हर रात देर तक
मैं अपने मन में गड़े शूल चुनती हूं
एक-एक और एक करके
और हर दिन वहां नए शूल उग आते हैं
पहले से अधिक तीखे
पहले से अधिक गहरे..
कौन कहता है कि
समय हर ज़ख़्म को भर देता है?
मेरा तो हर दिन
मेरे घावों को और हरा कर देता है..
कुछ कांटे मुरझा चुके हैं
बाक़ी हैं बस उनके निशां
वह कांटे परायों ने चुभोए थे..
पर जो घाव दिन-रात रिसते हैं
उन्हें चुभोनेवाला
समाज की नियमावली में
मेरा बहुत अपना था…
- उषा वधवा
यह भी पढ़े: Shayeri
Photo Courtesy: Freepik
Link Copied