स्मृति पट पर
आज भी चित्रित है वह दिन
जब तुम किन्ही
अनजाने, अनदेखे लोक से उतर
मेरी गोद में आए थे..
और मुझे लगा था जैसे
सृष्टि का केंद्र बिंदु ही
सिमट आया है मेरी गोद में..
तुम्हारे मुस्कुराने से
सितारों सी चमक उठतीं
तुम्हारी आंखें..
रंगीन फूल, तितली को देख
कौतुहल, आश्चर्य से भर उठतीं
तुम्हारी आंखें..
गिरने पर जब भी उठाया मैंने,
और भी गहरा हो गया
तुम्हारी आंखों का विश्वास..
डरती हूं
झूठ और स्वार्थ की इस दुनिया में
पलने पर
तुम्हारी आंखों के ये सितारे
पत्थर न हो जाएं
और टूट न जाए तुम्हारा विश्वास..
नफ़रत की इस दुनिया में
जहां छोटे हैं दिल,
युद्धों के मैदान बड़े हैं..
रात ही नहीं, यहां दिन भी
अंधियारा ओढ़े खड़े हैं..
ऐसे जग में मेरे बच्चे
जब तक सूरज न उभरे
तुम कुछ दीप जला लेना
राह आलोकित रखना अपनी,
हर नव शिशु के हाथों में
एक एक दीप पकड़ा देना..
- उषा वधवा
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