अब यही आवाज़ दिल की
धड़कनों से आ रही है
ज़िंदगी कम हो रही है
उम्र बढ़ती जा रही है..
इस तरह कब तक कहां तक
मैं अकेला चल सकूंगा
ज़िंदगी ऐसे सवालों में
उलझती जा रही है..
कोई कब कैसे कहां तक
साथ मेरा दे सकेगा
ज़िंदगी तो अब अंधेरों में
सिमटती जा रही है..
ज़िंदगी के इस सफ़र में
अब अकेला थक गया हूं
देख कर सुनसान राहें
ख़ुद से भी अब डर गया हूं..
कोई भी आशा का दीपक
अब नहीं है ज़िंदगी में
ज़िंदगी की अमिट पीड़ा को
हर पल सह रहा हूं..
अब बस ये ज़िंदगी यूं
ही कटती जा रही है…
- रिंकी श्रीवास्तव
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