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कविता- दूरियां (Poetry- Dooriyan)

दूरियां दिलों में थीं
और हम उसे 
आंसुओं में ढालते रहे
नफ़रतें काग़ज़ी थीं
और हम दिल में पालते रहे 
ख़्वाब नींद में थे
और हम रात भर 
जागते रहे..
तुम मेरे हो चुके थे
और हम 
ताउम्र ज़माने से तुम्हें
हाथ फैला मांगते रहे..
जज़्बात तो देखे नहीं
और बस 
शब्द बांचते रहे..
कौन किसका है मुरीद
क्या तौलना ज़रूरी था
उम्र और ज़िंदगी 
चल रहे थे साथ साथ 
हम बड़ी बे मुरव्वती से 
दर्दे दिल झांकते रहे..
ज़माना खड़ा था सामने 
और हम 
तेरी गली की 
खाक छानते रहे..!

- मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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 Photo Courtesy: Freepik

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