पैरेंटिंग गाइड- बच्चों के दुश्मन पेट के कीड़े (Parenting Guide- Your Child May Be Suffering From Stomach Worms)
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बच्चे माता-पिता ही नहीं, पूरे परिवार की जान होते हैं. इसीलिए उनके बीमार होने से पूरा परिवार परेशान हो उठता है. आजकल बच्चों के पेट में परजीवी कीड़े पड़ने की बात अक्सर सुनने को मिलती है. ये कीड़े बच्चे के आहार से पौष्टिक तत्व ही नहीं, उनका ख़ून भी चूसते हैं और उन्हें बीमार कर देते हैं. इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन इन कीड़ों के संक्रमण को रोकने के लिए डी-वॉर्मिंग को प्रमोट कर रही है.
अगर आपका बच्चा अक्सर पेटदर्द, मितली, एनस में खुजली की शिकायत करता है, रात में उठकर चिल्लाता है, खाने-पीने के बावजूद कमज़ोर है या उसे बार-बार खांसी आती है, तो एक बार उसे डॉक्टर को दिखाकर जांच कराएं. हो सकता है उसके पेट में परजीवी कीड़े हों.
क्यों होते हैं पेट में कीड़े?
बच्चों के पेट और अंतड़ियों में कई तरह के विकार होते हैं. कृमि रोग भी पेट या अंतड़ियों में पैदा होता है और पूरे शरीर में फैल जाता है. दुनिया भर में अब तक कृमि की क़रीब 20 प्रजातियों का पता चल चुका है. दरअसल, कृमि पेट में हवा की मात्रा बढ़ा देते हैं. इससे दिल की धड़कन बढ़ जाती है. कई बार बच्चे को उबकाई आती है और उसकी भोजन में दिलचस्पी ख़त्म हो जाती है. कृमि अंतड़ियों में घाव पैदा कर देते हैं, जिससे बच्चा बेचैन होकर रोने लगता है. बच्चे को चक्कर आने लगते हैं और प्यास अधिक लगती है.
कारण
मांस, मछली, गुड़, दही, सिरका, दूषित भोजन, मिट्टी खाने से या गंदे कपड़े पहनने व शरीर की उचित सफ़ाई न करने से पेट में किड़े हो जाते हैं. यह गंदगी के कारण होनेवाला रोग है. मक्खियां इस रोग की वाहक होती हैं. वे पहले गंदी चीज़ों पर फिर भोजन पर बैठती हैं, जिससे भोजन गंदा और दूषित हो जाता है. दूषित जल से इसका प्रसार तेज़ी से होता है. बच्चे की आंत से कृमि के अंडे शौच के साथ बाहर निकलकर फैल जाते हैं. ये लार्वा बड़े होकर ज़मीन या घास पर पैदल चलनेवाले के पांव में चिपक जाते हैं और उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं.
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केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय डी-वॉर्मिंग पहल की शुरुआत की. इंसान और पशुओं को राउंड वॉर्म, हुक वॉर्म, फ्लूक वॉर्म और टेप वॉर्म जैसे परजीवी कीड़ों से बचाने के लिए एक एंटी हेलमिंटिक दवा दी जाती है. बच्चों का उपचार मेबेनडेजॉल और एलबेनडेजॉल जैसी दवाओं से कर सकते हैं. एलबेनडेजॉल की एक गोली से बच्चे को इन परजीवी कीड़ों से बचाया जा सकता है. यह दवा संक्रमित और गैर संक्रमित बच्चों के लिए सुरक्षित है. सबसे बड़ी बात यह दवा स्वादिष्ट भी है.
डब्ल्यूएचओ की सलाह
डी-वॉर्मिंग उपचार कठिन और महंगा नहीं है. इसका प्रचार स्कूलों के ज़रिए आसानी से किया जा सकता है. इस उपचार से बच्चों को बहुत फ़ायदा होता है. पूरी दुनिया में अभी भी हज़ारों, लाखों बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें कृमि संक्रमण का जोख़िम है. इनके उपचार के लिए स्कूल आधारित डी-वॉर्मिंग उपचार की नीति बनाई जानी चाहिए, ताकि स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास में तेज़ी आ सके. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने परजीवी कीड़ों के संक्रमण को कम करने के लिए महामारी क्षेत्रों में रहनेवाले स्कूली बच्चों के इलाज के लिए इस दवा को देने की सिफ़ारिश की है. ज़्यादातर कीड़े मुंह से लेनेवाली दवा से ही मर जाते हैं. यह दवा सस्ती है और उसकी एक ही डोज़ दी जाती है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़, दुनिया में संक्रमित स्कूली बच्चों की संख्या 60 करोड़ है. अगर डी-वॉर्मिंग का विस्तार किया गया, तो बच्चों की सेहत ठीक रहेगी और वे सक्रिय रहेंगे.
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* पेट में कीड़े होने पर सात दिन तक पपीते के 11-12 बीज रोज़ खाली पेट खाने चाहिए. छोटे बच्चों को कम बीज दें. गर्भवती महिलाओ को पपीते के बीज नहीं खिलाने चाहिए, इसका उन पर प्रतिकूल असर हो सकता है.
* दो चम्मच अनार का जूस पीने से पेट में पनप रहे कीड़े मर जाते हैं.
* करेले के पत्तों का जूस भी पेट के कीड़े मारने के लिए बेहतर दवा है. करेले का जूस निकालकर उसे गुनगुने पानी के साथ पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं. करेले का स्वाद कड़वा होने से अक्सर बच्चे इसे पीना पसंद नहीं करते.
* दस ग्राम नीम की पत्तियों का रस और दस ग्राम शहद लेकर दोनों को अच्छी तरह मिला लें. इस मिश्रण को दिन में तीन से चार बार पिलाएं. इसे पीने के बाद बच्चे के पेट के कीड़े मर जाएंगे और राहत महसूस होगी.
* अजवायन पाउडर व गुड़ को समान मात्रा में एक साथ मिलाकर उसकी एक-एक ग्राम की गोली बना लें. इसे एक साफ़ जार में भर के रख दें. तीन से पांच साल के बच्चे को रोज़ाना दिन में तीन बार एक-एक गोली खिलाएं. इससे पेट के कीड़े मर जाएंगे.
* एक चम्मच करेले का रस, एक चम्मच नीम की पत्तियों का रस, एक चम्मच पालक का रस और जरा-सा सेंधा नमक मिलाकर दो ख़ुराक बनाएं. सुबह-शाम भोजन के बाद इस रस का सेवन करने से कीड़े मरकर शौच के साथ बाहर निकल जाएंगे.
सरकार की पहल
देश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत स्कूलों में स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इसमें यह प्रावधान किया गया है कि साल में दो बार निर्धारित अवधि में राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के मुताबिक़ डी-वॉर्मिंग की जाएगी. बिहार में विश्व की सबसे बड़ी स्कूल आधारित डी-वॉर्मिंग पहल की शुरुआत की गई थी. दिल्ली सरकार भी इसी तरह का अभियान चला रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, एक से 14 वर्ष के क़रीब 24 करोड़ बच्चे आंतों में पलनेवाले परजीवी कीड़ों से प्रभावित होने के ख़तरे में हैं. इस पहल के लिए ज़रूरी है कि इसके साथ स्वच्छता में सुधार किया जाए और सुरक्षित पेय जल को उपलब्ध कराया जाए, ताकि परजीवी कीड़ों का जोख़िम न्यूनतम हो सके. इसके लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय की सक्रिय भागीदारी और साझेदारी ज़रूरी है.