पहला अफेयर: रॉन्ग नंबर (Pahla Affair: Wrong Number)
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी ये मखमली, सुकोमल एहसास ज़रूर होता है, जिसमें आपको दुनिया की हर चीज़ अचानक यूं ही अच्छी लगने लगती है. बेवजह मुस्कुराना अच्छा लगता है, जब दिल ज़ोर-ज़ोर से किसी के आने की आहट पर धड़कने लगता है, तो उस पर काबू न कर पाना अच्छा लगता है. मेरे साथ भी कुछ ऐसी ही घटना घटित हुई. उन दिनों हमारे यहां लैंडलाइन फोन हुआ करता था. उस दिन शाम फोन अचानक घनघनाकर बज उठा था. घर के सभी लोग काम में बिज़ी थे, सो फोन मैंने ही उठाया. उधर से ‘हैलो’ के संबोधन ने मेरे मन-मस्तिष्क के तारों को झंकृत-सा कर दिया था. कितना अपनापन और सुकून था उस आवाज़ में, लेकिन दुर्भाग्य से वो रॉन्ग नंबर था, सो सॉरी कहकर रख दिया. मगर रिसीवर रखने के बाद भी दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़के जा रहा था और मैं समझ नहीं पा रही थी कि ये किस तरह का एहसास है, मगर... वो ‘हैलो’ अभी तक मेरे कानों में गूंज रही थी. मन कर रहा था कि दोबारा उस अजनबी की आवाज़ सुनने को मिल जाए. मेरे मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. इसी बीच कई दिन गुज़र गए, मगर कोई फोन नहीं आया. कुछ दिनों के बाद उसी समय फोन ‘ट्रिन ट्रिन’ कर फिर बजा और मुझे भी ये एहसास हुआ कि ज़रूर ये उसी अजनबी का कॉल है. मैंने लपककर कॉल लिया और वही निकला, जिसकी मुझे उम्मीद थी. उसकी ‘हैलो’ सुनकर काफ़ी सुकून मिला. मैं जिस तरह उसकी आवाज़ सुनने को बेचैन थी, उसका भी वही हाल था, इसका मतलब अंजाने में दोनों के दिल के तार एक-दूसरे से जुड़ने की कोशिश में थे. अब तो घरवालों से नज़रें चुराकर, बच-बचाकर घंटों एक-दूसरे से फोन पर हम बातें करते और कब हम इतने क़रीब आ गए कि एक-दूसरे की ज़िंदगी का अहम् हिस्सा बन गए, पता भी नहीं चला. हमारी फोन पर दोस्ती को दो साल बीत चुके थे. काफ़ी कुछ जान गए थे हम एक-दूसरे के बारे में, वो भी बिना मिले और देखे. यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: मासूम परछाइयां ख़ैर, व़क्त अपनी रफ़्तार से चल रहा था. घर में सब मेरी शादी के लिए लड़का तलाशने लगे. मेरा दिल तो डूबा जा रहा था. उस अजनबी के बिना जीना मुश्किल लग रहा था. मगर अपने डर और संकोच के आगे घरवालों को कुछ भी नहीं बता पाई मैं उस फोन फ्रेंड के बारे में. आख़िर वो पल भी आ गया, जब मुझे लड़केवाले देखने आए. मुझे पहली नज़र में ही पसंद कर लिया गया था. मगर लड़के ने मुझसे अकेले में मिलने की मंशा ज़ाहिर की. मिलने के दौरान उसने मुझे बताया कि उसके जीवन में कोई लड़की है, जिसे वो अपनी ज़िंदगी मानता है. घरवालों के दबाव में आकर वो यहां मुझे देखने आ गया था. हमने सोचा इस व़क्त शादी के लिए इंकार किया, तो दोनों के घरवालों को समझाना मुश्किल होगा. उसने मुझे अपनी जेब से एक फोन निकालकर दिया और कहा कि घर जाकर वो फोन करेगा, ताकि सोचा जा सके कि किस तरह से शादी को रोक सकते हैं. मैंने भी अनमने मन से फोन ले लिया. जाने के लगभग तीन दिन बाद उस मोबाइल पर फोन आया और ‘हैलो’ का संबोधन सुन मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई. अचानक लगा कि वो अजनबी इस फोन पर कैसे हो सकता है, मगर सच्चाई यही थी कि वो अजनबी ही मुझे देखने आया था, लेकिन हम दोनों ही इस बात से अंजान थे. क़िस्मत भी कभी-कभी कितने अजीबो-ग़रीब खेल खेलती है. अब तो हम दोनों ने ही ख़ुशी-ख़ुशी शादी के लिए ‘हां’ कर दी थी. आख़िर करते भी क्यों न, रॉन्ग नंबर मेरे जीवन का राइट नंबर जो बन चुका था.- मंजू यादव
Link Copied