Link Copied
ऑस्टियोआर्थराइटिस के कारण, लक्षण व उपचार (Osteoarthritis: Causes, Symptoms, and Treatments)
जोड़ों में दर्द (Joints Pain) व सूजन एक आम समस्या (Problem) है. इसके कई कारण हो सकते हैं. उनमें से ही एक है ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis), जिसकी वजह से चलना-फिरना भी दूभर हो जाता है. इस बीमारी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए हमने बात की एसआरवी ममता हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. निखिल पाटिल से.
ऑस्टियोआर्थराइटिस जोड़ों से संबंधित एक प्रमुख बीमारी है. शरीर में जहां दो हड्डियां आपस में जुड़ती हैं, उसे ज्वॉइंट यानी जोड़ कहते हैं. हड्डियों के अंतिम सिरे को सुरक्षित रखने के लिए एक प्रोटेक्टिव टिशू होता है, जिसे कार्टिलेज कहते हैं. जब किसी कारण से कार्टिलेज टूट जाता है या उसमें दरार पड़ जाती है तो इसके कारण हड्डियां आपस में रगड़ खाती हैं, नतीजतन दर्द, अकड़न या अन्य तरह की समस्याएं होती हैं. इस स्थिति को ऑस्टियोआर्थराइटिस कहते हैं. वैसे तो यह समस्या किसी को भी हो सकती है, लेकिन आमतौर पर उम्रदराज़ लोगों को ज़्यादा होती है. ऑस्टियोआर्थराइटिस को डिजेनेरेटिव आर्थराइटिस या वियर एंड टियर आर्थराइटिस भी कहते हैं.
ऑस्टियोआर्थराइटिस के कारण
यह बीमारी जोड़ों के क्षतिग्रस्त होने के कारण होती है. यह समस्या अचानक नहीं होती, बल्कि समय के साथ जोड़ों की रक्षा करने वाला कार्टिलेज धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होते जाता है. यही कारण है कि यह बीमारी उम्रदराज़ लोगों को ज़्यादा होती है. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, जोड़ों के क्षतिग्रस्त होने का ख़तरा बढ़ता जाता है.
अन्य कारण
चोट के कारण कार्टिलेज में दरार, जोड़ों का डिस्लोकेट होना, लिंगामेंट में चोट, मोटापा, खराब पोश्चर इत्यादि ऑस्टियोआर्थराइटिस होने के अन्य प्रमुख कारण हैं. इसके अलावा यदि माता-पिता या घर के किसी क़रीबी रिश्तेदार को यह बीमारी हो तो इसके होने की आशंका बढ़ जाती है.
ऑस्टियोआर्थराइटिस और कार्टिलेज
कार्टिलेज रबर की तरह होता है और हड्डी से ज़्यादा लचीला होता है. इसका प्रमुख कार्य दो हड्डियों को जोड़नेवाले अंतिम सिरों को सुरक्षित रखना होता है, ताकि हड्डियां आपस में रगड़ न खाएं. जब कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो हड्डियां आपस में रगड़ खाती हैं, जिसके कारण दर्द व सूजन जैसी समस्याएं होती हैं. सबसे प्रमुख बात यह है कि क्षतिग्रस्त कार्टिलेज अपनेआप रिपेयर नहीं हो सकता, क्योंकि कार्टिलेज में रक्त कोशिकाएं नहीं होती हैं. जब कार्टिलेज पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो हड्डियों को सुरक्षा प्रदान करनेवाली कुशनिंग चली जाती है, जिसके कारण हड्डियां आपस में रगड़ खाती हैं. फलस्वरूप जोड़ों में दर्द व अन्य तरह की समस्याएं होती हैं. ऑस्टियोआर्थराइटिस शरीर के किसी भी जोड़ में हो सकता है, लेकिन यह सामान्यतौर पर शरीर के निम्न जोड़ों को प्रभावित करता है.
1. हाथ
2. उंगलियां
3. घुटने
4. कुल्हे
5. रीढ़ की हड्डी, ख़ासतौर पर गर्दन और पीठ का निचला हिस्सा
ऑस्टियोआर्थराइटिस के प्रमुख लक्षण
1. दर्दप प्रभावित जोड़ को दबाने पर दर्द महसूस होना
2. अकड़नप सूजन
क्रॉनिक ऑस्टियोआर्थराइटिस
ऑस्टियोआर्थराइटिस एक प्रोग्रेसिव बीमारी है, यानी यह समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ती है. इसके 4 स्टेज होते हैं. स्टेज 4 गंभीर ऑस्टियोआर्थराइटिस होता है. ज़रूरी नहीं है कि हर मरीज़ इस स्टेज तक पहुंचे ही. अक्सर सही समय पर इलाज व देखभाल से स्थिति सुधर जाती है. स्टेज 4 ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित व्यक्ति का एक या एक से अधिक जोड़ों का कार्टिलेज पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाता है. ऐसे में हड्डियों में रगड़ के कारण निम्न समस्याएं होती हैं.
1. जोड़ों में अकड़न, सूजन बढ़ जाती है. जोड़ों में मौजूद सिनोवियल फ्लूइड का स्तर बढ़ जाता है. आपको बता दें कि इस फ्लूइड का प्रमुख कार्य शरीर में मूवमेंट के दौरान हड्डियों को रगड़ खाने से बचाना है. लेकिन इसकी मात्रा अधिक हो जाने पर जोड़ों में सूजन आ जाती है. इसके अलावा टूटे हुए कार्टिलेज के कण फ्लूइड में फ्लोट होते हैं, जिसके कारण दर्द व सूजन बढ़ सकती है.
2. ऑस्टियोआर्थराइटिस के एडवांस स्टेज में सामान्य गतिविधियां करने में भी तकलीफ़ होती है. दिन बीतने के साथ-साथ दर्द बढ़ता जाता है. प चलने-फिरने में परेशानी हो सकती है. जोड़ों में अकड़न आ जाने के कारण मूवमेंट में परेशानी होती है, जिसके कारण रोज़ाना के काम करने में भी दिक्कत होती है.
3. ऑस्टियोआर्थराइटिस की समस्या गंभीर होने पर जोड़ों में असंतुलन हो जाता है. उदाहरण के लिए यदि मरीज़ के घुटनों में ऑस्टियोआर्थराइटिस हो तो अचानक उसका घुटना लॉक हो सकता है, जिसके कारण वो गिर सकता है और उसे चोट लग सकती है. ऑस्टियोआर्थराइटिस के कारण क्षतिग्रस्त हुए ज्वॉइंट को फिर से ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन ट्रीटमेंट की मदद से इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है.
ऑस्टियोआर्थराइटिस बनाम रूमेटॉइड आर्थराइटिस
हालांकि ऑस्टियोआर्थराइटिस और रूमेटॉइड आर्थराइटिस के लक्षण एक जैसे होते हैं, लेकिन ये दोनों बिल्कुल अलग बीमारियां हैं. ऑस्टियोआर्थराइटिस समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ता है, जबकि रूमेटॉइड आर्थराइटिस ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम ही टिशूज़ पर अटैक करने लगता है और जोड़ों के आस-पास की लाइनिंग को क्षतिग्रस्त कर देता है, जिसके कारण शरीर के जोड़ों में सूजन, अकड़न व दर्द की समस्या होती है. यह अचानक और किसी भी उम्र में हो सकती है.
ऑस्टियोआर्थराइटिस की जांच
ऑस्टियोआर्थराइटिस धीरे-धीरे विकसित होनेवाली बीमारी है, इसलिए जब जोड़ों में दर्द व अन्य तरह के संकेत न दिखें, तब तक इसका पता लगाना मुश्किल होता है. किसी तरह का एक्सिडेंट या चोट लगने की स्थिति में एक्स-रे करवाने पर ऑस्टियोआर्थराइटिस का पता लगाया जा सकता है. एक्स-रे के अलावा एमआरआई स्कैन की मदद से भी इसकी जांच की जाती है. इसके अलावा ब्लडटेस्ट, ज्वॉइंट फ्लूइड एनालिसिस की मदद से भी इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है.
ऑस्टियोआर्थराइटिस का इलाज
ऑस्टियोआर्थराइटिस को जड़ से ख़त्म करना मुश्किल है, लेकिन इलाज के माध्यम से इसके लक्षणों को कम करने की कोशिश की जाती है. हालांकि इलाज ज्वॉइंट के लोकेशन पर निर्भर करता है. ट्रीटमेंट के लिए ओटीसी मेडिसिन, जीवनशैली में बदलाव और घरेलू उपायों का इस्तेमाल किया जाता है. इनकी मदद से दर्द को कम करने की कोशिश की जाती है. ऑस्टियोआर्थराइटिस में आराम के लिए मरीज़ को निम्न उपाय करने चाहिए.
ये भी पढ़ेंः शरीर को डिटॉक्स करने के 20 आसान उपाय (20 Easy Tricks To Detox Your Body)
व्यायामः शारीरिक गतिविधि जोड़ों के आस-पास की मांसपेशियों को मज़बूती प्रदान करती है, जिससे अकड़न में आराम मिलता है. इसके लिए कम से कम 20 से 30 मिनट तक शारीरिक रूप से एक्टिव रहने की कोशिश करनी चाहिए. हल्के-फुल्के एक्सरसाइज़, जैसे- वॉकिंग, स्ट्रेचिंग या योग करना सही रहेगा. इससे ज्वॉइंट्स फ्लेक्सिबल होंगे और दर्द में आराम मिलता है, लेकिन कोई भी एक्सरसाइज़ करने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें.
वज़न कम करनाः वज़न अधिक होने पर शरीर के जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिसके कारण दर्द होता है. वज़न कम करने से जोड़ों पर प्रेशर कम होता है, जिससे दर्द में आराम मिलता है. वज़न नियंत्रित रखकर दूसरी तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को भी कम किया जा सकता है.
समुचित नींदः मांसपेशियों को आराम देने से सूजन और दर्द कम होता है, इसलिए इस समस्या के होने पर भरपूर नींद लेना बहुत ज़रूरी है. इससे दर्द में आराम मिलता है. हीट एंड कोल्ड थेरेपीः जोड़ों में दर्द व सूजन कम करने के लिए मरीज़ हीट एंड कोल्ड थेरेपी का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए रोज़ाना 20 मिनट तक जोड़ों पर ठंडा-गर्म सेंक दिया जाता है. इन उपायों से मरीज़ को काफ़ी आराम मिल सकता है.
ये भी पढ़ेंः वज़न घटाने पर होनेवाले शारीरिक व मानसिक बदलाव (Changes In Body Because Of Weight Loss)
ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए दवाएं
ऑस्टियोआर्थराइटिस में दर्द से आराम दिलाने के लिए डॉक्टर कई तरह की दवाएं देते हैं.
ओरल एनाल्जेसिक्सः दर्द कम करने के लिए टाइलेनॉल व अन्य तरह की दर्द निवारक दवाइयां दी जाती हैं.
ट्रॉपिकल एनाल्जेसिक्सः ये क्रीम, जेल और सैशे इत्यादि में मिलती हैं. ये क्रीम्स दर्द वाले हिस्से को सुन्न कर देती हैं, जिससे दर्द का एहसास नहीं होता. माइल्ड आर्थराइटिस में ये फ़ायदेमंद होती हैं.
नॉन-स्टेरॉइडल एंटीइंफ्लेमेटरी ड्रग्सः सूजन और दर्द कम करने के लिए डॉक्टर्स आइब्रूफेन या कोई अन्य नॉन-स्टेरॉइडल एंटीइंफ्लेमेटरी ड्रग्स देते हैं.
कॉर्टिकोस्टेरॉइडः यह क्रीम के साथ-साथ इंजेक्शन के रूप में भी उपलब्ध है. डॉक्टर्स इंजेक्शन को प्रभावित जोड़ पर लगाते हैं. इसके अलाावा वैकल्पिक ट्रीटमेंट के लिए फिश ऑयल, एक्युपंचर, फिज़ियोथेरेपी व मसाज थेरेपी की भी सहायता ली जाती है. लेकिन किसी भी तरह का हर्ब्स या सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना ज़रूरी होता है, ताकि किसी तरह का साइड इफेक्ट न हो.
खान-पान
वैसे तो हर किसी को सेहतमंद भोजन करना चाहिए, लेकिन ऑस्टियोआर्थराइटिस होने पर डायट पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव डालने से बचने के लिए वज़न नियंत्रण में रखना ज़रूरी होता है. बहुत से शोधों से इस बात की पुष्टि हुई है कि अगर घुटनों का ऑस्टियोआर्थराइटिस हो तो फ्लैवोनॉइड्स युक्त फल व सब्ज़ियों का सेवन करने से काफ़ी फ़ायदा होता है. इसके अलावा विटामिन सी, विटामिन डी, बीटा कैरोटिन व ओमेगा3 फैटी एसिड्स युक्त खाद्य पदार्थो का सेवन करने से भी फ़ायदा होता है.
ऑस्टियोआर्थराइटिस से बचने के उपाय
कुछ रिस्क फैक्टर्स, जैसे-उम्र, आनुवांशिक कारण इत्यादि से बचना तो मुश्किल है, लेकिन कुछ चीज़ों पर कंट्रोल करके आप ऑस्टियोआर्थराइटिस के ख़तरे को कम कर सकते हैं.
अपने शरीर का ध्यान रखेंः अगर आप एथेलेटिक हैं या फिटनेस फ्रीक हैं तो अपने शरीर का ख़ास ख़्याल रखें. घुटनों को सुरक्षित रखने के लिए दौड़ने या अन्य तरह की शारीरिक गतिविधि करते समय एथेलेटिक शूज़ पहनें.
वज़न नियंत्रित रखेंः वज़न नियंत्रित रखने की कोशिश करें. वज़न बढ़ने पर कई तरह की समस्याएं होती हैं.
पौष्टिक डायटः खाने में ख़ूब सारी सब्ज़ियां व फल शामिल करें.
आराम करेंः शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आराम करना और पर्याप्त नींद लेना भी बहुत ज़रूरी है. डायबिटीज़ से पीड़ित व्यक्ति को ब्लडशुगर नियंत्रित रखने की कोशिश करनी चाहिए.