“तुम सूखे पत्तों की तरह हो शिल्पी और मैं एक बेजान ठूंठ की तरह! नहीं संभाल पाऊंगा मैं तुम्हें... शायद आज हमारी आख़िरी मुलाक़ात है...” शिल्पी के आंसू लगातार बह रहे थे. सोम ने उसे अपने गले से लगा लिया.
मोहनचंदा एक छोटा सा कस्बा था, जहां बिजली विभाग के सीनियर इंजीनियर ब्रजेश सिंह का स्थानांतरण कुछ सालों के लिए कर दिया गया था. उनके घर में उनकी पत्नी के अलावा उनके दो बच्चे थे आदित्य और शिल्पी. आदित्य हॉस्टल में रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. बेटी शिल्पी उस समय बारहवीं में थी, इसलिए वह अपनी पत्नी और शिल्पी के साथ मोहनचंदा आ गए थे.
छोटी जगह होने के कारण वहां बारहवीं का स्कूल नहीं था, इसलिए उन्होंने शिल्पी का नाम वहीं के एक कॉलेज में लिखा दिया था. कॉलेज भी थोड़ा दूर था. आने-जाने में द़िक्क़त के कारण उन्होंने शिल्पी के लिए एक साइकिल ख़रीद दिया था. अब वह रोज़ अपनी साइकिल से कॉलेज जाती थी.
यह भी पढ़ें: पहला अफेयर- सुरों भरी शाम के नगमे… (Love Story- Suron Bhari Sham Ke Nagme…)
शिल्पी के ही कॉलेज में सोम पढ़ता था. एक गरीब परिवार का मेधावी युवक, जिले का टॉपर, उतना ही सुंदर. शिल्पी को पता ही नहीं चला कि वह कब सोम को प्यार करने लगी. जब कभी कॉलेज में दोनों की नज़रें मिलतीं, वह उसकी ओर देखकर मुस्कुरा देती. धीरे-धीरे सोम भी उसे देखकर मुस्कुरा देता. कच्ची उम्र का अल्हड़ प्रेम अपने कुलांचे भरने लगा था. बगैर सोचे-समझे कि आख़िर इस प्यार का अंज़ाम क्या होगा?
शिल्पी के पिता चाहते थे कि उनके बेटे की तरह उनकी बेटी शिल्पी भी पढ़ाई पर ध्यान दे और प्रशासनिक परीक्षा पूरी करे. लेकिन शिल्पी के ख़्यालों में स़िर्फ सोम था और कुछ भी नहीं.
सोम की जाति अलग थी, उस पर सोम एक बहुत ही साधारण परिवार से था. यह बात शिल्पी भी जानती थी कि उसके माता-पिता कभी भी सोम और उसका रिश्ता होने नहीं देंगे, लेकिन प्यार को किसने रोका है!
एक दिन ब्रजेश जी को इस बात की भनक लग गई कि शिल्पी और सोम के बीच कुछ चल रहा है. माता-पिता उसके ऊपर सख्त निगाहें रखने लगे. उसका सोम से मिलना-जुलना भी बंद हो गया था. जैसे ही परीक्षा का परिणाम आया उसके पिता ने उसका दिल्ली में एडमिशन करा दिया. तीन दिन बाद ही उसकी ट्रेन थी. पिता का फैसला सुनकर शिल्पी की आंखों में आंसू आ गए. उसे सोम से मिलना था, मगर इत्तेफ़ाक ऐसा कि अचानक ही बारिश शुरू हो गई. वह घर से बाहर नहीं जा सकती थी. उसने चुपके से एक काग़ज़ के टुकड़े पर सोम के लिए एक मैसेज लिखकर एक बच्चे के हाथ भेज दिया.
सोम ने उसे गांव से बाहर नीम के पेड़ के नीचे बुलाया था, जहां दोनों अक्सर मिलते थे. बारिश के बीच घर से निकलना मुश्किल था. शिल्पी की अकुलाहट बढ़ती जा रही थी. आख़िरकार वह बचती-बचाती दौड़ती हुई नीम के पेड़ के नीचे पहुंची. सोम वहां उसका इंतज़ार कर रहा था.
“मुझे लगा तुम नहीं आओगी?” सोम की आवाज़ में दर्द था.
यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: कहीं दूर मैं, कहीं दूर तुम… (Pahla Affair: Kahin Door Main, Kahin Door Tum)
“सोम मैं जा रही हूं...” शिल्पी बहुत ही बेचैनी से बोली.
“कब लौटोगी?”
“कह नहीं सकती. हो सकता है पापा अपना ट्रांसफर भी करवा लें.” शिल्पी भी रोने लगी थी.
“तुम मत रोओ. तुम्हारे आंसू मुझे अच्छे नहीं लगते...” सोम भी टूट गया था.
शिल्पी एक सूखे पत्ते की तरह कांपने लगी.
“तुम सूखे पत्तों की तरह हो शिल्पी और मैं एक बेजान ठूंठ की तरह! नहीं संभाल पाऊंगा मैं तुम्हें... शायद आज हमारी आख़िरी मुलाक़ात है...” शिल्पी के आंसू लगातार बह रहे थे. सोम ने उसे अपने गले से लगा लिया.
“मैं चलती हूं...” उसने बदहवासी में कहा और वापस घर की तरफ़ दौड़ पड़ी.
नीम का पेड़ गवाह था दो दिलों के प्यार भरे दिल के टूटने का! शिल्पी अपने आंखों के आंसू अपने दिल में दफ़न कर घर लौट आई और सोम अपने घर. शिल्पी हमेशा के लिए दिल्ली चली गई अपना भविष्य बनाने, जिसमें सोम का नाम कहीं भी नहीं था और सोम अपनी भरी आंखों से राह निहारा करता कि शायद शिल्पी वापस आ जाए कभी...
मगर नहीं यह कभी नहीं हुआ. दो दिल रेत बन गए थे और कहीं रेत के आंसू भी होते हैं क्या!
- सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: रोमांटिक स्टोरी- नीली छतरीवाली लड़की… (Pahla Affair: Romantic Story- Neeli Chhatriwali Ladki)
अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का गिफ्ट वाउचर.