पति-पत्नी का ख़ूबसूरत रिश्ता. जुड़ जाता है ज़िंदगीभर का साथ और हर सुख-दुख में साथ निभाने के वादे, लेकिन हर संभव व मुमकिन कोशिश के बावजूद इनके बीच छोटी-छोटी तक़रारें और तू-तू-मैं-मैं हो ही जाती है. तो चलिए, जानते हैं, पति-पत्नी की खट्टी-मीठी शिकायतें.
पत्नियों की आम शिकायतें
- मूड तो सुबह इनके आलस्य से ही उखड़ जाता है. चाय गरम कीजिए, उठने में इतना आलस्य कि ठंडी हो जाती है. चाय के साथ पेपर भी चाहिए. फिर चाय ठंडी हो जाती है और फिर एक कप गरम प्याली के लिए आप अपने सब काम छोड़कर चाय बनाते रहिए. सुनते रहिए, जल्दी करो लेट हो रहा हूं.
- ऑफ़िस जानेवाले पतियों को मोजे, घड़ी, रुमाल जैसी चीज़ों के लिए भी पत्नी की मदद चाहिए.
- बहुत बुरा लगता है, जब शाम को आकर पूछते हैं, क्या करती रही दिनभर? मैं तो सुबह ही निकल गया था. पलंग पर पड़ा गीला तौलिया सुखाना, आलमारी लगाना, खाना बनाना, कपड़े धोना, घर के अनेक काम क्या कोई और कर जाता है.
- ऑफ़िस में काम ये करें. जी हुज़ूरी हम बजाएं. ज़रा मेरी डायरी से एक नंबर देना, ज़रा अमुक फाइल से फलां एड्रेस देना और अगर फ़ोन उठाने में देर हो गई, तो कहां गई थी? किसके साथ बिज़ी थी? जैसे हज़ार सवाल.
- अपने माता-पिता के आदर्श बेटे ये कहलाते हैं. पर शादी के बाद इनका फ़र्ज़ इतना रह जाता है कि पत्नी से पूछते रहें- अम्मा-बाबूजी ने खाना खा लिया? उन्हें दवा दे दी, डॉक्टर से बात कर ली, उनका चश्मा ठीक करवा दिया आदि-आदि.
- घर आते ही पति महोदय टीवी का रिमोट हाथ में ले लेते हैं और पत्नी को भी बड़े प्यार से पास बैठा लेते हैं. अब ये चैनल बदलते रहेंगे और आप इनका चेहरा देखती रहिए. जिस मिनट आपने कुछ देखना शुरू किया कि प्रोग्राम को बकवास कहकर चैनल बदल दिया जाएगा.
- ये बीवी में अपनी मां की परछाईं क्यों ढूंढ़ते हैं. खाना आप बनाइए, लेकिन तारीफ़ में मां पुराण व मां के भोजन की गाथा. यहीं से शुरू होती है हमारी व्यथा कथा. कोई इन्हें समझाए, बच्चे नहीं हो, जो बात-बात पर मां... मां... पुकारते रहते हो.
- बड़ी हंसी आती है, जब ख़ुद को सुपरमैन व महान समझते हैं और पत्नी को महामूर्ख.
- इनके द्वारा किया गया हर पर्सनल ख़र्च ज़रूरी भी है और सही भी और पत्नी का हर पर्सनल ख़र्च फ़िज़ूलख़र्च. गाड़ी का सीट कवर ज़रूरी है, लेकिन पत्नी का मैचिंग सैंडल व्यर्थ का ख़र्च. इनका जवाब होता है कि कौन देखता है पैरों की सैंडल? तो क्या गाड़ी का कवर आता-जाता व्यक्ति झांक-झांककर देखता है.
- स्टीयरिंग व्हील पर बैठकर ख़ुद को किसी महाराजा से कम नहीं समझते (जबकि ड्राइवर सीट पर बैठे हैं). जगह ढूंढ़ने में चार चक्कर भी लग जाएं, तो कोई बात नहीं, लेकिन पत्नी के कारण एक भी चक्कर ज़्यादा लग गया, तो तुरंत पेट्रोल के बढ़ते दाम याद दिलाने लगते हैं.
- अपनी स्मार्टनेस को लेकर ग़लतफ़हमी का शिकार रहते हैं. सोचते हैं कि पड़ोसी की बीवी इन पर फ़िदा है. भले ही तोंद बड़ी हो और सिर के बाल नदारद हों.
- बाप रे बाप! यदि किसी टूटी चीज़ को रिपेयर करने के मूड में आ जाएं, तो बस आप बार-बार खाना गरम कीजिए और इंतज़ार कीजिए. रिपेयर हो गई, तो कॉलर ऊंचा, वरना हर नाक़ामी की जड़ बीवी तो है ही.
- शादी से पहले सभ्य, सुसंस्कृत या शेयरिंग-केयरिंग वाले होते हैं, लेकिन शादी के बाद तो बस, पति के अधिकार ही याद रह जाते हैं. मैं ज़रा ज़्यादा ही बड़ा हो जाता है.
- बर्थडे या ख़ास दिन भूल जाना इनकी आदत में शुमार है. यदि पत्नी ने नाराज़गी ज़ाहिर कर दी, तो मनाना तो दूर, काम का ऐसा बहाना बनाते हैं कि बेचारी पत्नी अपराधबोध से घिर जाती है.
- बीवी का मायका तभी तक अच्छा लगता है, जब तक साली हंसी-मज़ाक करे, ख़ातिर होती रहे. यदि पत्नी मायके में अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों या भाई-बहनों के बीच ज़्यादा एंजॉय करने लगे, तो मूड ऑफ होते देर नहीं लगती.
- बीवी से उम्मीद करते हैं कि वो अपना ईमेल आईडी, पासवर्ड, बैंक स्टेटमेंट इन्हें बताए, लेकिन इनके मोबाइल के मैसेज पत्नी पढ़ ले, तो रास नहीं आता.
- पत्नी से आशा रखते हैं कि वो शादी से पहले का अपना हर सीक्रेट शेयर करे, लेकिन अपने वर्तमान सीक्रेट्स की भी हवा नहीं लगने देते हैं.
- तर्क में यदि पत्नी सही नज़र आती है, तो भी हार मानना गवारा नहीं. सुनने को मिलता है, चार पैसे क्या कमाने लगीं, बात-बात पर बहस करने लगी हो.
- अपनी गर्लफ्रेंड्स के क़िस्से बड़ी शान से सुनाते हैं, लेकिन बीवी पड़ोसी या दोस्त की भी बात करे, तो शक की निगाह से देखते हैं.
- यदि बच्चे कुछ अच्छा करते हैं, तो बड़ी शान से कहते हैं कि ङ्गमेरा बेटा/बेटी हैफ और यदि कुछ ग़लत कर बैठें तो तुम्हारी ट्रेनिंग है.
सुनते हैं, पतियोंकी शिकायतें
- बहाना बनाना और बेवकूफ़ बनाना कोई इनसे सीखे. हमारे रिश्तेदारों के आने की ख़बर से कब और कहां दर्द हो जाएगा अथवा कौन-सा बाहरी काम निकल आएगा, ब्रह्मा भी नहीं समझ सकते हैं.
- इनकी नैगिंग और नकारात्मक सोच या बात काटने की आदत अच्छे-भले पति को भी नकारा साबित कर सकती है.
- अपनी ख़ूबसूरती और मोटे-पतले की चिंता में दिनभर व्यस्त रहेंगी और पति को भी बोर करेंगी. घर में हमेशा डायटिंग चलती है, जबकि किसी पार्टी में मज़े से चाट-पकौड़ियां उड़ाई जाती हैं.
- इंतज़ार कराना इनकी ख़ास ख़ूबी है. पार्टी में जाने के लिए पति तैयार बैठा इंतज़ार करता है, मैडम तय ही नहीं कर पाती हैं कि किस ड्रेस में ज़्यादा ख़ूबसूरत और पतली दिखेंगी. फ़िलहाल सामने आकर पूछें कि कैसी लग रही हूं? तो ङ्गबहुत सुंदरफ ही कहना पड़ता है, वरना इंतज़ार की घड़ियां और बढ़ जाएंगी.
- दिनभर दुनियाभर की चकल्लस होती रहेगी, लेकिन पति के पास बैठते ही बात घूम-फिरकर पैसों पर क्यों आ जाती है, समझना मुश्किल है.
- दूसरों की देखा-देखी नकल करना, इनका प्रिय शौक़ होता है. दूसरों का फ़र्नीचर, ज्वेलरी व कपड़े सब पसंद आते हैं. यहां तक कि सास-ननद और पति भी दूसरे के ज़्यादा अच्छे लगते हैं.
- ख़ुद को सर्वगुणसंपन्न समझने की ग़लतफ़हमी सात फेरों के साथ ही पाल लेती हैं, तभी तो पति को सुधारने का बीड़ा उठा लेती हैं.
- पड़ोसी या अपनी कलीग से पति की तुलना करना इनकी दिनचर्या में शामिल है. कुछ कहो, तो बाल की खाल निकालकर रख देती हैं.
- इनका मूड बदलते देर नहीं लगती है. कल तक मिसेज़ चतुर्वेदी बहुत अच्छी पड़ोसन थी, लेकिन यदि पति ने भी उनकी प्रशंसा में दो शब्द जोड़ दिए, तो पड़ोसन से मेल-मिलाप औपचारिक हो जाता है. साथ ही पति को भी सख़्त हिदायत कि उनकी बात न करें.
- महिलाओं की छठी इंद्रिय की खोज जिस किसी ने भी की, उसे दाद देनी पड़ेगी. यदि पति से कोई भूल या ग़लती हो जाए और वो पत्नी को बताए, तो रिएक्शन होगा, मुझे पहले ही पता था कि तुम कुछ ऐसा ही करोगे.
- इनका मायका पुराण या पापा चाहते हैं, भैया कहते हैं सुन-सुनकर कान पक जाते हैं. यह ज़िंदगी का सबसे बोरिंग अध्याय है.
- ऑफ़िस जाते समय बड़े प्यार से पूछेंगी, डिनर में क्या खाओगे? यदि आपने उत्साहपूर्वक पिज़्ज़ा या आलू परांठे की इच्छा ज़ाहिर कर दी, तो आपका वज़न और उनकी कैलोरीज़ गिना-गिनाकर पेट भर देंगी. बनेगा वही, जो इनकी सुविधा के अनुसार होगा. तो फिर पूछती ही क्यों हैं?
- इनकी जासूसी और तर्क के आगे तो बड़े-बड़े जासूस भी गच्चा खा जाएं. कहां, किसके साथ, क्यों, कब का जवाब देते समय सावधान रहना पड़ता है या फिर बगलवाले शर्माजी तो समय से घर आ गए थे, आपको क्यों देर हुई? रास्ता तो एक ही है... जैसे प्रश्नों के लिए तैयार रहना पड़ता है.
- इनकी शॉपिंग और विंडो शॉपिंग मेनिया से भगवान ही बचाए. ना कहना भी ख़तरे से खाली नहीं और हां कहना भर मुसीबत है. 10-15 रुपए के लिए दुकानदार से झिक-झिक करेंगी, ना माने तो दुकान से निकल लेंगी. शरमा-शरमी में हमें भी दुकानदारों से नज़रें चुराते हुए पीछे-पीछे निकलना पड़ता है.
- कपड़े कितने भी हों, लेकिन जब कहीं जाना हो, तो क्या पहनूं? और बहुत समय से आपने कुछ दिलाया नहीं का रोना पतियों को सुनना ही पड़ता है.
- जाने कहां-कहां से रेसिपीज़ बटोरकर पति पर आज़माना इनका बड़ा प्यारा-सा ख़तरनाक शौक़ है और फिर उम्मीद यह कि पति तारीफ़ भी करे.
- बात मनवाने का इनका बड़ा ही प्रभावशाली अस्त्र है आंसू, जो हमेशा गंगा-जमुना की तरह आंखों में भरे ही रहते हैं.
- चीज़ों को यथास्थान रखने और सफ़ाई करने का भूत चौबीसों घंटे इनके सिर पर सवार रहता है. पति द्वारा सामान बिखेरने पर ताने-उलाहनों का दौर चल पड़ता है, लेकिन यदि भाई कमरे में सामान फैलाकर छोड़ दे, तो बड़े दुलार से कहेंगी, भैया का बचपना अभी भी गया नहीं.
- जन्मदिन या सालगिरह भूल जाने पर इतनी इमोशनल क्यों हो जाती हैं? हर साल तो आती है, यदि भूल गए, तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा?
- इनकी कमाई पॉकेटमनी और हमारी कमाई घर ख़र्च के लिए है. यदि कम पड़ती है, तो हमारे हर शौक़ पर टीका-टिप्पणी शुरू हो जाती है.
- प्रसून भार्गव
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