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काव्य- कल रात भर… (Poetry- Kal Raat Bhar…)

पिघलता रहा
कतरा-कतरा आसमान
अधजगी आंखों में
कल रात भर…

नींद नहीं आई
बदलता रहा करवटें
बिस्तर किसी की याद में
कल रात भर…

स्याह बादलों की ओट में
छुप गई थी चांदनी
गुमसुम रहा चांद
कल रात भर…

पलकों से उतर कर
तकिए पर अधलेटे
बैचेन रहे किसी के ख़्वाब
कल रात भर…

ख़ामोशी के आलम में
सुनता रहा दिल ये
अपनी ही धड़कनें
कल रात भर…

- विनीता राहुरीकर


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Photo Courtesy: Freepik

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