक्षण नहीं होते. वह आंखों को धीरे-धीरे प्रभावित करती हैं. जब तक आप उन परिवर्तनों को जानें. तब तक नुक़सान हो चुका होता है और इसे ठीक करने में बहुत देर हो सकती है. यदि आप चाहते हैं कि डॉक्टर आपके लक्षण महसूस होने से पहले ही बीमारी को पकड़ लें, तो हर साल नेत्र विशेषज्ञ से नेत्र परीक्षण अवश्य करवाएं, ताकि आपकी बहुमूल्य आंखें स्वस्थ रह सकें.

- डॉ. सुषमा श्रीराव

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