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कविता- सीमा (Kavita- Seema)

मेरे प्रेम की सीमा कितनी है, क्या है तुम्हें क्या पता है? बहुत छोटी हैं वो मन की रेखाएं Kavita नाराज़ होे तो हंसना ख़ामोश हो, खिलखिलाना उदास हो, मुस्कुराना दुखी हो, ख़ुश होना   झगड़े के बाद पूछना छोड़ो न ग़ुस्सा अब सह नही सकती चुप हूं तो कहना बोलो न क्यूं सताना रुठो तुम, मेरा मनाना   मन नहीं लग रहा गुमसुम रहना तुम्हारा भला नहीं लग रहा यही अंतिम परिधि है तेरा खिलखिलाना मुस्कुराना, मान जाना   अंत है, यही मेरी प्रेम, सीमाओं का नहीं चाहिए, आकाश कायनात, न ही अनंत अंतरिक्ष, न अलक्षित अगणित तारे, न सितारे   न रेत के कण या समय के क्षण मेरे प्यार की परिणीति भी केंद्र भी, बिंदु भी स़िर्फ इतनी छोटी है ख़ुशियों की रेखाएं   स़िर्फ तुम्हारी हूं क्यूं हूं कब से हूं इतना सा सुनो ना यही हैं सीमाएं, मेरे प्रेम की पता है तुम्हें और कुछ भी नहीं अनंत प्रेम मेरा कैसी, क्यूं, कौन-सी टूट गई बाधाएं   आगे बढ़ चुकी हूं छोड़ सभी सीमाएं साथ ले असीम आशाएं हे प्रिय, तुम्ही में समाहित दसों दिशाएं असीमित सीमाएं... - निरंजन धुलेकर   यह भी पढ़ेShayeri

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