कंप्यूटर हमेशा से ही मेरे लिए जी का जंजाल रहा है. बात उन दिनों की है जब इंटरनेट नया-नया आया ही था. मुझे ना तो कंप्यूटर ज़्यादा समझ में आता था और ना ही अपना मायाजाल पसराता यह इंटरनेट. मैं एक अख़बार में संवाददाता और लेखक के रूप में काम करती थी. इसलिए अमूमन मेरा रिश्ता काग़ज़, और कलम से प्रगाढ़ था. मेरे ऑफिस में भी धीरे-धीरे मौसम बदल रहा था या यूं कहें इंटरनेटिया होता जा रहा था.
मेरे संपादक ने अख़बार के कलेवर में कुछ बदलाव किए, जिसके तहत मुझे सप्ताह में कम से कम दो ख़बरें इंटरनेट से लानी थी. मैंने एक इंटरनेट कैफे में नियमित रूप से जाना शुरू कर दिया. अपना ईमेल आईडी भी बनाया. काम के साथ गाहे-बगाहे मैं उन दिनों काफ़ी ट्रेंड में रहे याहू चैट रूम में भी जाने लगी.
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पहले दिन ही चैट रूम में मेरी मुलाक़ात किसी राहुल नाम के लड़के से हुई. नाम, काम, शहर, उम्र जैसी औपचारिक बातों पर ही संवाद ख़त्म हो गया. बात कुछ बड़ी नहीं थी, पर पता नहीं क्यों उस दिन मैं बहुत ख़ुश थी. मन में कुछ छोटी-छोटी फुलझड़ियां सी चल रही थी. मैं फिर से एक बार चैट करने का इंतज़ार करने लगी.
दूसरे दिन, तीसरे दिन, चौथे दिन और राहुल के साथ चैट का यह सिलसिला अब तीन महीने का हो गया था. राहुल का लिखा एक-एक शब्द सीधा मेरे दिल में उतरता. मुझे उसके विचारों और शब्दों से लगाव हो गया था. शब्दों से इसलिए, क्योंकि हमने अभी तक एक-दूसरे का चेहरा नहीं देखा था. हर दोपहर हम चैट करते. हमारी बातें अब अनौपचारिक हो चुकी थी. हम अक्सर एक दूसरे के काम, परिवार, पसंद-नापसंद, अपनी-अपनी समस्याओं पर बात करने लगे. हमने एक-दूसरे से अपने फोन नंबर भी साझा किए.
एक दिन राहुल चैट रूम में नहीं आया. मैंने उसे फोन मिलाया और उस पर झुंझला पड़ी, “मैं पूरे आधे घंटे से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूं. मैं तो अभी सब बंद करके जा रही थी. तुम्हें पता है मुझे यहां से ऑफिस भी जाना होता है.” राहुल ने बहुत शांति से संवाद शुरू किया वह बोला, “मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं.” मैंने जल्दबाज़ी
से कहा, “हां जल्दी बोलो मुझे जाना है.”
उसने कुछ निराशा से जवाब दिया, “प्रिया, मेरे माता-पिता मेरी शादी करवाना चाहते हैं. मुझे कई रिश्तों के बारे में बता रहे हैं..."
मैंने आव देखा ना ताव और राहुल को कह दिया,
“हां तो मुझे क्यों बता रहे हो. कर लो शादी...” इतना कह कर मैंने फोन बंद कर दिया और वहां से चल दी.
कई हफ़्ते हो चुके थे मैंने अपना चैट बाक्स नहीं खोला था और ना ही राहुल का फोन ही उठाया था. बहुत बुरा लग रहा था. किस बात का पता नहीं. ब्रेकअप जैसी फीलिंग आ रही थी. मैं राहुल पर ग़ुस्सा थी या अपने आप पर पता नहीं.
एक दिन मुझे अपने मेल बाक्स में राहुल का एक मेल दिखा. मन में कुछ खलबली तो ज़रूर हुई पर एक अनजाना सा डर भी था. मैंने घबराहट के साथ मेल खोला.
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उसमें लिखा था- प्रिया कैसी हो? तुम्हारी परिस्थिति मैं समझ सकता हूं, पर उस दिन और उसके बाद तुमने मुझे कुछ कहने का मौक़ा ही नहीं दिया. मैं जब से तुमसे बात कर रहा हूं मेरे जीवन की रिक्तताएं भर गई हैं. तुमसे मैंने अपने भीतर की दुनिया बांटी है, जो आज तक किसी ने नहीं देखी. तुम जिस गहराई से मुझे सुनती हो तो ऐसा लगता है कि मेरे बोले शब्द दुनिया के सबसे
सुंदर शब्द हैं. जब से तुमसे बात नहीं हुई है मैं बेचैन हो गया हूं. मैं तुम्हें खोने के ख़्याल से भी डर
गया हूं. मैं नहीं जानता तुम कैसी दिखती हो, पर मैंने तुम्हारी वह सुंदरता देखी है, जो शायद किसी को नज़र नहीं आएगी. प्रिया, मैं तुम्हारे साथ जीवन का हर पड़ाव पार करना चाहता हूं. क्या तुम मुझसे शादी करोगी. अगर तुम्हारी हां है तो आज मेरे फोन का जवाब देना नहीं तो आज के बाद हम कभी बात नहीं करेंगे. राहुल के इन शब्दों ने मेरे नीले आसमान पर गुलाबी रंग छिड़क दिया. मैं राहुल से प्यार करने लगी थी. हमने एक-दूसरे को बिना देखे बिना मिले शादी
कर ली और इस तरह यह इंटरनेटिया अफेयर अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ.
- विजया कठाले निबंधे

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