बहुत समय पहले की बात है. जंगल के पास एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था. वो बाज अक्सर आसपास के ख़रगोशों का शिकार कर अपना पेट आसानी से भर लेता था.
पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ भी अपना घोंसला बनाकर रहता था, लेकिन वो कौवा बड़ा ही चालाक और धूर्त था. वो हमेशा इसी प्रयास में लगा रहता कि बिना मेहनत किए ही उसे आसानी से खाना मिल जाए. पेड़ के आसपास जो खरगोश रहते थे, ऊँसेंट वो अक्सर बाज का शिकार होते देखता था. जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरता और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाता.
रोज़ ये देखते-देखते एक दिन कौए ने सोचा कि यूं तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ नहीं आनेवाले, लेकिन अगर इनका नर्म और स्वादिष्ट मांस खाना है, तो मुझे भी बाज की तरह करना होगा. उसकी ही नक़ल करके अपना शिकार करना होगा. मैं भी एकाएक झपट्टा मारकर खरगोश को पकड़ लूंगा.
अगले दिन कौए ने भी एक खरगोश को दबोचने की अपनी सोच और योजना को पूरा करने की बात सोची और ऊंची उड़ान भरने की पूरी कोशिश की. फिर उसने जैसे ही खरगोश को देखा तो बाज कि तरह तेज़ रफतार से झपट्टा मारा, लेकिन कौआ तो आख़िर कौवा ही था, उसका बाज का क्या मुकाबला?
तेज़ खरगोश ने उसे देख लिया और झटपट वहां से भागकर चट्टान के पीछे छिप गया. कौवे ने देखा कि खरगोश तो वहां से हट चुका है, इसलिए उसने बिना सोचे-समझे अपनी रफ़्तार कम करनी चाही, पर तब तक देर हो चुकी थी और कौवा इससे पहले कि कुछ और सोच और समझ पाता वो वहां की बड़ी चट्टान से जा टकराया. नतीजा, उसकी चोंच और गर्दन टूट गईं. वो दर्द से तड़प उठा और गंभीर रूप से घायल हो चुका यह. उसे सबक़ भी मिल चुका था कि यूं ही बिना सोचे-समझे नक़ल करना ग़लत है, इसका नतीजा ग़लत ही निकलता है.
सीख: इस कहानी से यही सीख मिलती है कि नकल करने के लिए भी अकल चाहिए. हम अक्सर दूसरों को देख उनकी तरह बनने की चाह में अंधाधुंध नक़ल करने में जुट जाते हैं बिना अपनी शक्ति, मानसिक बल और क्षमता को समझे. अगर नक़ल करनी है या किसी और की तरह बनना है तो प्रेरित हों और मेहनत से सही योजना बनाकर अंजाम दें, वर्ना लेने के देने ही पड़ेंगे!
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