मेरा बच्चा किसी की सुनता ही नहीं... मेरी बेटी बेहद ज़िद्दी होती जा रही है... आजकल के बच्चे काफ़ी मनमानी करने लग गए हैं... बात-बेबात लड़ पड़ते हैं... हमें ग़लत और ख़ुद को सही ठहराते हैं... उ़फ्! आज टीनएजर्स की परवरिश कितनी चैलेंजिंग हो गई है... आए दिन अभिभावकों से इस तरह की बातें सुनने को मिलती हैं. आख़िर ग़लती किसकी है? क्यों इस तरह के हालात बन गए हैं कि टीनएजर्स को पालना मुश्किलों भरा होता जा रहा है. इन्हीं सब बातों के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने बात की सायकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. माधवी सेठ से.
एक व़क्त था, जब बच्चों को संस्कार, सही-ग़लत के बारे में अधिक समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी. तब अधिकतर संयुक्त परिवार होते थे. घर का माहौल और रोज़मर्रा की गतिविधियों से वे बहुत-कुछ सीख और समझ जाते थे. बच्चे को सही-ग़लत के बारे में बताने के लिए दादा-दादी, नाना-नानी और घर के अन्य बड़े-बुज़ुर्ग हुआ करते थे. लेकिन व़क्त के साथ हमारी जीवनशैली और दायरे भी बदलते गए. संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार पैठ जमाने लगा. बस, यहीं से बच्चों की परवरिश पैरेंट्स के लिए और भी चैलेंजिंग होती चली गई. इस लेख में हम टीनएजर बच्चों की पैरेंटिंग से जुड़े ऐसे ही कुछ चैलेंजेज़ के सोल्यूशन लेकर आए हैं.जब मिसबिहेव करने लगें
यह समस्या काफ़ी हद तक बचपन के पालन-पोषण पर निर्भर होती है. * बचपन में जब बच्चे ग़लत व्यवहार करने, अपशब्द बोलने, उल्टा जवाब देने लगें, तो उन्हें तभी रोकना चाहिए. ‘बच्चा है’ कहकर उसके मिसबिहेवियर को अनदेखा करना ग़लत है. * उन्हें अनुशासन में रहना सिखाएं. अनुशासन जहां टीनएजर्स को ज़िम्मेदार बनाएगा. वहीं उनके बिहेवियर में भी सुधार लाएगा. * कहीं बच्चा ग़लत संगत में तो अधिक व़क्त नहीं बिता रहा, इसे भी चेक करें. * आजकल कुछ टीनएजर्स स्टाइल और शोऑफ के चलते भी मिसबिहेव करने लगते हैं. इसलिए इस पहलू को भी हल्के में न लें. * टीनएज की केयर करना अच्छी बात है, पर इस बात का भी ख़्याल रखना होगा कि कितना और कैसे? यहां पर पैरेंट्स का बैलेंसिंग बिहेवियर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. * अपना तनाव बच्चे पर ज़ाहिर न करें, न ही तनावग्रस्त होने पर बच्चे से मिसबिहेव करें. इससे बच्चे का बिहेवियर प्रभावित हो सकता है. * आपसी मतभेद और नाराज़गी को बच्चों के सामने न प्रकट करें. उनके सामने लड़ने-झगड़ने से बचें. उनकी लड़ाई बच्चों पर निगेटिव प्रभाव डाल सकती है. वे ख़ुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं. साथ ही आपके प्रति प्यार-विश्वास भी कम होने लगता है. * कुछ अभिभावक अपने बच्चे की हर ग़लती को चुपचाप बर्दाश्त करते हैं, जो ठीक नहीं है. अगर वो कोई ग़लत व्यवहार करता है, तो उसे डांटें, ताकि उसे अपनी ग़लती का एहसास हो जाए. * बदतमीज़ी नज़रअंदाज़ न करें. ऐसा करने पर उन्हें तुरंत टोकें और अकेले में उन्हें डांटने का कारण भी बताएं.जब झूठ बोलने लगें
* अक्सर पैरेंट्स की डांट-मार के डर से बचने के लिए बच्चे झूठ बोलते हैं. इसके लिए अभिभावकों को चाहिए कि वे घर का माहौल और अपना व्यवहार इस तरह रखें कि बच्चे बिना डर-झिझक के आप से हर सही-ग़लत बात शेयर करें. * जब कभी वे कोई ग़लती करें, तो मारने या सज़ा देने से पहले इस विषय पर हेल्दी चर्चा करें. * उन्हें टार्गेट दें कि एक बार दिनभर में 10 बार झूठ बोलें और शाम को देखें कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं और अगले दिन दिनभर में 10 बार सच बोलकर देखें. इन दोनों स्थितियों में उनके मन में हुई उथल-पुथल व उनके मनोभावों का विश्लेषण करने के लिए कहें. दोनों ही स्थितियों की अनुभूतियों द्वारा ख़ुद में हुए फ़र्क़ को वे महसूस करेंगे. * पैरेंट्स अपने अंतर्मन में झांकें कि वे कितना झूठ बोलते हैं. बच्चों को सलाह देने से पहले उन्हें ख़ुद में सुधार करना होगा. * अपने बच्चों का पक्ष लेना भी सीखें. टीचर-फ्रेंड ने डांटा, यह बात सुनने पर अक्सर आपका जवाब होता है कि ज़रूर तुमने ग़लती की होगी. हर बार अपने ही बच्चे को दोष न दें, बल्कि सच्चाई जानने की कोशिश करें. * ईमानदारी और सच्चाई की शिक्षा दें. उनके काम की तारीफ़ करें, जिससे वे दोबारा अच्छा करने के लिए प्रेरित हों. * अगर बच्चा दोस्तों के साथ फिल्म देखने जाना चाहे या पार्टी करना चाहे, तो कभी-कभार छूट ज़रूर दें. इससे वो पैरेंट्स पर विश्वास करेगा और झूठ नहीं बोलेगा. * उसे यह महसूस करवाएं कि झूठ बोलनेवालों को आगे चलकर कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. जबकि सच बोलने से लोगों में अच्छी इमेज बनती है और पैरेंट्स के साथ-साथ दोस्तों का भी विश्वास बढ़ता है. * जब बच्चा झूठ बोले, तो मार-पीट और सख़्ती से बचें. संयम से समझाएं कि झूठ बोलना गंदी आदत है. अच्छे बच्चे झूठ नहीं बोलते. अगली बार सच बताने पर सज़ा नहीं, बल्कि मनपसंद चीज़ मिलेगी. ऐसे में जब भी कोई ग़लती होगी, तो वो सच बताएगा और हां, आप भी अपने वादे को निभाएं.पलटकर जवाब देने पर
पलटकर जवाब देना किसी को भी बुरा लगता है. एक तरह से अनजाने में ही हम अगले का अपमान कर देते हैं. और यदि बच्चे ऐसा करें, तो मन और भी आहत होता है. * कोई आपके साथ ऐसा व्यवहार करे, तो आपको कैसा लगेगा? यह सवाल बच्चों से ज़रूर पूछें. इससे बच्चे अपनी इस बुरी आदत पर ग़ौर करेंगे. * उन्हें समझाएं कि उनका इस तरह जवाब देना, दूसरे को दुखी कर सकता है. * पैरेंट होने के नाते आपकी ये ज़िम्मेदारी है कि आप अपने किशोर बच्चे का हर तरह से ख़्याल रखें. उन्हें हर ज़रूरी चीज़ मुहैया करवाएं, लेकिन ऐसा करते समय इस बात का भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि उनकी हर उचित-अनुचित मांग को पूरा न किया जाए. ऐसा करने से वे चीज़ों की कद्र करना नहीं सीख पाते और न मिलने पर ज़िद्द करना, पलटकर उल्टे-सीधे उलाहने देना, उनके व्यवहार में शामिल हो जाता है. * टीनएजर्स बच्चों को पैसों और बचत के महत्व के बारे में बताएं. * बड़े होने के बाद बच्चों को अपने लिए स्पेस चाहिए और जब उन्हें ये स्पेस नहीं मिलती, तो वे पैरैंट्स से बदतमीज़ी से बातें करने लगते हैं. अतः समझदार पैरेंट्स की तरह बच्चों की मानसिकता को समझें और उसके मुताबिक़ व्यवहार करने की कोशिश करें. * यदि आपका बच्चा कोई अच्छा काम करता है, तो उसकी तारीफ़ करें, इसी तरह कुछ ग़लत करने पर उसे अकेले में ले जाकर समझाएं. सबके सामने डांटने पर बच्चे तनावग्रस्त हो सकते हैं. * बच्चे के ग़ुस्से में किए गए ग़लत व्यवहार का जवाब ग़ुस्से से देने की बजाय उस व़क्त उसकी बात चुपचाप सुन लें. जब वो शांत हो जाए, तब समझाएं. दूसरों से उचित व्यवहार और बाहरी दुनिया का सामना करना सिखाएं.इसे भी पढ़ें: शर्म-संकोच और बच्चों का विकास
फैमिली व रिश्तेदारों से कटने लगें
* बच्चों को फैमिली वैल्यू और संस्कारों से जोड़ना बेहद ज़रूरी है. पारिवारिक मूल्य उन्हें अच्छा नागरिक बनाने में मदद करते हैं. बच्चों को परंपरा और संस्कारों का पाठ सिखाएं. तीज-त्योहारों या शादी-ब्याह की तैयारी करते समय उन्हें शामिल करें. रस्मों के महत्व के बारे में समझाएं. * यह आपकी ज़िम्मेदारी है कि बच्चों को परिवार के अन्य सदस्यों से कैसे जोड़ा जाए. उन्हें रिश्तों के महत्व समझाएं. * आपका परिवार आपके लिए विशेष है, तो उसके अपने विशेष नियम भी होने चाहिए, जैसे- महीने में एक बार परिवार के साथ गेट-टुगेदर करें. पैरेंट्स बच्चों को ड्रामा या कोई कहानी एक्टिंग के साथ सुनाएंगे और बच्चे भी कुछ अलग करेंगे या फिर फेस्टिवल पर बच्चों को सरप्राइज़ गिफ्ट्स मिलेंगे. इस तरह एक-दूसरे के प्रति और बच्चों में भी उत्साह और प्यार बढ़ेगा. * बच्चों को सामाजिक कार्यक्रमों की अहमियत भी बताएं. * यदि बच्चे का मन दोस्तों के साथ फिल्म देखने या बाहर जाने का है, तो उसे जाने दें, लेकिन उसे बता दें कि अगले हफ़्ते हम चाचाजी के घर व़क्त बिताएंगे. * किसी बात के लिए उन पर दबाव न डालें. इससे उन्हें खीझ होगी, बल्कि उन्हें इस बात का महत्व समझाएं कि दुख-मुसीबत हो या फिर कोई ख़ुशी का मौक़ा, परिवार-रिश्तेदारों का साथ देना ज़रूरी है. यह अच्छे इंसान की पहचान है. * जिस तरह आप दोस्तों को सपोर्ट करते हैं, उसी तरह परिवार को भी आपके सहयोग की ज़रूरत होती है, ये बात उन्हें समझाएं. * फैमिली गैदरिंग में कभी भी बच्चों की एक-दूसरे से तुलना न करें, न ही उनके बारे में कोई नकारात्मक बात कहें. इससे उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है और शायद वे अगली बार आपके साथ ऐसी गैदरिंग में जाने के लिए तैयार ही न हों.हर व़क्त मोबाइल/सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर रहने लगें
अधिकतर केस में जब अपनों का साथ कम मिलने लगे और अभिभावक बच्चों को पर्याप्त व़क्त न दे पाएं, तब बच्चे अपना अधिक व़क्त मोबाइल, कंप्यूटर, सोशल नेटवर्क पर बिताने लगते हैं. * इसलिए पैरेंट्स चाहे कितने भी बिज़ी क्यों न हों, अपने बच्चे के लिए समय ज़रूर निकालें. * कम से कम पूरे दिन में एक व़क्त पूरा परिवार इकट्ठे बैठकर साथ समय बिताए. इसमें बातचीत, हंसी-मज़ाक, गेम्स खेलना, क्रॉसवर्ड सॉल्व करना, गार्डनिंग करना... अपनी और टीनएज बच्चे की पसंद के अनुसार बहुत कुछ किया जा सकता है. * उनके फ्रेंड बनने की कोशिश करें. बच्चे से दिनभर की एक्टिविटीज़ के बारे में पूछें. * मोबाइल या इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए समय सीमा निर्धारित करें. * हाल ही में एक मोबाइल कंपनी ने एक नई सर्विस लॉन्च की है, जो पैरेंट्स को अपने बच्चों के मोबाइल फोन पर बेहतर ढंग से कंट्रोल करने में मदद करेगी. इससे पैरेंट्स बच्चों के किए फोन पर टाइम लिमिट कर सकते हैं. वे इस बात की सीमा भी निर्धारित कर सकते हैं कि उनके बच्चे दिन के किस समय और कितनी देर तक फोन का इस्तेमाल करें. * एक सर्वे के मुताबिक़ जब पैरेंट्स बच्चे के कमरे में आते हैं, तो वे या तो इंटरनेट ब्राउज़र की हिस्टरी क्लीन कर देते हैं या फिर ब्राउज़र को मिनीमाइज़ कर देते हैं, जिससे पैरेंट्स यह नहीं जान पाते कि उनका बच्चा इंटरनेट पर क्या कर रहा है. पैरेंट्स इन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें. बच्चे की जासूसी नहीं, पर निगरानी ज़रूर रखें. * बेहतर होगा कि अपने बच्चों पर अंधाविश्वास करने की बजाय उनकी एक्टिविटीज़ पर ध्यान दें और प्रैक्टिकली उन्हें कैसे सॉल्व किया जा सकता है, उसके लिए सार्थक क़दम उठाएं. * हाल ही में एक अमेरिकी स्कूल में किए गए रिसर्च के अध्ययन से चौंकानेवाले नतीजे सामने आए हैं. रिसर्च के अनुसार, टीनएजर्स में एसएमएस के ज़रिए पोर्न पिक्चर्स, जिसे हम दूसरे शब्दों में सेक्सटिंग कहते हैं, का आदान-प्रदान धड़ल्ले से हो रहा है. आंकड़ों का जायज़ा लें, तो एक तिहाई टीनएजर्स के बीच इस तरह का आदान-प्रदान हो रहा है. पैरेंट्स बच्चों की इस दुनिया से भी अनजान न रहें. उन्हें सही-ग़लत की पहचान करना सिखाएं. हरेक चीज़ की सही उम्र और व़क्त होता है, इसे उदाहरण व तथ्यपूर्ण ढंग से बताएं. * यंग होते टीनएज बच्चे को क्रिएटिव और अच्छे काम करने के लिए प्रोत्साहित करें. सही मार्गदर्शन से आपके बच्चे इस प्रगतिशील समाज का हिस्सा बनेंगे और साथ ही युवावस्था के इस भटकाव से भी दूर होंगे. * स़िर्फ फोन ही नहीं, आपकी टीवी देखने की लत का भी बच्चों पर असर होता है. इसलिए ऐसे प्रोग्राम देखें, जिनसे बच्चों की नॉलेज बढ़े. साथ ही ये भी सुनिश्चित करें कि होमवर्क ख़त्म करने के बाद ही बच्चा टीवी के सामने बैठे. * बच्चों के दोस्तों को नज़रअंदाज़ न करें. उनका आदर करें. उन्हें घर पर बुलाएं. यदि आपको लगता है कि उसका कोई मित्र ठीक नहीं है, तो तुरंत प्रतिक्रिया न दें. आराम से धीरे-धीरे उसके किसी अच्छे मित्र की तुलना उसके बदमाश दोस्त से करें. उसे ख़ुद ही दोनों में फ़र्क़ करने का मौक़ा दें. * रात को मोबाइल उसे अपने बेडरूम में न ले जाने दें, वरना वो सोने की बजाय टेक्सटिंग ही करते रहेंगे. * खाने के व़क्त मोबाइल का इस्तेमाल बैन कर दें. घर में नियम बनाएं कि खाने के व़क्त कोई भी मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करेगा.अनुशासन कैसे सिखाएं?
कहते हैं, बच्चों को अनुशासन की घुट्टी बचपन से ही पिलाई जाती है. इससे वे आगे चलकर एक ज़िम्मेदार नागरिक बनने के साथ-साथ क़ामयाब भी बनते हैं. रही बात टीनएजर्स की, तो अब भी देर नहीं हुई है. * बच्चे छोटे हों या बड़े वे बड़ों से ही सीखते हैं, इसलिए टीनएजर बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए पहले ख़ुद भी आपको अनुशासित बनना पड़ेगा. * अनुशासन सिखाने की प्रक्रिया थोड़ी धीमी ज़रूर हो सकती है, पर इसका प्रभाव ज़िंदगीभर बना रहता है. * किशोर बच्चे के भोजन करने, बाहर खेलने या फिर दोस्तों के साथ व़क्त बिताने का एक समय निश्चित कर दें. * यदि इसमें कुछ आगे-पीछे हो, तो एक-दो बार रियायत दे सकते हैं, लेकिन बाद में समय की सख़्ती बनाए रखें. * कभी भी टीनएज बच्चे को दबाव में या सज़ा-सख़्ती बरतकर अनुशासित रहने के लिए मजबूर न करें. इस प्रक्रिया में पैरेंट्स को धैर्य और सूझबूझ से काम लेना होगा. * अपने बढ़ते बच्चे के मनोविज्ञान को समझें. आख़िर वे डिसीप्लिन में रहना क्यों पसंद नहीं करते. पीयर प्रेशर, आसपास का माहौल या दूसरे बच्चे ऐसा कर रहे हैं, तो मैं क्यों नहीं? यदि बच्चे की मनोस्थिति ऐसी है, तो उसे दुरुस्त करने की ज़रूरत है. वो भी आज के माहौल के अनुसार. * मनोवैज्ञानिक कहते हैं, बच्चों की इच्छा पर रोक लगने से उनके अंदर कुंठा पैदा होती है और वह ग़ुस्से में बदल जाती है. यह अवस्था किशोरावस्था तक विकसित होती रहती है. इसे समझने की कोशिश करें. * उन्हें अनुशासन के महत्व के बारे में बताएं कि यदि काम समय और नियमानुसार हो, तो काम और उसके परिणाम अच्छे होते हैं. उन्हें समझाएं कि अनुशासन में रहने पर वो हर काम को समय पर करना सीखेंगे, इससे वे समय के महत्व को समझ सकेंगे. उसकी कद्र करेंगे. यही सब बातें जीवन में सफल बनने और आगे बढ़ने का माध्यम बनेंगी.- ऊषा गुप्ता
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