लव स्टोरी- तुम ही तो हो मेरी संध्या…(Love Story- Tum Hi To Ho Meri Sandhya…)
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रिश्ते में महेश मेरे दीदी के देवर थे, लेकिन मैं इस बात से पहले अनजान थी. हमारी पहली मुलाक़ात मेरे चचेरे भाई के यहां हुई. उनका शांत और सौम्य व्यक्तित्व पहली मुलाक़ात में ही मेरे मन को भा गया. फिर दीदी की शादी में मुझे पता चला कि वो मेरे जीजाजी के भाई हैं. अब तो जब भी दीदी घर आती, महेश की ढेर सारी तारी़फें करती. उस साल गर्मी की छुट्टियां मैंने दीदी के घर पर बितायीं. इतने दिनों साथ रहकर मैं और महेश बहुत अच्छे दोस्त बन गए.
घर लौटने पर मैंने उन्हें ख़त लिखा और फिर ख़तों का सिलसिला शुरू हो गया. महेश उस व़क़्त मैथ्स से एम. एससी. कर रहे थे और मैं बायोलॉजी से बी.एससी., इसलिए पढ़ाई के बारे में तो हमारी ख़ास बात नहीं होती थी, परंतु मैं अक्सर उनसे पूछती कि मुझे भी एम. एससी. करनी है तो इसके लिए बी.एससी. में कितने प्रतिशत अंक चाहिए.
मेरे मन में महेश के लिए बहुत सम्मान था. पर इस सम्मान में छिपे प्यार से मैं अनजान थी. महेश की बातें कभी मेरी समझ में न आतीं. कभी वो मेरा मज़ाक उड़ातेे तो कभी मुझ पर हक़ जमाते.
एक दिन दीदी ने मुझे संध्या के बारे में बताया कि महेश उससे बेहद प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं. दीदी ने मुझसे वादा लिया कि महेश और संध्या के रिश्ते के बारे में जीजू को समझाने में मदद करूंगी. मेरे दिल में छन्न से कुछ टूट गया, यानी महेश मुझसे प्यार नहीं करते.
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लेकिन मैंने अपनी भावनाएं किसी पर ज़ाहिर नहीं होने दीं. महेश पर भी नहीं, बल्कि अपनी चाहत छिपाने के लिए मैं उन्हें संध्या के नाम से अक्सर छेड़ती. मन में छिपी चाहत तो हमेशा के लिए ख़त्म हो गई.
दीदी के बेटे के पहले जन्मदिन पर मैंने और महेश ने मिलकर ढेर सारी तैयारियां कीं और महेश ने मुझे जी भरकर तंग किया. जाते-जाते मैंने महेश से संध्या की फ़ोटो दिखाने की ज़िद की. सुबह से शाम तक वो चुप रहे, पर रात को जब सब सोने चले गए तो उन्होंने धीरे से मुझसे पूछा, "संध्या की फ़ोटो नहीं देखनी है क्या?" मैं तो उसकी फ़ोटो देखने के लिए बेताब थी ही. वो मुझे छत पर ले गए. मैंने पूछा कि अब तो फ़ोटो दिखा दीजिए. जवाब में उन्होंने एक छोटा-सा आईना मेरे सामने रख दिया और बोले, "मिलिए मेरी संध्या से." मैं कुछ कह पाती, इससे पहले उन्होंने हमारी मुहब्बत को शब्दों के रंगों से भर दिया.
"प्रिय वर्षा, मैं कोई कवि नहीं हूं जो तुम्हारी सुंदरता पर कविता लिखता. पर तुम जब भी मेरे साथ होती हो, मेरा ख़ुद पर, ज़िंदगी पर यक़ीन बढ़ जाता है. तुम्हारे विचारों व स्वभाव से मैं बहुत प्रभावित हूं और सच्चे मन से तुम्हें अपना जीवनसाथी मान चुका हूं. अब तो इस जीवन की सुबह भी तुम हो और शाम भी. इसलिए तुम ही हो मेरी, स़िर्फ मेरी संध्या."
आज हमारी शादी को पूरे पांच साल हो गए हैं और हमारी प्यारी-सी बेटी अदा हम दोनों के जीवन की मुस्कान बन गई है.
- वर्षा कोष्टा
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