पहला अफेयर: अधूरा एहसास... अधूरा प्यार... (Pahla Affair: Adhura Ehsas... Adhura Pyar)
हर बात अच्छी थी तुम्हारी, क्योंकि तुम में हर वो बात थी, जो किसी भी लड़की को आकर्षित कर सकती थी. कम से कम मुझे तो यही लगता था. यही वहज थी कि मैं भी बिना डोर की पतंग की तरह तुम्हारी ओर खिंचती चली गई. मुहब्बत का वो शुरुआती आकर्षण, वो कशिश, वो एहसास... बेहद ख़ुबसूरत पल थे वो. बेहद हसीन दिन... कॉलेज का लास्ट ईयर था. तुमने इसी साल कॉलेज में एडमिशन लिया था और कुछ ही दिनों में तुम लड़कियों के मोस्ट फेवरेट बन गए थे. तुम्हारा स्टाइल, एटीड्यूड और स्टडीज़ से लेकर हर एक्टिविटीज़ में सबसे आगे रहना... सब दीवानी थीं तुम्हारी ही. उन सबके बीच तुमने मुझे चुना था. मैं ख़ुद को सबसे ख़ुशनसीब समझ रही थी. वैलेंटाइन डे के दिन तुमने मुझे प्रपोज़ किया और मेरे पास भी इंकार करने का कोई कारण नहीं था. अब तो बस दिन-रात तुम्हारा ही ख़्याल... इसी बीच हमें कुछ सालों के लिए जुदा होना था, क्योंकि तुम हायर स्टडीज़ के लिए ऑस्ट्रेलिया जा रहे थे और मुझे जॉब मिल गया था. हमने वादा किया था एक-दूसरे से कि इंतज़ार करेंगे और सही व़क्त आने पर शादी भी, शायद इसीलिए ये दूरियां भी खल नहीं रही थीं इतनी. तुम्हारा रोज़ कॉल आता. वीडियो कॉल पर ढेरों बातें होतीं. तुम अक्सर पूछते कि मेरे ऑफिस में कौन-कौन है... मैं कहां जा रही हूं... क्या कर रही हूं... और मैं भी अपनी सारी बातें तुमसे शेयर करती. हमारे दिन-रात के अंतर का भी हमारी बातचीत पर असर नहीं पड़ता था. तुम देर रात तक जागते थे, मुझसे बात करने के लिए. उस दिन, तुम शायद नशे में थे, जब मैंने तुम्हें अपनी ऑफिस की पार्टी के बारे में बताया था, क्योंकि तुम्हारा ऐसा रूप मैंने पहले कभी नहीं देखा था. तुमने मुझे, अपनी प्रिया को इतना बुरा-भला कह दिया कि मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था अपने कानों पर. तुमने मेरे चरित्र पर सवाल उठाए कि ऑफिस पार्टी में दूसरों के साथ डान्स क्यों किया... इतना बन-ठन के क्यों गई... मेरे लिए काफ़ी शॉकिंग था तुम्हारा यह बर्ताव, पर मैंने अपने दिल को यही कहकर समझा लिया कि तुम दूर हो, इसीलिए ओवर पज़ेसिव हो रहे हो. साथ ही तुम नशे में भी थे. ख़ैर, दो-तीन दिन की नाराज़गी के बाद तुमने माफ़ी मांगी और सब कुछ नॉर्मल हो गया. लेकिन फिर कुछ दिनों बाद तुम्हारे वही सवालात... कि फोन क्यों नहीं उठाया, मेरा फोन था, तुम समझती क्या हो, नौकरी करके मुझ पर एहसान नहीं कर रही... और भी न जाने क्या-क्या... उसके बाद तो ये सिलसिला रूटीन ही बन गया था... तुम हर रोज़ किसी न किसी बात को लेकर मुझे बुरा-भला कहते और अगले दिन माफ़ी मांग लेते. यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: मुझे माफ़ कर देना… (Pahla Affair: Mujhe Maaf Kar Dena) अगले महीने तुम छुट्टियों में इंडिया आनेवाले थे. मुझे लगा मिलकर बात करेंगे, तो शायद मैं तुम्हें बेहतर ढंग से समझा सकूं. तुम आए, हम मिले भी, पर मुझे कहीं न कहीं यह एहसास हो रहा था कि तुम्हारा पुरुष अहम् तुम्हें सहज नहीं रहने दे रहा था मेरे साथ. तुम्हें लगता था कि तुम जो बोलो वही हो, तुम जब बोलो, तभी हो, क्यों? “क्योंकि मैं बोल रहा हूं, क्या इतना काफ़ी नहीं है?” यही जवाब होता तुम्हारा. जब मन करता मेरा फोन उठाकर चेक करना, सोशल मीडिया पर किस-किस से पिक्चर लाइक की है, उसका नाम देखकर उसके बारे में सवाल करना... उसके बाद सोशल मीडिया से दूर रहने की सलाह देना... और मैं भी हर बात मानती चली गई, क्योंकि मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती थी. पर अक्सर मन में सोचती थी कि मेरा राज ऐसी सोच रखता है. इस मॉडर्न ज़माने में, ऑस्ट्रेलिया में रह रहा है, फिर भी ऐसी सोच? उस दिन जब तुम वापस लौट रहे थे, मन बहुत उदास था. तुमसे लिपटकर रो रही थी मैं और तुमने मुझे सहलाते हुए कहा, “प्रिया, रोने की क्या बात है, तुम्हारे तो यहां भी बहुत सारे दोस्त हैं. उनस मन बहला लेना.” “ये क्या बकवास है...” “अरे, ठीक ही ता है. फ्रेंड्स तो होते ही इसलिए हैं. इतना सीरियस होने की क्या बात है.” ख़ैर, तुम चले गए. तुम्हारी स्टडीज़ कंप्लीट होने को थी और अब तुम हमेशा के लिए इंडिया आनेवाले थे. हम शादी करनेवाले थे. तुम आए, हमारी सगाई भी हो गई. एंगेजमेंट में तुम्हारे दोस्त मेरे साथ हंसी-मज़ाक कर रहे थे. पार्टी ख़त्म होने पर मैंने तुमसे गौतम के बारे में पूछा भी था कि काफ़ी हंसमुख लड़का है. और तुमने कहा, “हां, पसंद है, तो नंबर दे देता हूं. बुला लेना रात को. चाहो तो बेड भी शेयर कर लेना.” मैं पत्थर बनी वहीं खड़ी रही. सारी रात सोचती रही... कहां, क्या ग़लत हो रहा है मुझसे? क्या मैं यह सब डिज़र्व करती हूं? “अरे, प्रिया सुबह-सुबह, क्या बात है?” “हां राज, तुमसे ज़रूरी बात करनी थी. तुम्हें कुछ देना चाहती हूं.” “क्या लाई हो मेरे लिए स्वीटहार्ट?” “ये एंगेजमेंट रिंग, इसे अपने पास ही रखो और जब तुम्हें कोई ऐसी लड़की मिल जाए, तो तुम्हारी घटिया सोच के साथ निभा सके, तब उसे यह पहना देना.” और मैं चली आई वहां से. मेरे परिवारवाले भी मेरे इस फैसले से सहमत थे. तुमने भी उसके बाद कोई फोन या माफ़ी नहीं मांगी, क्योंकि मैं जानती थी, तुम्हारा ईगा इतना बड़ा है कि कोई लड़की तुम्हें ठुकरा दे, यह तुमसे बर्दाश्त नहीं होगा. मेरा पहला प्यार भले ही अधूरा था, उसमें दर्द था, लेकिन मैंने सही समय पर उसे अधूरा छोड़ने का जो फैसला लिया, उससे मैं ख़ुश थी. ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं, इंसान को परखने से कहीं ज़्यादा उसे समझने में व़क्त लग जाता है. ऊपरवाले ने मेरे लिए भी कोई न कोई सही और सच्चा इंसान ज़रूर चुन रखा होगा. जब वो मुझे मिल जाएगा, तो दोबारा प्यार करने से परहेज़ नहीं करूंगी, क्योंकि मुझे प्यार से शिकायत नहीं, प्यार की भावना पर पूरा भरोसा है मुझे, क्योंकि प्यार ग़लत नहीं होता, ग़लत स़िर्फ इंसान होता है.- गीता शर्मा
यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: तुम बिन… अधूरी मैं! (Pahla Affair: Tum Bin… Adhuri Main)
Link Copied