अतीत की ओर
किवाड़
मज़बूती से भेड़
और विस्मृति की चादर ओढ़
मैं तो लगभग सो ही चुकी थी
ओ भूली हुई यादों
तुमने क्यों
फिर आकर
मेरा द्वार खटखटाया है?
खिड़की पर पर्दा डाल
मैंने सोचा
यादों से भरी चांदनी
अब भीतर नहीं घुस पाएगी
पर आंख मूंदते ही मेरे
यादें इतनी ढेर
मेरे मन से निकल
बाहर आने लगीं
कि थोड़ी ही देर में
कमरा
तुम्हारे चेहरों से भर गया…
- उषा वधवा
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Photo Courtesy: Freepik
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