राधिका ने मोबाइल चेक किया. देव का मैसेज था- आज तीन तारीख है, पेंशन लेने बैंक जा रहा हूं, समय हो तो तुम भी आ जाओ. पेंशन लेने के बाद पास ही के रेस्तरां में टमैटो सूप पीने चलेंगे.
प्रेम की खुशबू से भीगे मैसेज में मुलाकात की चाह झलक रही थी. कभी-कभी कोई शख्स बिना किसी रिश्ते या नाम के जिन्दगी कोमुकम्मल बनाने की कोशिश करता है. दोस्ती में रूहानी चाहत जन्म ले लेती है. मैसेज देखकर राधिका का रोम-रोम खिल उठा. वहकिशोरी की तरह मुस्कुरा उठी. मिलने के लिए ये छोटे-छोटे पल उर्जा का काम करते थे.
पिछले साल शिक्षक पद से रिटायर्ड हुई थी. रिटायर होने के बाद खालीपन कचोटने लगा. शाम काटने के उद्देश्य से कॉलोनी मे बने पार्कमें टहलने चली जाती थी. वहीं पर पहली बार देव को देखा था. ट्रैक सूट और सिर पर कैप में आकर्षक लग रहे थे. जाने क्यों मन खिंचनेलगा था. मैं अक्सर चोरी-छिपे उन्हें देख लेती थी. देव का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि नजर नहीं हटती थी. हालांकि दोस्ती और प्रेम की उम्रनहीं थी, फिर भी दिल तो बच्चा है और जिद्दी भी, मानता कैसे?
उस दिन जाने क्या हुआ, देव उसी बेंच पर आ बैठे जिस पर अक्सर मैं बैठा करती थी. बेंच के आसपास अशोक के सूखे पत्ते बिखरे हुएथे, उन्हीं में से एक उठाकर मेरी ओर बढ़ाकर कहा, ‘आज मेरा जन्मदिन है, चाहो तो इसे देकर मुझे विश कर सकती हो.’
मैं देव के इस तरह के आग्रह पर अचकचा गई.
‘नजरें चुरा सकती हो, विश नहीं कर सकती?’ देव ने मेरी आंखों में झांका.
उस दिन हम दोनों में दोस्ती हो गई. हम दोनों ढेर सारी बातें करने लगे. एक-दूसरे के सुख-दुख बांटने लगे. अकेलापन दूर होने लगा. हमदोनों के बच्चे विदेश रहते हैं. जीवनसाथी पहले ही साथ छोड़ गए. ऐसे में देव का मिलना मेरे सूने जीवन की नेमत था. बातचीत के सिरेपकड़ते-पकड़ते दोनों एक-दूसरे का दिल बांट चुके थे. मन का रीता कोना अब भीगने लगा था.
एक दिन मैंने कहा- ‘देव, उम्र का आखिरी पड़ाव है, न जाने कब ज़िन्दगी की शाख कट जाए. मैं संशय में हूं कि इस उम्र में प्रेम करनाग़लत हो सकता है.’
‘नहीं, प्रेम किसी भी उम्र में ग़लत नहीं होता. प्रेम तो खुद खुबसूरत शै है जिसमें हर व्यक्ति निखर जाता है. प्रेम को गलत-सही कीपरिभाषा से दूर रखना चाहिए. गलत है तो अपनी भावनाओं को रोकना और उन्हें शक की नजरों से देखना. मेरी एक बात मानोगी, जानेकब सांसें साथ छोड़ दें, क्यों न कुछ दिन इस तरह जी लें जैसे टीनएज में जीते थे. जीवन के उपापोह में जो न कर सके, अब कर लें…’ और उस दिन से सच में हम किशोर उम्र में उतर गए.
चुपके-चुपके मैसेज करना, छिप-छिपकर मिलना, एक-दूसरे की पंसद का ख्याल रखना… छोटी-छोटी शरारतें कर एक-दूसरे कामनोरंजन करना… वो सब करते जो एक उम्र में करने से चूक गए थे. दोनों मंद-मंद मुस्कुराते. मैं देव की पंसद की कोई डिश बना लेती तो, वहीं देव कोई प्रेम गीत गुनगुना देते. नीरस जीवन में बहार आ गई थी.
एक दिन देव साथ छोड़ गए और मैं अकेली रह गई. मैं उदास-सी खिड़की पर खड़ी होकर देव के साथ बिताए पलों को याद करती. देवमेरे जीवन के तुम वो झरोखा थे जो मेरे जीवन को महका गए. तुम मेरे स्वरों में अंकित हो, आज तुम्हारा जन्मदिन है. अशोक का यहपीला पत्ता उस दिन की याद दिला रहा है, जिस दिन हम दोनों के दिलों में चाहत का बीज पनपा था. जिस प्रेम को इस पत्ते ने संजोयाथा, वह आज भी लहलहा रहा है. मैं इस पौधे के साथ जल्द ही तुम्हारे पास आने वाली हूं…
मेरे अंतस की पुकार में, तेरा अस्तित्व महफूज़ है… फिज़ा आज भी बहती है, बस मोगरे ने खुशबू बदल ली है…
- शोभा रानी गोयल