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कविता- एक दीप… (Poetry- Ek Deep…)

इस दिवाली सौ दीपों में 
एक दीपक मन का भी जलाना
जगमगाते दीपों के बीच के
एक दीया ख़ुद को बनाना
जो दूर करें मन के अंधकार को
सच्चाई की बाती संग 
ऐसा एक दीपक बन जाना
पिता की डोलती हुई आस
उम्मीद की लौ बनकर 
बुझने से तुम उसको बचाना
मां के अंतहीन त्याग को
हो सके तो 
ख़ुद के प्रकाश से जगमगाना
बड़ों की हिम्मत और
छोटों का हौसला बनकर
इस दिवाली ख़ुद के मन का
दीप प्रज्ज्वलित कर जाना
जो छटे मन का अंधकार तेरा
तब औरों के भी
मन का श्वेत दीप तुम जलाना
बुराई पर अच्छाई की जीत का
सिर्फ़ जश्न ही मत मनाना 
इस दिवाली एक दीप सच्चाई का
ख़ुद के भीतर भी जगमगाना

- कुमारी बंदना (मोना)


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Photo Courtesy: Freepik

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