रेटिंग: ३ ***
मां-बेटे का रिश्ता प्यार से अधिक दर्द और बेबसी पर चलने लगे, तब ज़िंदगी से भी शिकायतें कुछ कम नहीं रहती. आकाश प्रताप सिंह ने किशोर युवा बेटे के रूप में अपनी मां पर हो रहे ज़ुल्म और प्रताड़ना को देखा ही नहीं, बल्कि वो तिल-तिल तड़पा भी है. वो पिता द्वारा मां पर हो रहे अत्याचार को सहने के साथ कुछ न कर पाने को लेकर भी मजबूर है, क्योंकि वो डरता है, कमज़ोर है, पर अपनी मां को प्यार और सम्मान भी बहुत देता है. घरेलू हिंसा को लेकर उम्दा कहानी पर बनी प्रेरणादायी फिल्म है ‘मैं लड़ेगा’. वाक़ई में आख़िर तक आकाश लड़ते हैं और मक़सद छूट जाने के बावजूद जीतते भी हैं.
आकाश प्रताप सिंह ने मैं लड़ेगा में लाजवाब अभिनय करने के साथ इसकी कहानी, पटकथा और संवाद भी लिखे हैं, जो सराहनीय हैं. हर कलाकार ने अपने अभिनय और सादगी से दिल को छुआ है, फिर चाहे वो मां बनी ज्योति गौबा हो, बाक्सर कोच बने गंधर्व दीवान, प्रेमिका बनी वल्लरी विराज, क्लासमैट व दोस्त बने सौरभ पचौरी, दिव्य खरनारे, अहान निर्वाण, राहिल सिद्दीक ही क्यों न हो. उस पर पिता बने अश्वथ भट्ट ने भी कमाल किया है. इस फिल्म से जुड़ा हर कलाकार ख़ास रहा और हर किसी ने अपना उल्लेखनीय योगदान दिया मैं लड़ेगा को ख़ास बनाने में.
एक बेटा, जो अपनी मां को बेइंतहा प्यार करता है, पर अपने ग़ुस्सैल अत्याचारी पिता से उतनी ही नफ़रत. वो चाहता है कि पिता से मां पर हुए एक-एक ज़ुल्म का प्रतिशोध लें, पर पिता की आंतकित करती नज़रें उसे घबराहट के साथ डराती भी हैं. लेकिन पिता के हिंसा से बचने के लिए छोटे भाई को नानाजी का फोन नंबर याद करवाना, मार से छिपने के लिए घर के किन-किन जगहों पर छिपा जा सकता है बताना. बड़े भाई का फर्ज़ निभाते हुए आकाश की पुरज़ोर कोशिश रहती है छोटे भाई को प्रोटेक्ट करने की.
होनहार आकाश घर के तनावपूर्ण माहौल में पढ़ाई से पिछड़ न जाए, इस करके मां और नानाजी निर्णय लेते हैं कि उसे आर्मी हॉस्टल में भेज दें, ताकि वो शांति से अपनी बारहवीं की बोर्ड की पढ़ाई कर सके. किंतु आकाश मां को शराबी-दुराचारी पिता के साथ अकेले छोड़ने को तैयार नहीं. तब यह ़फैसला होता है कि मां, छोटे भाई के साथ नाना-नानी के घर पर रहेगी. इसी शर्त पर आकाश हॉस्टल जाने के लिए राजी होता है.
यहां पर एक मां-बेटे के जुड़ाव, प्रेम-ममता, सुरक्षात्मक लगाव का मार्मिक और भावनाओं से ओतप्रोत फिल्मांकन किया गया है. इसके लिए निर्देशक गौरव राणा बधाई के पात्र हैं. उन्होंने दो घंटे अठाइस मिनट की फिल्म को इस ख़ूबसूरती निर्देशित किया है कि कभी यह हमें हंसाती है, तो कभी ग़मगीन कर देती है, तो कभी जोश-जुनून से भी भर देती है.
आकाश अपनी मां की मदद करना चाहता है, अपने और भाई के पढ़ाई का ख़र्चा उठाना चाहता है, इस कारण ही जब बॉक्सिंग में गोल्ड मेडल जीतने पर एक लाख रुपए पुरस्कार स्वरूप मिलने की घोषणा होती है, तो आकाश ख़ुद को रोक नहीं पाता और बॉक्सिंग के रिंग में कूद ही पड़ता है. वह हर हाल में राष्ट्रीय स्तर पर हो रही इस प्रतियोगिता को जीतना चाहता है. लेकिन बॉक्सिंग के दांव-पेंच सीखने, बॉडी बनाने और मानसिक रूप से मज़बूत बनने का सफ़र काफ़ी जद्दोज़ेहद भरा होता है, पर आकाश हार नहीं मानता और अंत तक लड़ता है. आकाश के बॉक्सर बनने से लेकर प्यार भरे लम्हों तक उसके दोस्त और गर्लफ्रेंड उसका बख़ूबी साथ निभाते हैं.
गीत-संगीत कर्णप्रिय है. विशेषकर मैं लड़ेगा… मंज़िल तेरे आगे खड़ी… गाने और सोनू निगम की आवाज़ दिलों को गुनगुनाने पर मजबूर कर देते हैं. सारेगामा म्यूज़िक तले तुषार जोशी का गाया तुझसे प्यार है... में अन्वेशा का गीत और अक्षय मेनन का संगीत अच्छा बन पड़ा है. नीरज विश्वकर्मा व विल्फ्रेड सोज का बैकग्राउंड म्यूज़िक बढ़िया है. लकी यादव ने देहरादून, नैनीताल, मुंबई के दृश्यों में सिनमैटोग्राफी का ख़ूबसूरत कमाल दिखाया है. निर्माता के तौर अक्षय भगवानजी व पिनाकिन भक्त के हम शुक्रगुज़ार हैं, जो उन्होंने इतने संवेदनशील विषय पर सुंदर फिल्म बनाई. कथाकार फिल्म्स की उत्कृष्ट प्रस्तुति है मैं लड़ेगा.
स्कूल के छात्रों की नोक-झोंक, बुलिंग, शाइनिंग स्टूडेंट का आकाश से मदद मांगना, दोस्तों का बॉक्सिंग के लिए आकाश का वज़न बढ़ाने के लिए अपने खाने-पीने, ख़ासकर अंडे-दूध के लिए त्याग करना, क्लासमेट गौरी का आकाश के लिए टिफिन लाना, मां को स्कूल फीस के लिए लोन लेने के लिए कहना, सहपाठियों की आपस में हाथापाई, शराबी-ज़ुल्मी पिता से इस कदर नाराज़गी कि हॉस्टल में मिलने आना भी गवारा नहीं… ऐसे तमाम दृश्य फिल्म की जान है. कुछ सीन्स तो बेहद अपने से लगते हैं. मुक्केबाज़ी के सीन्स तो फिल्म को और भी रोचक बना देते हैं.
सच्ची घटनाओं पर आधारित यह फिल्म हमें बहुत कुछ सोचने पर भी मजबूर कर देती है. आज भी दुनियाभर में हो रहा घरेलू हिंसा थमा नहीं है, ख़ासकर पति द्वारा पत्नी के साथ मारपीट तो आम सी बात आज भी है. ऐसे में समाज को संदेश देती ’मैंं लड़ेगा’ वाक़ई में हमें प्रेरित करती है कि घरेलू हिंसा की लड़ाई अकेले आकाश की नहीं, हम सभी की होनी चाहिए. दरअसल, कहीं न कहीं हम सभी के अपने, परिवार, रिश्तेदार, दोस्तों में इस तरह के अत्याचार हो ही रहे हैं, ऐसे में चुप रहना सही नहीं, हमें भी कहना पड़ेगा लड़ेंगे हम भी… शेष फिर…
- ऊषा गुप्ता
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