पहला अफेयर: लव स्टोरी- ख़्वाब (Pahla Affair: Love Story- Khwab)
कभी देखा है ख़्वाबों को उड़ते हुए... कभी देखा है चांद को आंगन में बैठे हुए... कभी देखा है आसमान को झुकते हुए... कभी देखा है हथेली पर सूरज को उगते हुए... एक ख़ामोश अफ़साने से तुम जब आते हो. फेसबुक पर जब देखती हूं ये सब कुछ होते हुए, सारी कायनात का नूर समेटे हुए अपनी अदाओं में बेपनाह चाहत भरे हुए जब तुम होते हो, तब स़िर्फ तुम होते हो और कोई नहीं होता आस-पास. आज दो साल हो गए तुमसे बात करते हुए, हम फेसबुक पर एक-दूसरे से चैट करते हैं. कब समय गुज़र गया, पता ही नहीं चला. न व़क्त का होश रहा, न ही अपना ख़्याल. दीन-दुनिया से बेख़बर हम घंटों चैट करते. हर टॉपिक पर बात करते. बहत करते, खिलखिलाते एक अलग ही जहां में खोये रहते. अजीब चीज़ है ये व़क्त भी... न कभी ठहरता है, न कभी रुकता है. बस, आगे ही आगे बढ़ता रहता है. एक दिन पापा-मम्मी ने कहा, “शादी की उम्र हो गई है तुम्हारी. कोई पसंद हो, तो बताओ.” शादी का नाम सुनते ही कुंआरी उमंगें अंगड़ाई लेने लगीं, पर पसंद तो कोई नहीं था, सो पापा से कहा, “जो आपकी पसंद हो.” कैसा जीवनसाथी होना चाहिए? उसमें क्या गुण होने चाहिए? क्या बात करनी चाहिए... जब मैंने टाइप करते हुए पूछा, तो उसने कहा, ‘जो तुम्हारी आंखों से ही समझ जाए कि तुम्हें कुछ कहना है... तुम्हारी ख़ामोश ज़ुबां की आवाज़ उसकी धड़कन को सुनाई दे, जो रिश्तों की कद्र करे, तुम्हें मान दे... ऐसा होना चाहिए जीवनसाथी.’ कहां ढूंढ़ूं उसे? पूझने पर बताया बस अपनी आंखें बंद करो, जिसका भी चेहरा सामने आए, वही है सच्चा जीवनसानी, जैसा कहा, वैसा किया, पर कोई चेहरा सामने नहीं आया. आता भी कैसे? इस फेसबुक के चेहरे के अलावा न किसी से जान, न पहचान. यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: ख़्वाबों के दरमियान… (Pahla Affair: Khwabon Ke Darmiyaan) आज पापा ने कुछ लोगों को घर पर बुलाया है. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि एक अंजान शख़्स से कैसे बात करूं? फेसबुक पर उससे बात करने में जो कंफर्ट लेवल था, वो यहां नहीं था. शाम को वो लोग आए और पापा ने पराग से मेरा परिचय करवाते हुए अकेले में बात करने को कहा. मैं बेहद घबराई हुई थी कि क्या और कहां से बात शुरू करूं. पराग ने भी बस मेरा नाम ही पूछा. हम दोनों लगभग आधे घंटे तक चुपचाप बैठे थे. कुछ दिन बाद पापा ने शादी की तारीख़ भी तय कर दी. मैंने फेसबुक पर उसे मैसेज किया कि कुछ ही दिनों में मेरी शादी होनेवाली है, पर मुझे नहीं पता वो मेरे लिए सही है या नहीं. उधर से तुरंत जवाब मिला, ‘जो केवल नाम पूछकर शादी के लिए हां कर दे, उस पर भी भरोसा नहीं करोगी क्या?’ ‘तुम्हें कैसे पता?’ ‘...अब भी नहीं पहचाना इस बंदे को?’ यह पढ़ते ही सब कुछ साफ़ हो गया... ‘पराग आप?’ ‘हां, क्या तुम मुझसे शादी करोगी?’ ‘हां...’ दिल की सारी उलझनें मिट गईं. सब कुछ मिल गया था मुझे. आंखें बंद कीं, तो चेहरा भी सामने आ गया पराग का. दो साल कम नहीं होते किसी को जानने के लिए, मैं ही नहीं समझ पाई थी इस प्यार की अनुभूति को. आज ऐसा लगा छोटे-छोटे बादल के टुकड़े हवा में तैर रहे हैं. लग रहा है मानो आकाश ज़मीं पर उतर आया है और शाम की ख़ामोशियों में एक मीठी खनक गूंज रही है.- शोभा रानी गोयल
यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: खिला गुलाब की तरह मेरा बदन… (Pahla Affair: Khila Gulab Ki Tarah Mera Badan)
Link Copied