बात कुछ साल पहले की है, जब एक सरकारी अस्पताल में जांच के बाद डॉक्टरों ने तारा को बताया कि उन्हें बे्रस्ट कैंसर है, जिसके लिए उन्हें तुरंत मैसेक्टॉमी करवानी होगी. डॉक्टरों को भगवान का दूसरा रूप माननेवाले उनके पति ने किसी और अस्पताल या एक्सपर्ट डॉक्टर से सेकंड ओपिनियन की ज़रूरत नहीं समझी और बिना डॉक्टर से उसके बारे में अधिक जानकारी लिए सर्जरी की मज़ूरी दे दी. सर्जरी के बाद जब डॉक्टर्स ने जांच के लिए ब्रेस्ट की गांठ लैब भेजी, तो पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर था ही नहीं. बेवजह तारा ने न स़िर्फ सर्जरी की पीड़ा झेली, बल्कि उनके परिवार को भी मानसिक कष्ट हुआ. उस समय अगर तारा को या उनके पति को अपने अधिकारों का पता होता या वो थोड़े सतर्क होते, तो उन्हें यह सब न झेलना पड़ता. यह किसी एक तारा की कहानी नहीं है. आज देश में हज़ारों ऐसे लोग हैं, जिन्हें अपने अधिकारों की न तो जानकारी है और न ही वो इस दिशा में पहल कर रहे हैं. माना कि डॉक्टर्स अपनी पूरी कोशिश करके व्यक्ति को स्वस्थ करने का प्रयास करते हैं, पर कुछ ऐसे भी हैं, जो इस नोबल प्रोफेशन को बदनाम कर रहे हैं. ऐसे में आपको अपने पेशेंट्स राइट्स के बारे में पता होना चाहिए, ताकि आपके साथ ऐसा न हो.
क्या हैं आपके पेशेंट्स राइट्स?
- मरीज़ या उसके गार्जियन को बीमारी या रोग के बारे में पूरी जानकारी मिलनी चाहिए.
- उस हेल्थ प्रॉब्लम के क्या-क्या साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, उसका आपकी सेहत पर क्या प्रभाव पड़ेगा, आपके साथ क्या आपके परिवार को भी किसी तरह की सावधानी की ज़रूरत है आदि की पूरी जानकारी मिलनी चाहिए.
- हर मरीज़ को यह अधिकार है कि पूरे मान-सम्मान के साथ उसका इलाज
हो. उसके साथ कोई बदसलूकी नहीं कर सकता.
- अगर ऐसी कोई सरकारी योजना है, जिससे आपको फाइनेंशियल मदद मिल सकती है, तो डॉक्टर या हॉस्पिटल अथॉरिटीज़ उसके बारे में आपको सूचित करें.
- इलाज के दौरान भी ट्रीटमेंट या बीमारी के बारे में सेकंड ओपिनियन के लिए आप अपनी रिपोर्ट्स किसी और डॉक्टर को दिखा सकते हैं. इसके लिए आपको डॉक्टर से कुछ छिपाने की ज़रूरत नहीं है. आप उन्हें नि:संकोच बता सकते हैं कि आप किसी और एक्सपर्ट से राय लेना चाहते हैं.
- इलाज के लिए डायग्नोसिस, ट्रीटमेंट और दवाइयों की पूरी जानकारी समय-समय पर आपको दी जानी चाहिए.
- यह अस्पताल की ज़िम्मेदारी और आपका अधिकार है कि आपकी बीमारी से जुड़ी सभी रिपोर्ट्स की जानकारी गोपनीय रखी जाए.
- इमर्जेंसी में जल्द से जल्द आपको इलाज मुहैया कराया जाए.
- आपके मेडिकल रिकॉर्ड्स की फोटोकॉपी आपको भी दी जाए.
- अस्पताल के सभी नियम-क़ायदे के साथ-साथ उनकी सभी सुविधाओं की जानकारी भी आपको दी जाए.
- अगर आपको लगता है कि कोई सबस्टैंडर्ड दवा अस्पताल ने आपको दी है, तो आप उसकी शिकायत लोकल फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन से कर सकते हैं.
- अगर डॉक्टर आपकी बीमारी के रिकॉर्ड्स को किसी मेडिकल कॉन्फ्रेंस में इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उसमें आपकी सहमति ज़रूरी है. ऐसा न करने पर आप उन पर गोपनीयता भंग करने का आरोप लगा सकते हैं.
- किसी भी महिला मरीज़ की जांच करते समय डॉक्टर के साथ नर्स/सिस्टर का होना ज़रूरी है. अगर ऐसा नहीं है और आप असहज महसूस कर रही हैं, तो आप सिस्टर को साथ रखने की मांग कर सकती हैं.
- आपको पूरा अधिकार है कि आप वर्तमान डॉक्टर से इलाज न लेकर किसी और से इलाज करवा सकते हैं, पर जानलेवा बीमारियों में ऐसा करना आपके लिए ही ख़तरनाक हो सकता है.
- अगर डॉक्टर आपको एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट की सलाह देते हैं, जिसमें एक्सपेरिमेंटल थेरेपीज़, एक्सपेरिमेंटल दवाइयां या फिर अलग लाइन ऑफ ट्रीटमेंट शामिल हो, तो आप उससे इंकार कर सकते हैं.
कर्त्तव्यों का भी करें पालन
- पूरी ईमानदारी से डॉक्टर द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करें.
- डॉक्टर्स और सभी मेडिकल प्रोफेशनल्स का सम्मान करें.
- अपनी बीमारी से जुड़ी सभी रिपोर्ट्स, बिल्स और डॉक्यूमेंट्स संभालकर रखें.
- मेडिकल इंश्योरेंस है, तो ट्रीटमेंट से पहले कैशलेस या रीफंड के बारे में ज़रूरी बातें समझ लें.
- अगर ट्रीटमेंट, टेस्ट्स या दवाइयों आदि से संबंधित कोई शिकायत है, तो पहले अपने डॉक्टर से बात करें. हो सकता है कम्यूनिकेशन में कहीं प्रॉब्लम के कारण आपको ग़लतफ़हमी हुई हो. अगर डॉक्टर की लापरवाही के कारण ऐसा हुआ है, तो अस्पताल के पेशेंट रिड्रेसल सेल से संपर्क करें.
- किसी भी तरह की क़ानूनी कार्रवाई से पहले अस्पताल प्रबंधन के पास अपनी शिकायत दर्ज कराएं, क्योंकि अक्सर लोकल लेवल पर ही मामले आसानी से सुलझ जाते हैं.
- कोई भी एक्शन लेने से पहले एक बार इस बात पर ज़रूर ग़ौर करें कि डॉक्टर्स भी हमारी तरह इंसान हैं.
मेडिकल लापरवाही में यहां लगाएं गुहार
मेडिकल काउंसिल
यह एक क़ानूनी संस्था है, जो मेडिकल प्रोफेशन को मॉनिटर करने के लिए बनाई गई है. यहां पर आप शिकायत दर्ज करा सकते हैं, पर यहां आपको कोई मुआवज़ा नहीं मिल सकता. वो स़िर्फ डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन रद्द कर सकते हैं. पर यह काउंसिल साल में स़िर्फ 2 बार लगती है.
कंज़्यूमर कोर्ट
इस मामले में यह सबसे फास्ट और स्पीडी ट्रायल कोर्ट है. मेडिकल प्रोफेशन में किसी भी तरह की शिकायत के लिए आप कंज़्यूमर कोर्ट जा सकते हैं. यहां आपको स़िर्फ मुआवज़ा मिलेगा. आपको एक सादे से पेपर पर अपनी शिकायत लिखकर मुआवज़े की मांग की रक़म के साथ जमा करनी होती है.
मुआवज़े की रक़म के मुताबिक़ आपको कोर्ट चुनना पड़ेगा.
- डिस्ट्रिक्ट कंज़्यूमर कोर्ट: 20 लाख तक का मुआवज़ा
- स्टेट कमीशन: 20 लाख से 1 करोड़
- नेशनल कमीशन: 1 करोड़ से ज़्यादा
सिविल कोर्ट
मेडिकल लापरवाही की शिकायत के लिए यहां भी केस फाइल कर सकते हैं, पर यहां पहले से ही इतने केसेस पेंडिंग हैं कि आपका केस लंबा खिंच सकता है. अगर आपके इलाज में किसी तरह की लापरवाही बरती गई, जिसके कारण आपको शारीरिक या मानसिक कष्ट हुआ, तो कंज़्यूमर कोर्ट जाना सबसे सही फैसला होगा.
रेलवे में मरीज़ों को स्पेशल छूट
- कैंसर के मरीज़ों को ट्रीटमेंट या रूटीन चेकअप के लिए जाना है, तो उन्हें स्लीपर कोच और 3 टायर एसी में 100% कंसेशन मिलता है, जबकि 2 टायर एसी और फर्स्ट क्लास में 50% तक की छूट की सुविधा है. मरीज़ के साथ के अटेंडेंट को भी स्लीपर कोच और 3 टायर एसी में 75% तक की छूट मिलती है, जबकि 2 टायर और फर्स्ट क्लास में दोनों को समान छूट मिलती है.
- अगर आप हार्ट पेशेंट हैं और हार्ट सर्जरी के लिए एक शहर से दूसरे शहर जा रहे हैं, तो
आपको सभी टिकट्स पर 50-75% तक की छूट मिलती है. आपके अटेंडेंट को भी उतनी ही छूट मिलेगी.
- किडनी के मरीज़ जो डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए ट्रैवेल कर रहे हैं, उन्हें और उनके अटेंडेंट को भी 50-75% तक की छूट मिलती है.
- इसके अलावा ट्यूबरकुलोसिस, थैलेसेमिया, सिकल सेल एनीमिया, नॉन इंफेक्शियस लेप्रोसी और हीमोफीलिया के मरीज़ों को भी रेलवे में 50-75% की छूट मिलती है.
- अनीता सिंह
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