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रंग तरंग- कोरोना, बदनाम करो न… (Rang Tarang- Corona, Badnaam Karo Na…)

''हां, आप उस बात पर ध्यान दो कि पापा लोग कैसे एक घर में ही सेफ चल रहे हैं. पिछले दिनों जब ट्विंकल को, उसके भाई और मम्मी को कोरोना हुआ, तो सिर्फ़ उसके डैडी को नहीं हुआ था. आप ही बताओ, कैसे दूर-दूर रहते होंगे वे सबसे, जो उन्हें नहीं हुआ. हम यही बात कर रहे थे कि ये डैडी लोग क्या मम्मी लोगों से भी एक उम्र के बाद दूर रहने लगते हैं कि मम्मीयों से भी उन्हें कोरोना नहीं हुआ?''
मैंने अपनी हंसी मन ही मन रोकते हुए बीच में ही बात काट दी, ''क्या-क्या बेकार की बातें करने लगे हो तुम लोग आजकल? कोई और काम नहीं है क्या? ये खोजबीन डॉक्टर्स पर छोड़ दो.''

यह कब सोचा था कि कोई ऐसी बीमारी भी कभी आएगी, जो इंसान को बदनाम भी कर सकती है. शारीरिक परेशानियों की बात तो अलग है, ये कोरोना तो बहुत बुरा है, बदनाम कर रहा है लोगों को. तीस साल के ट्विंकल, नीमा, शेखर, कुशल और रोमा जैसे शैतान बच्चों ने कोरोना के रंग-ढंग पर अपनी उम्र के स्टाइल में अलग ही रिसर्च शुरू कर दी है.
पांचों वर्क फ्रॉम होम करते हैं. खाली समय में आसपास के केसेस पर पैनी नज़र रखते हैं. अजीब टाइमपास करते हैं. मज़ेदार बात यह है कि अगर इन लोगों में से भी किसी के घर में किसी को कोरोना हुआ है, उसके ठीक हो जाने तक तो ये शांत रहते हैं, फिर उसके ठीक होते ही ऐसे जोक्स बनाते हैं कि मैं जब भी सुनती हूं, हंसती हूं, हैरान होती हूं कि ये लोग ही कोरोना पर जोक्स बना सकते हैं. बड़े तो आजकल जैसे हंसना ही भूल गए हैं. बड़ों में वैसे ही सेंस ऑफ ह्यूमर कम होता जा रहा था. अब तो कोरोना टाइम में बड़ों को जैसे एक ही टॉपिक पर चिंता करना रह गया है कि बचेंगें या नहीं!
नीमा, मेरी बेटी ने बहुत ही राज़दाराना स्वर में कहा, ''मम्मी, आपको पता है कुशल भी पॉज़िटिव हो गया है. अब देखना उसकी मम्मी को भी कोरोना होगा.’’ और फिर हंस पड़ी, ‘’और देखना, उसके पापा को नहीं होगा.‘’
मैंने पूछा, ''क्यों?''
उसने अपने पापा की तरफ़ घूरकर देखा, अजय कुछ समझ नहीं पाए, बोली, ''ये डैडी लोग कहां बच्चों को हग्गिंग, किसिंग करते हैं, एक दूरी बनाकर रखते हैं न, रौब मारना होता है. इसलिए मेरे दोस्तों और मुझे लगता है कि मम्मी और बच्चे लोगों को ज़रूर कोरोना होता है, पर हर घर में डैडी लोगों को कम हो रहा है. मांएं ही बच्चों को प्यार-दुलार करती रहती हैं न. हमने नोट किया है कि अगर किसी हमारे दोस्त को हो रहा है, तो मांओं को ज़रूर हो रहा है.‘’
अजय इस खुलासे पर ज़ोर से हंसे, ''अच्छा? ये पांच रत्नों की रिसर्च है? तुम बच्चे लोग अपनी मांओं से ही चिपटे रहते हो, तो बेचारे डैडी लोग क्या करें.''
पापा की लाड़ली ने ताना मारा, ''पापा लोग अपने बच्चों को कम प्यार करते हैं, यह अभी कोरोना टाइम में साफ़ होता जा रहा है."

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फिर खाली टाइम में मुझे पांच नए बने कोरोना रिसर्चर्स की बातें सुनाई देती रहीं. नीमा किसी से कह रही थी, ''अच्छा? देखा? हम कितने सही थे, ये डैडी लोग एक ही घर में कितना दूर रहते हैं कि साफ़ बच निकलते हैं!''
अजय भी लैपटॉप पर काम कर रहे थे. नीमा ने उन्हें बताया, ''देखा पापा, कुशल की मम्मी को भी कोरोना हो गया है और उसके पापा ठीक हैं.''
अजय ने कहा, ''यह तो अच्छी बात है कि वे ठीक हैं.''
''हां, आप उस बात पर ध्यान दो कि पापा लोग कैसे एक घर में ही सेफ चल रहे हैं. पिछले दिनों जब ट्विंकल को, उसके भाई और मम्मी को कोरोना हुआ, तो सिर्फ़ उसके डैडी को नहीं हुआ था. आप ही बताओ, कैसे दूर-दूर रहते होंगे वे सबसे, जो उन्हें नहीं हुआ. हम यही बात कर रहे थे कि ये डैडी लोग क्या मम्मी लोगों से भी एक उम्र के बाद दूर रहने लगते हैं कि मम्मीयों से भी उन्हें कोरोना नहीं हुआ?''
मैंने अपनी हंसी मन ही मन रोकते हुए बीच में ही बात काट दी, ''क्या-क्या बेकार की बातें करने लगे हो तुम लोग आजकल? कोई और काम नहीं है क्या? ये खोजबीन डॉक्टर्स पर छोड़ दो.''
''ये डैडी लोग!'' कहकर अपनी गर्दन को झटका देती हुई नीमा वहां से चली गई. अजय ने एक ठंडी सांस लेते हुए कहा, ''यार, क्या बातें करते हैं ये लोग आजकल! मिल नहीं पाते तो सब के सब हमारे पीछे पड़कर अपना टाइमपास कर रहे हैं. बेचारा एक आदमी बच गया कोरोना से घर में तो यह भी उसकी ग़लती! कोरोना का वायरस तो हमें बदनाम कर रहा है.''
सचमुच आजकल यही देख रही हूं जब भी किसी घर में कोरोना के केस होते हैं, नीमा अपने दोस्तों से फोन पर यही कह रही होती है, "अच्छा? देखा? नहीं हुआ न अंकल को?.. जब सबके साथ किसी अंकल को भी होगा न, तो समझ जाएंगें कि अंकल भी घर में सबको प्यार करते हैं. सबसे मिलजुल कर रहते हैं.‘’
अजय ने यह बात सुनकर अपना सिर पीट लिया. कहा, ''अगर कहीं तुम दोनों को कोरोना हो गया और मुझे नहीं हुआ, तो यह लड़की तो सारी उम्र मुझे सुनाएगी.‘’ मुझे ज़ोर से हंसी आई.


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नीमा ने कहा, ‘’हां, और क्या. इसका क्या मतलब है कि मम्मी और मुझे हो जाए और आपको न हो. यह कैसे मुमकिन है? इसका साफ़-साफ़ मतलब यही है न कि बाहर की आई सारी चीज़ें मम्मी संभालती हैं और आप तो एक किनारे सारे दिन अपना लैपटॉप लेकर बैठे रहते हो.’’
अजय ने हाथ जोड़ लिए, तो वह भी हंस पड़ी.
डैडी लोगों पर तो अभी रिसर्च चल ही रही थी कि पड़ोस में सीमा रहती है. उसकी मां, उसकी बहन के साथ ही दूसरी बिल्डिंग में रहती है. सीमा की मां को कोरोना हुआ, तो सीमा उन्हें देखने, दूर से ही बहन से हालचाल लेने, कभी कुछ खाना देने जाती रही, सीमा के जीजा को भी फिर कोरोना हो गया. थोड़े दिन बाद ही सीमा भी कोरोना पॉज़िटिव हो गई. फिर सीमा के पति भी पॉज़िटिव हो गए.

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अब कोरोना तो ऐसी बीमारी है न, जो अच्छे-भले इंसान को शक के दायरे में खड़ी कर सकती है. वही हुआ. थोड़े दिन बीतने के बाद जब सब ठीक हो गए, तो अजय ने कुछ शरारती मुस्कान के साथ कहा, ''रेखा, तुम्हे पता है मेरे दोस्त आज हंस रहे थे कि यह बताओ, सीमा की बहन को कोरोना नहीं हुआ, जीजा-साली को हो गया!''
मैंने कहा, ''शर्म करो, तुम लोग!'' बाप-बेटी किसी को नहीं छोड़ते. जिसको हो, तो परेशानी, न हो तो भी परेशानी. ये नीमा और तुम लोग कैसी-कैसी बातें करते हो."
''सोचकर देखो, फनी है न.''
''नहीं, ज़रा भी फनी नहीं होते ये कोरोना के शक के जोक्स.'' मैंने आंखें तरेरी, तो पीछे से नीमा की फोन पर आवाज़ आई, ''क्या? आंटी और तू पॉज़िटिव हैं? अंकल को हुआ क्या?''
मैंने पूछा, ''क्या हुआ? अब किसे हो गया?''
''एक कॉलेज फ्रेंड और उसकी मम्मी को. इस घर में भी अंकल बाकी डैडी लोगों की तरह अभी तक ठीक हैं.'' उसकी बात ख़त्म ही हुई थी कि मेरी ख़ास फ्रेंड रानी का फोन आ गया. पता नहीं कौन-सी घडी थी कि मैंने सब्जी काटते हुए फोन स्पीकर पर रख लिया. वो तो गनीमत है कि नीमा अपने रूम में जा चुकी थी. रानी बोल रही थी, ‘’एक बात बताओ रेखा, क्या पति-पत्नी एक उम्र के बाद प्यार करना बंद कर देते हैं?''


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वहीं बैठे अजय की आंखें इस गॉसिप को सुनने के उत्साह में चमक उठी थीं. मैं झेंप गई. मैंने कहा, ''क्या हुआ?''
''सामनेवाली भाभी को कोरोना हो गया है, भैया बिल्कुल ठीक हैं, कैसे?''
अजय ने अपनी हंसी बड़ी मुश्किल से रोकी हुई थी. मैंने टालने के लिए कहा, ''अभी कुछ काम कर रही हूं, फिर करती हूं बात.''
''अरे, सुन तो, भैया-भाभी अकेले रहते हैं. दोनों को होना चाहिए था न?''
मैंने जल्दी से, "अभी करती हूं…" कहकर फोन रख दिया. इतने में नीमा अपने रूम से आकर बोली, ''मम्मी, क्या हुआ? आज तो बड़ी जल्दी फोन रख दिया?''
'हां, बिजी हूं.‘’
अजय कहां बाज आते, बोले, ‘’रानीजी को एक सवाल परेशान कर रहा था.''
मैंने कहा, ''चुप रहो.‘’
अजय ने नाटकीय स्वर में कहा, ''ये क्या बीमारी आई है यार. सब पर शक करवा रही है. और वो भी हम पुरुषों पर! हाय, कोरोना, हमें बदनाम करो न!’’
नीमा उन्हें घूरती रह गई, फिर बोली, ''मैं तो एक बात बताने आई थी कि अभी मेरी फ्रेंड कोमल का फोन आया है. उसे और उसके मम्मी-पापा तीनों को कोरोना हो गया है. यह होता है परिवार का प्यार! ये अंकल इसका मतलब फैमिली से मिलजुल कर रहते हैं, अच्छा है.''
मैं और अजय उसकी फिलॉसोफी पर उसका मुंह देखते रह गए थे.

- पूनम अहमद

Photo Courtesy: Freepik

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