एक घने जंगल में एक उल्लू रहता था. उसे दिन में कुछ भी दिखाई नहीं देता था, इसलिए वह दिनभर पेड़ में ही छिपकर रहता और रात होने पर बाहर भोजन ढूंढ़ने निकलता था. वो इसी तरह नियमित रूप से अपनी दिनचर्या का पालन करता था.
एक रोज़ भरी दोपहर में कहीं से एक बंदर उस पेड़ पर आया. उस दिन बहुत तेज गर्मी थी. गर्मी से बचने के लिए वो बंदर पेड़ पर ही बैठ गया और कहने लगा कि कितनी तेज़ गर्मी है. ऐसा लग रहा है मानो आसमान में सूरज नहीं कोई आग का गोला चमक रहा है जो आग बरसा रहा है.
बंदर की बातें सुनकर उल्लू से रहा नहीं गया और वो बोला कि ये तुम क्या कह रहे हो? ये तो सरासर झूठी बात है. हां, अगर तुम सूरज नहीं चांद के चमकने की बात कहते तो मैं मान भी लेता.
उल्लू की बातें सुन बंदर ने कहा- अरे भाई, दिन में भला चंद्रमा कैसे चमक सकता है, वो तो रात को ही आता है. दिन के समय के तो सूरज ही होता है और उसी की वजह से इतनी गर्मी भी हो रही है. बंदर ने उल्लू को अपनी बात समझाई. लेकिन उल्लू था कि अपनी ज़िद पर अड़ा रहा और बंदर से लगातार बहस किए जा रहा था.
जब दोनों के बीच तर्क-वितर्क का कोई परिणाम नहीं निकला तो उल्लू ने कहा कि ऐसा करते हैं मेरे मित्र के पास चलते हैं और उससे पूछते हैं. वही सच बताएगा.
उल्लू की बात मानकर बंदर उसके साथ चल पड़ा. वो दोनों एक दूसरे पेड़ पर गए जहां एक-दो नहीं, बल्कि कई सारे उल्लुओं का झुंड था. उल्लू ने उन सबसे कहा कि ये बताओ आसमान में क्या सूरज चमक रहा है?
सभी उल्लू ज़ोर से हंस पड़े और बोले अरे तुम मूर्खों वाली बात क्यों कर रहे हो? आसमान में तो चांद ही चमक रहा है. बंदर काफ़ी हैरान था लेकिन वो भी अपनी बात पर अड़ा रहा. सभी उल्लू ने उसका खूब मज़ाक़ उड़ाया, लेकिन जब बंदर ने उनकी बात नहीं मानी तो उन सबको ग़ुस्सा आ गया और वो बंदर को मारने के लिए एक साथ उस पर झपट पड़े.
दिन का समय था और इसी वजह से उल्लुओं को कम दिखाई दे रहा था, इसलिए बंदर किसी तरह अपनी जान बचाकर वहां से भागने में कामयाब हो पाया.
सीख: मूर्खों से बहस करना बेवक़ूफ़ी है क्योंकि वो कभी भी बुद्धिमान लोगों की बातों को सच नहीं मानते और ऐसे लोग बहुमत के चलते सत्य को भी झुठला कर असत्य साबित कर देते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को समझने या उनसे तर्क करने का कोई फायदा नहीं.