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कविता- वीर नारी (Poem- Veer Nari)

बचपन का सपना अचानक सच हो जाता है
जब मुझे दूल्हे के रूप में
एक दिन सुपर हीरो मिल जाता है
अपने प्यार को और देश को
दुनिया की हर बुरी नज़र से बचाता है
वह देश की सरहद को अपना घर
और यूनिट को अपना परिवार बताता है
इन्हीं सब बातों में वह फौजी
अपने ही घर आना भूल जाता है
देश की सरहद पर वह
और घर की दहलीज़ पर मैं
अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियां निभाते रहे
मां-बाबा-बच्चों के बिना वह
और उनके बिना हम
अपनी ज़िंदगी बिताते रहे
सोचा था जब आएगा वह
उसे अपने सारे ग़म बताऊंगी
उसके बिना बिताए
हर एक लम्हे की कहानी सुनाऊंगी
अब सोचती हूं क्यों आया वह उस दिन
ख़ामोश आंखें.. थमी सांसें
तिरंगे में लिपटा उसका शरीर
बदल चुका था एक पल में सब कुछ…
शहीद हुआ वह और अब मैं
वीर नारी कहलाऊंगी
जब भी आएगी उसकी याद
आंखों में नमी लिए शान से मुस्कुराऊंगी
अब तो मैं भी इस देश को अपना घर
और यूनिट को अपना परिवार बताऊंगी!
- गुंजन जोशी


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Photo Courtesy: Freepik

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