“कूटनीति एक ऐसा मैदान है, जहां शब्दों की ताक़त हथियारों से ज़्यादा होती है...” वाक़ई कितना सच कहा है अभिनेता जॉन अब्राहम ने. उनकी फिल्म ‘द डिप्लोमैट’ में विदेशी राजनायक के रूप में उन्होंने अपने क़िरदार के साथ न केवल न्याय किया है, बल्कि इस बात को भी साबित किया है कि जब-जब भारत देश के नागरिकों को विदेशी भूमि पर संघर्षों का सामना करना पड़ा है, तब-तब देश ने अपनी कूटनीति, समझदारी व सूझ-बूझ से व्यक्ति विशेष को संकट से उबारा है.

सच्ची घटना पर आधारित इस फिल्म में बड़ी साफ़गोई से दिखाया गया है कि कैसे उज़्मा अहमद (सादिया खतीब) प्रेम का झांसा देकर फंसाए गए पाकिस्तानी गुरमीत संधू की जाल में फंस जाती है. अपने बेटे के इलाज के सिलसिले में उसके साथ पाकिस्तान आ जाती है. तब ख़ुद के साथ हुए धोखे का पता चलने के साथ वो मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी होती है. उज़्मा का उस चुंगल से निकलने के लिए भारतीय दूतावास में गुहार लगाना इमोशनल कर देता है.
अधिकारी जेपी सिंह (जॉन अब्राहम) न केवल उसे आश्वासन देते हैं, बल्कि उस समय की तत्कालिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (रेवती) के साथ मिलकर बाकायदा स्वेदश लाने में भी कामयाब होते हैं.
चूंकि इस कहानी को हर कोई जानता है, तब ऐसे में निर्देशक शिवम नायर के लिए चुनौती यह थी कि वे इसे बड़े पर्दे पर किस तरह प्रस्तुत करते हैं. लेकिन यहां पर उन्होंने अपने निर्देशन का कमाल दिखाया है. पूरी फिल्म बांधे रखती है.

दो घंटे सत्रह मिनट की फिल्म कहीं भी बोर नहीं करती. सभी कलाकारों ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है. फिर चाहे शारिब हाशमी और कुमुद मिश्रा जैसे कलाकारों की छोटी सी भूमिका ही क्यों न हो. जॉन फिल्म के नायक के साथ-साथ निर्माता भी हैं. उन्होंने इसके पहले विकी डोनर, मद्रास कैफे जैसी ख़ूबसूरत फिल्में बनाई है, यह फिल्म भी उनकी अच्छी कोशिश रही है.

फिल्म के अंत में वास्तविक घटनाओं जैसे उज़्मा अहमद, जेपी सिंह और सुषमा स्वराज का दिखाया जाना सुखद एहसास से भरने के साथ फिल्म को और भी मज़बूती देता है. ‘द डिप्लोमैट’ की कथा-पटकथा और संवाद रितेश शाह ने लिखा है. कुछ डायलॉग चुटीले हैं, तो कुछ वही पुराने ढर्रे के. डीनो पोपव का छायाकांन प्रभावित करता है. कुणाल वाल्वे का संपादन सटीक है.
अन्य कलाकारों में रामगोपाल बजाज, प्राप्ति शुक्ला व अश्वथ भट्ट जंचे हैं. गीत-संगीत ठीक-ठाक है. जॉन, भूषण कुमार व समीर दीक्षित निर्मित ‘द डिप्लोमैट’ एक साफ़-सुथरी प्रभावशाली फिल्म है. यदि आप जॉन के फैन हैं और सच्ची घटनाओं से जुड़ी बढ़िया फिल्म देखने के शौकीन है, तो यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी.
- ऊषा गुप्ता

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