पहला अफेयर: सावन के महीने का मदमस्त प्यार (Pahla Affair: Romance In The Rain)
मौक़ा मिलते ही खुली छत पर जाकर चांद-सितारे निहारना, जुगनुओं के पीछे भागना, स्कूल से आते ही तितलियां पकड़ना, किसी की भी नकल उतारना, दादी मां का चश्मा छिपा देना, मां के आंचल से गंदे हाथ पोंछना- और भी न जाने कैसी-कैसी ऊटपटांग हरक़तें करना, वो दिन भी क्या दिन थे.
उन दिनों लड़कियों को आज जितनी आज़ादी नहीं थी, लेकिन घर-आंगन में, मुहल्ले में हिरणियों की तरह कुलांचे भरना, बिना बात के खी-खी करना और सावन की बरसात में तो जैसे पागलपन ही सवार हो जाता था. ऐसी ही बरसात की एक शाम ने मेरा सारा बचपन छीन लिया और मैं न जाने कितनी बड़ी हो गई. कॉलेज के फंक्शन की तैयारी चल रही थी. सजावट का काफ़ी काम मेरे ज़िम्मे था.
काम समेटकर जब बाहर निकली, तो शाम ढल चुकी थी. कॉलेज लगभग खाली हो चुका था. जैसे ही मैंने साइकिल उठाई, तो होश उड़ गए. साइकल पंक्चर थी, अब क्या किया जाए? छोटा शहर और कॉलेज से शहर की दूरी तीन किलोमीटर. उस समय रिक्शा मिलने का भी कोई सवाल नहीं था, उस पर सुनसान रास्ता. पैदल जाने की हिम्मत जुटा ही रही थी कि एक साइकल आकर मेरे पास रुकी. देखा तो मेरा सीनियर था. भले ही को-एजुकेशन थी, लेकिन लड़कियां गिनती की ही थीं. लड़कों से भी बातचीत न के बराबर ही होती थी. शिष्टाचार के नाते उसने मदद की पेशकश की और मुझे मजबूरी में लिफ्ट लेनी ही पड़ी. समस्या यह भी थी कि उसकी साइकल में
यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: प्यार को मिला रिश्ते का नाम… यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: कच्ची उम्र का प्यारकैरियर नहीं था, इसलिए मुझे आगे ही बैठना पड़ा. रात होने को थी, हल्की-हल्की फुहार भी पड़ रही थी. मेरी सोचने-समझने की शक्ति मानो ख़त्म हो चुकी थी. इसके अलावा मन में यह भी डर था कि कहीं कोई देख न ले. ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मोमबत्ती पिघल रही हो. मेरे दोनों ओर मज़बूत बांहों का घेरा, मदहोश करनेवाली ठंडी हवा में जैसे मैं ज़मीन में गड़ी जा रही थी.
शहर के शुरू होते ही उसने साइकल रोक दी और बिना एक शब्द बोले मैं उतरकर चल दी. धन्यवाद तक कहने के लिए मेरा मुंह नहीं खुला. कॉलेज में दो साल तक कई बार हमारा आमना-सामना हुआ. निगाहें कई बार मिलीं, उसकी मासूम-सी नज़र मेरी ओर हसरत से देखती-सी प्रतीत होती थी, लेकिन वो दौर ऐसा था कि न उसने कुछ कहने की हिम्मत जुटाई, न ही मैं पहल करके कुछ बात कर सकी. हमारी राहें जुदा हो गईं, बिना एक भी शब्द बोले.
उस पहले प्यार को मैं आज तक भूल नहीं पाई. सावन के महीने का वो निशब्द पहला प्यार याद आते ही आज भी तन-मन महक उठता है. कई सावन आए और गए, लेकिन उस सावन की याद मात्र से ही आज भी भीतर तक भीग जाती हूं. वो सावन के मदमस्त महीने का पहला अफेयर ताउम्र नहीं भूलेगा ये दिल.
- विमला गुगलानी