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गीत- तुम जैसी हो पूर्ण हो… (Poem- Tum Jaisi Ho Purn Ho…)

बंद कर दो अपनी बेटियों को परिकथा सुनाना
मत सुनाओ ऐसी कोई भी कहानी
जिसमें सफ़ेद घोड़े पर बैठा राजकुमार
उसे उसकी सपनों की दुनिया में ले जाएगा
उनकी किताबों से निकाल दो वो कहानियां
जिसमें कोई जादू से उसे राजकुमारी बना देगा

कभी मत कहना कि ये घर तुम्हारा नहीं है
मत बोलना कि वो तुम्हारे बुढ़ापे का सहारा नहीं है
उसे बताना कि तुम फूल नहीं वृक्ष हो
एक मज़बूत वृक्ष जिसे तोड़ना आसान नहीं है
दिला देना गुड़ियों के साथ कुछ कार, बंदूक के खिलौने
कभी न कहना पेड़ों पर चढ़ना तुम्हारा काम नहीं है

कहना कि तुम बहुत ख़ूबसूरत हो बेटा
तन से ही नहीं मन से भी
किसी और की तारीफ़ के लिए ख़ुद को
घंटों सजाना ज़रूरी नहीं है
उसे बताना हर किसी को तुम
अच्छी ही लगो ऐसी कोई मजबूरी नहीं है

बिटिया तुम बिटिया ही रहना
तुम जैसी हो पूर्ण हो
बेटा बनने की प्रतियोगिता का हिस्सा नहीं हो
स्त्रीत्व की गरिमा में संपूर्ण हो

बहने देना नदियों की तरह
चिड़ियों सा उड़ने देना
हंसने देना रोने देना
जब सही हो वो लड़ने देना
बताना कि उसके कपड़े चरित्र नहीं
व्यक्तीत्व के परिचायक हैं
हक़ देना चुनने का उसको
जो भी उसके लायक हैं

और एक बात ज़रूर बताना
वो जननी है, उसके जननांग उसकी शक्ति हैं
किसी की बुरी नज़र या ग़लत स्पर्श से
उसकी इज़्ज़त कम नहीं होती
बेटियां भी बेटों सा ही जीवन जीती हैं
किसी भी पिता के चौखट की
लाज-धरम नहीं होती…

- पल्लवी विनोद

Photo Courtesy: Freepik

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