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पंचतंत्र की कहानी: मित्र-द्रोह का फल (Panchatantra Story: Right-Mind And Wrong-Mind)

बहुत समय पहले की बात है, हिम्मतनगर नाम के एक गांव में दो मित्र रहते थे, जिनका नाम धर्मबुद्धि और पापबुद्धि था. धर्मबुद्धि सीधा-साधा ईमानदार और नेक इंसान था और पापबुद्धि बेहद धूर्त और चालाक था. पापबुद्धि के चालक मन में एक दिन ये ख्याल आया कि मैं धर्मबुद्धि के साथ दूसरे नगर जाकर ढेर सारा धन कमाऊंगा और किसी ना किसी तरीके से वह सारा धन धर्मबुद्धि से हड़प लूंगा और आगे का सारा जीवन बड़े ही सुख-चैन से बिताऊंगा.

उसने किसी ना किसी तरीके से धर्मबुद्धि को अपने साथ चलने के लिए तैयार कर लिया और फिर दोनों अन्य नगर के लिए निकल गए. जाते समय वे अपने साथ ढेर सारा सामान लेकर गए थे और उसे अन्य नगरी में मुंह मांगे दामों में बेचकर खूब पैसा और स्वर्ण मुद्राएं इकट्ठी कर ली. दोनों ख़ुशी-ख़ुशी अपने गांव की ओर लौटने लगे.

गांव से पास पहुंचने पर बस कुछ दूर पहले ही पाप बुद्धि ने धर्म बुद्धि से कहा- अगर हम इतना सारा धन एक साथ गांव में ले जाएंगे तो हो सकता है कि गांव वाले हमसे कुछ धनराशि कर्ज के रूप में ले लें या हो सकता है कि लोग हमसे जलने लगें या फिर कोई चोर इस धन को हमसे चुरा ले. इसलिए हमें इस धन को किसी सुरक्षित स्थान पर छुपा देना चाहिए. इतना सारा धन एक साथ देखने पर तो किसी साधु-संन्यासी, योगी-महात्मा का मन भी डोल सकता है.

धर्मबुद्धि ने पापबुद्धि की बात से सहमति जताई और दोनों ने जंगल में एक सुरक्षित जगह खोजी और एक पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर उसमें धन को छिपा दिया. इसके बाद दोनों गांव चले गए.

एक रात पापबुद्धि ने मौका पाकर जंगल में जाकर वो सारा धन निकाल लिया और अपने साथ ले गया. धर्मबुद्धि इस बात से अनजान था और कई दिन बीत जाने के बाद वो पापबुद्धि के पास आया और बोला- भाई मुझे धन की आवश्यकता आ पड़ी है, आप चलो मेरे साथ तो हम दोनों उस गाढ़े हुए धन को निकाल लाते हैं. पापबुद्धि तैयार हो गया.

दोनों ने जब इस पेड़ के पास से मिट्टी हटाई तो वहां पर कुछ नहीं था. पापबुद्धि ने सीधे-सीधे धर्मबुद्धि पर धन चुराने का आरोप लगा दिया. इस बात पर दोनों में बहस होने लगी और फिर जब दोनों में झगड़ा बढ़ा तो दोनों न्यायाधीश के पास पहुंचे.

दोनों से कहा गया कि वो अपना पक्ष रखें. इसके बाद न्यायाधीश ने सच्चाई का पता लगाने के लिए दिव्य परीक्षा लेने का निर्णय लिया और दोनों से कहा कि वो जलती हुई आग में हाथ डालें. पापबुद्धि ने इसका विरोध किया और कहा कि आग में हाथ डालने की ज़रूरत नाहीं है, सच्चाई की गवाही तो वन देवता देंगे. न्यायाधीश तैयार हो गए.

धूर्त पापबुद्धि ने पहले ही एक खोखले वृक्ष के तने में अपने पिता को बैठा दिया था. जब उस पेड़ के पास पहुंच कर न्यायाधीश ने वन देवता से पूछा कि दोनों में से चोर कौन है तो पेड़ के तने से आवाज़ आई कि चोर धर्मबुद्धि है.

धर्मबुद्धि ने जब यह सुना तो उसने उस पेड़ के नीचे आग लगा दी. थोड़ी देर में जब आग बढ़ने लगी तो पापबुद्धि का पिता भी जलने लगा और कुछ देर में आग से झुलसने के कारण पापबुद्धि का पिता रोने-चिल्लाने लगा और वो तड़पते हुए उस पेड़ से बाहर निकल आया वो भी एकदम झुलसा हुआ और उसने न्यायाधीश के सामने पापबुद्धि की सारी योजना का खुलासा कर दिया.

सच्चाई सामने आने पर न्यायाधीश ने पापबुद्धि को मौत कि सज़ा सुनाई.

सीख: लालच बुरी बला है और उससे भी बुरा है अपनों के साथ धोखा और विश्वासघात करना. इन बुराइयों से दूर रहें और ईमानदारी व सच्चाई के साथ चलें.

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