शादी एक पुरुष और महिला के बीच एक इंटरनल और मज़बूत बॉन्ड है, जिससे जुड़कर दोनों ज़िंदगी भर के लिए जुड़ जाते हैं, लेकिन कई बार कुछ कारणों से दोनों में बात नहीं बनती और दोनों अलग होने का फैसला कर लेते हैं. जब दोनों अलग होते हैं तो बहुत कुछ बंट जाता है, जिसमें उनकी प्रॉपर्टीज़ भी शामिल होती हैं. रियल एस्टेट सबसे वैल्युएबल एसेट है जो ज़्यादातर कपल्स के पास होता है और इसका बंटवारा भी थोड़ा मुश्किल होता है. अक्सर इसी प्रॉपर्टी को लेकर दोनों में लम्बी कानूनी लड़ाइयां भी चलती हैं.
वैवाहिक रिश्तों में जब कड़वाहट आती है, तो रिश्ते तमाम तरह के कानूनी लड़ाइयों में तब्दील हो जाते हैं. इसमें प्रॉपर्टीज़ से लेकर बच्चों की कस्टडी और मेटेनेंस तक कई मुद्दे शामिल हैं. आज हम बात करेंगे कि पति-पत्नी में तलाक की स्थिति में प्रॉपर्टी को लेकर क्या कानून हैं. ख़ासकर अगर पति और पत्नी ने साथ मिलकर फ्लैट खरीदा हो, तो उस पर किसका क्या हक होगा और क्या पति-पत्नी में से कोई एक-दूसरे को कानूनन उस प्रॉपर्टी से बेदखल कर सकता है?
कोर्ट का हालिया फैसला
मुंबई के एक मेजिस्ट्रेट कोर्ट में ऐसा ही एक मामला आया, जिसमें शादी के कुछ सालों बाद महिला ने अपने पति, ससुर समेत ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा की याचिका दायर की. साथ ही उसने शिकायत में ये भी कहा कि उसने पति के साथ मिलकर लोन पर एक फ्लैट खरीदा था, लेकिन बाद में दोनों का मामला तलाक तक पहुंच गया. ऐसे में पत्नी ने अपने लिए हर महीने गुजारे भत्ते की मांग की और साथ ही फ्लैट पर सिर्फ और सिर्फ अपना अधिकार भी मांगा, पत्नी ने पति को घर से बेदखल करने की मांग की, लेकिन पति का कहना था कि वो घर खरीदने के लिए उसने अपने एक फ्लैट तक को बेच दिया था. उससे मिले पैसों से उसने नया फ्लैट और एक कार खरीदी थी, जिसमें महिला चलती है. आखिरकार, कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि उस फ्लैट पर पति का भी उतना ही अधिकार है, जितना उस महिला का. इसलिए पति को घर से बाहर नहीं निकाला जा सकता. साथ ही कोर्ट ने फैसला सुनाया कि शख्स अपनी पत्नी को हर महीने 17 हजार रुपये मेटेनेंस दे.
ससुराल की प्रॉपर्टी पर कितना हक?
- अगर तलाक आपसी सहमति से हुआ है और संपत्ति पति के नाम है, तो पत्नी का उक्त संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं हो सकता है. उदाहरण के लिए, यदि पति और पत्नी तलाक के बाद पति के नाम से खरीदे गए फ्लैट में रहते हैं, तो पत्नी उस पर अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकती है. भारतीय कानून उन्हीं को मालिक के रूप में मान्यता देता है जिनके नाम पर संपत्ति पंजीकृत है. ऐसे मामलों में पत्नी कानून के तहत पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती है, लेकिन पति की संपत्ति पर दावा नहीं कर सकती.
- आजकल संपत्ति अक्सर पति और पत्नी दोनों के नाम एक साथ पंजीकृत होती है. ऐसी संपत्ति संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्ति होती है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या तलाक के बाद पत्नी संयुक्त स्वामित्व वाली ऐसी संपत्ति पर दावा कर सकती है? हां, तलाक के बाद भी संयुक्त संपत्ति में पत्नी का हिस्सा होता है. लेकिन ऐसी संपत्ति पर दावा करने के लिए उसे यह साबित करना होगा कि संपत्ति की खरीद में भी उसने योगदान दिया था.
- अगर पत्नी ने संपत्ति की खरीद में योगदान नहीं दिया है, लेकिन पंजीकरण दस्तावेज में उसके नाम का सिर्फ उल्लेख किया गया है, तो उसे संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता. इसके अलावा, संयुक्त संपत्ति में पत्नी का हिस्सा उसके द्वारा योगदान के हिस्से के बराबर होता है.
- ऐसी स्थिति में कपल म्युचुअल समझौता भी कर सकते हैं. दोनों में से जो भी संयुक्त संपत्ति को अपने पास रखना चाहता है, वह दूसरे के हिस्से को खरीद सकता है और उस पर आउट-ऑफ-कोर्ट समझौता भी किया जा सकता है.
- ध्यान दें कि जब तक अदालत कानूनी रूप से उन्हें ’तलाकशुदा’ घोषित करती है, तब तक पत्नी अपने पति की कानूनी जीवनसाथी होती है. तब तक पति की संपत्ति पर पत्नी का अधिकार होता है.
- हिंदू अडॉप्शंस एंड मेंटेनेंस ऐक्ट, 1956 (हिंदू दत्तक और भरण-पोषण कानून) के तहत महिला का अपने पति की पैतृक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता. यानी ज़रूरी नहीं है कि जोप्रॉपर्टी उसके पति की हो, वो उसकी भी हो. ससुराल की प्रॉपर्टी पर एक महिला का उतना ही अधिकार है, जितना कि वो उसे देना चाहें.
- वहीं अपनी पति की प्रॉपर्टी पर महिला का अधिकार होता है. अगर पति की मृत्यु बिना वसीयत किए हुई है, यानी बिना किसी वसीयत के, तो ऐसी संपत्ति पर पत्नी का अधिकार होगा.
- अगर वसीयत लिखी गई हो तो संपत्ति का बंटवारा वसीयत के अनुसार होगा.
- अगर पुरुष ने पत्नी के नाम पर चल या अचल संपत्ति ली है, लेकिन उसे गिफ्ट नहीं किया है तो उस पर पति का हक होगा.
- पत्नी के नाम से जितनी संपत्ति होगी, उस पर उसका एकल अधिकार होता है. जूलरी भी उसी के खाते में आएगी. अगर उसे गिफ्ट में कैश मिला होगा, उसपर भी पत्नी का अधिकार होगा।.
- ज्वाइंट संपत्ति में उसे बराबर हिस्सेदारी मिलेगी. महिला के पास अपने हिस्से की संपत्ति बेचने का भी अधिकार है.
- हिंदू अडॉप्शंस एंड मेंटेनेंस ऐक्ट, 1956 के तहत हिंदू पत्नी को अपने ससुराल के घर में रहने का अधिकार है, भले ही उसके पास उसका स्वामित्व हो या न हो. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ससुराल का घर पैतृक संपत्ति है, जॉइंट फैमिली वाला है, स्वअर्जित है या फिर रेंटेड हाउस है. महिला को अपने ससुराल वाले घर में रहने का ये अधिकार तब तक है जब तक उसके पति के साथ उसके वैवाहिक संबंध बरकरार रहता है. अगर महिला पति से अलग हो जाती है तब वह मेंटेनेंस का दावा कर सकती है.