वर्टिगो, कानों के अंदरूनी हिस्से की समस्याओं से होने वाला एक बैलेंस डिसऑर्डर है, इससे पूरी दुनिया में 10 में से 1 व्यक्ति प्रभावित होता है, महिलाओं को यह डिसऑर्डर होने का ख़तरा 2 से 3 गुना ज्यादा होता है. वर्टिगो का प्रभावी उपाय व उपचार के लिए आहार यानी डायट और लाइफ़स्टाइल यानी जीवनशैली में बदलाव करना फायदेमंद होता है. आइए इस विषय पर विस्तार से जानें…
वर्टिगो एक बैलेंस डिसऑर्डर है, जो आमतौर पर अंदरूनी कान की समस्याओं की वजह से होता है. इससे अचानक ही असहज-सा अनुभव होता है, ऐसा लगता है जैसे पूरी दुनिया घूम रही हो. यह शरीर के वेस्टिवुलर सिस्टम में रुकावट पैदा कर देता है, जोकि एक आंतरिक जीपीएस की तरह काम करता है और इसका काम होता है संतुलन बनाए रखना. यह चक्कर बिना किसी चेतावनी के हो सकता है, जिससे गिरने और फ्रैक्चर का डर रहता है. वर्टिगो एक आम समस्या है और 10 में से 1 व्यक्ति कभी ना कभी जीवनकाल में इसका अनुभव जरूर करता है. भारत में लगभग, 0.71% लोगों में वर्टिगो की समस्या है, जोकि 90 लाख का आंकड़ा है. 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में 30% और 85 साल से अधिक उम्र के 50% से ज्यादा लोग इससे प्रभावित होते हैं, जिसका अर्थ है यह ज्यादातर बुजुर्गों में देखने को मिलता है. इसके अलावा, महिलाओं को वर्टिगो की समस्या से प्रभावित होने का खतरा दो से तीन गुना ज्यादा है.
वर्टिगो के साथ घर के अंदर चलना-फिरना, ग्रॉसरी शॉपिंग, काम के लिये बाहर जाना जैसे रोजमर्रा के काम मुश्किल हो जाते हैं. इससे प्रभावित व्यक्ति इतना घबरा जाता है कि वो बाहर जाकर मेल-मिलाप करने से डरता है और धीरे-धीरे उसके मन में अंदर घर में बंद रहने की इच्छा पनपने लगती है, जिससे आत्मनिर्भरता खत्म हो जाती है और एंजाइटी तथा डिप्रेशन जैसे मनोवैज्ञानिक प्रभाव होते हैं. खासकर, महिलाओं में यह दुष्चक्र पैदा करता है, जिससे एंजाइटी बढ़ जाती है और स्ट्रेस हॉर्मोन- कोर्टिसोल के बढ़ने से वर्टिगो ट्रिगर होता है. यह किसी की कामकाजी जिंदगी को प्रभावित कर सकता है, जिसकी वजह से नौकरी बदलने या छोड़ने की नौबत आ जाती है, क्षमता कम हो जाती है और छुट्टियां ज़्यादा लेनी पड़ती है, जिसकी वजह से अंतत: आर्थिक रूप से लोग प्रभावित होते हैं.
बड़े पैमाने पर इस समस्या के होने के बावजूद, इसको लेकर जागरूकता की कमी है. लोग इस तरह की रोजमर्रा की समस्याओं को आम चक्कर मानकर अक्सर नजरअंदाज करते हैं, जिसकी वजह से प्राथमिक चिकित्सा स्तर पर इसकी पहचान कर पाना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इसके लक्षणों को बता पाना और उन्हें पहचान पाना मुश्किल होता है, क्योंकि मितली और उल्टी जैसे लक्षणों को बाकी समस्याओं से अलग कर पाना कठिन होता है. अच्छी बात ये है कि वर्टिगो को फिजिकल थैरेपी, आहार संबंधी बदलावों और जीवनशैली में सुधार, दवाओं, फिजियोथैरेपी या कुछ मामलों में सर्जरी से भी ठीक किया जा सकता है. इसमें वेस्टिवुलर रिहैबिलिएशन एक्सरसाइज शामिल है, जिसे डॉक्टर की सलाह पर अलग-अलग मामलों के अनुरूप तय किया जाता है. इसलिए समय रहते इसकी पहचान और प्रभावी उपचार विकल्पों को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है.
प्रोफेसर डॉ. समीर भार्गव, सलाहकार-पीडी हिंदुजा अस्पताल, पूर्व अध्यक्ष, एसोसिएशन ऑफ ओटोलरींगोलॉजिस्ट ऑफ इंडिया का कहना है, “वर्टिगो को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, ताकि लोग जल्द से जल्द मदद ले, क्योंकि यह अन्य बीमारियों के भी लक्षण हो सकते हैं, रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हो सकती है और गंभीर परिणाम हो सकते हैं और फ्रैक्चर या गिरने जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं. एक्सरसाइज-आधारित और चिकित्सकीय उपचार करवाने से, उनकी जीवनशैली को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है.”
डॉ पराग शेठ, क्षेत्रीय चिकित्सा निदेशक, एबॉट इंडिया का कहना है, “वैसे, वर्टिगो कमजोर कर देने वाली समस्या है, जो किसी की जिंदगी को काफी प्रभावित कर सकती है, लेकिन सही देखभाल से इसे मैनेज किया जा सकता है. इसलिए हम वर्टिगो को लेकर जागरूकता फैलाने और भरोसेमंद समाधान देने के लिये हम कुछ रीडिंग मटीरीयल उपलब्ध करा रहे हैं, जिसमें वेस्टिवुलर एक्सरसाइज के वीडियो ट्यूटोरियल शामिल हैं, ताकि प्रभावित व्यक्ति आत्मविश्वास के साथ आगे कदम बढ़ पाए. जिन्हें भी ये समस्या है वो लोग अपना संतुलन दोबारा हासिल कर पाएं और जिंदगी को खुलकर, सेहतमंद तरीके से जी पाएं.”
जीवनशैली में बदलाव लाकर लक्षणों में सुधार लाया जा सकता है, लेकिन इसके साथ ही कई लोग वर्टिगो के बताए गए उपचार का पालन नहीं करते. अटैक की संख्या और गंभीरता को कम करने के लिये समय पर दवाएं लेना और डॉक्टर की सलाह मानना भी बहुत जरूरी है. इससे लोगों को अपने वर्टिगो को नियंत्रित रखने में मदद मिल सकती है, ठीक होने के उनके रास्ते में उनका सहयोग कर सकती है.
- इसके अलावा कई ऐसे योग व व्यायाम हैं जिन्हें आप डॉक्टर व एक्सपर्ट की सलाह से करके इस समस्या को मैनेज कर सकते हैं.
- मेडिटेशन भी बेहतर तरीक़ा है.
- तनाव से बचें, नींद पूरी लें.
- बहुत ज़्यादा लैप्टॉप या मोबाइल का उपयोग न करें.
- नमक कम खाएं.
- कैफ़ेन और अलकोहल कम या न लें.
- लो बीपी होने पर मीठा खाएं. हेल्दी डायट लें.
- ध्यान रहे कोई भी उपाय या योग बिना एक्सपर्ट की सलाह के खुद से न करें.
- नियमित रूप से डॉक्टर से मिलें और उनकी सलाह मानें.