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कविता- ख़रीद लाए… (Kavita- Kharid Laye…)

Kavita-Kharid Laye   प्यार भी खिलौने की तरह हो गया है शायद एक टूटा नहीं कि दूसरा खरीद लाए   तुम्हें पाने की हसरत कुछ इस तरह बढ़ी उम्र तो गिरवी रख दी ज़िंदगी ख़रीद लाए   चाहते बाज़ार में, हसरतों की दुनिया थी दौलतों का क्या करते हम तो दिल ख़रीद लाए   बिक रहे थे ख़्वाब कई ज़िंदगी की क़ीमत पर मुफ़्त मिल रहा था दर्द हम तो बस वही लाए   तस्वीर उम्मीद की दिखी आपकी निगाह में हमने फ्रेम कर लिया और वो ख़रीद लाए   हमशक्ल तुमसा कोई आईने में कैद था तुम तो मिले नहीं आईना ख़रीद लाए   वो मिले तो कह देना ज़िंदगी गुज़रती है इश्क़ कोई सौदा नहीं जो हर कोई ख़रीद लाए... Murli Manohar Shrivastav मुरली मनोहर श्रीवास्तव   मेरी सहेली वेबसाइट पर मुरली मनोहर श्रीवास्तव की भेजी गई कविता को हमने अपने वेबसाइट में शामिल किया है. आप भी अपनी कविता, शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं…

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