कभी कभी
मुझे लगता है
मुझे इश्क़ का चैप्टर क्लोज़ कर देना चाहिए
कि तभी तुम आ जाती हो
मुस्कुराते हुए
मेरे सीने पर हाथ रखते हुए
मेरी धड़कनों को टटोलती हुई
मेरे ज़िंदा रहने के निशान ढूंढ़ते
और ढेरों सवाल पूछते
जैसे पूछ रही हो
सब ठीक तो है
आज तुम कैसी
बहकी बहकी बातें कर रहे हो
अरे वो दिन भूल गए
जब बेतहाशा, बेवजह
दर्द में तड़पते थे, रोते और बिलखते थे
कि मेरे बिना तुम्हें कुछ नहीं सूझता था
और जब गहन अंधकार में
अपने भीतर
रोशनी के एक दीये की तलाश थी
और
और तुम बेहद गरीब थे
जब दिल की दौलत के सहारे
ज़िंदगी जीने उतरे थे
आज मेरी बदौलत
सांस लेने के क़ाबिल बने
ज़माने में चलना और सिर उठा कर जीना सीखा
तो अपने झूठे
मान सम्मान को बचाने के लिए
मुझे ही क़ुर्बान करने चले हो
मैं तुम्हें कभी बुरे शब्द नहीं कह सकती
मुझे छोड़ कर
जी सकते हो तो जी लो
बस एक बार झांक कर देख लेना
तुम्हारे भीतर ज़िंदगी बची है
या सिर्फ़ उधार की सांस चल रही है
जिसमें तुम जीते हुए
दिखाई तो देते हो
ज़िंदा नहीं हो…
- मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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