एक गधा बड़े आराम से बरगद के पेड़ के नीचे लेटा हुआ था. लेटे-लेटे कई फ़ालतू के विचार उसके दिमाग़ में आने लगे.
‘यदि धरती फट जाए, तो मेरा क्या होगा?’ उसने सोचा.
उसे नींद आने ही लगी कि ज़ोर के धमाके की आवाज़ हुई. उनींदा तो था ही वह भय से चिल्लाने लगा, “भागो भागो, अपनी जान बचाओ. धरती फट रही है…“ और पागलों की तरह भागने लगा. राह में उसे एक बंदर मिला, जिसने गधे से भागने का कारण पूछा. भागते-भागते ही गधा चिल्लाया, "धरती फट रही है तुम भी भागो."
तो वह भी संग हो लिया.
उन दोनों को भागता देख अन्य जानवरों ने भी बारी-बारी पूछा एवं जवाब सुन इनके संग भागने लगे. चारों तरफ़ चीख-पुकार और भगदड़ मच गई. सियार, लोमड़ी, हाथी, घोड़े सब भाग रहे थे.
शोर-शराबा सुनकर शेर अपनी गुफा से बाहर निकला और दहाड़ कर इस भगदड़ का कारण पूछा.
“महाराज, धरती फट रही है आप भी भाग कर अपनी जान बचाइए.” बन्दर ने कहा.
“किस ने बताया तुम्हें?” शेर ने जानवरों के झुंड पर निगाह घुमाते हुए पूछा. इस पर सब जानवर एक-दूसरे का मुंह देखने लगे.
“मुझे तो लोमड़ी ने बताया है.” हाथी बोला और लोमड़ी को घोड़े ने बताया था. पूछते-पूछते बात गधे तक पहुंची, जिसने इसकी शुरुआत की थी.
“तुम्हें कैसे पता चला?” शेर ने गधे से पूछा.
“मैंने अपने कानों से धरती फटने की आवाज़ सुनी है.” हकलाते हुए गधे ने उत्तर दिया.
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“ठीक है मुझे वहां ले चलो.” शेर के कहने पर गधा उसे बरगद के उस पेड़ के पास ले गया.
“मैं यहां सो रहा था जब मैंने ज़ोर की आवाज़ सुनी और उधर से धूल उड़ती देखी.” उसने एक दिशा की ओर इंगित किया.
उस दिशा में जाने पर शेर ने पाया कि वहां नारियल का एक ऊंचा वृक्ष था, जिससे कुछ नारियल तेज़ हवा चलने पर नीचे पड़ी चट्टान पर एक साथ आन गिरे. इस से चट्टान टूट गई और ख़ूब धूल उड़ी.
“यह तो गधा है, परन्तु आप लोगों के पास भी दिमाग़ नहीं है क्या?” शेर ने कहा.
“आइन्दा अफ़वाहों पर यक़ीन करने से पहले पक्का अवश्य कर लें.”
ऐसी अफ़वाहों के कारण ही अनेक बार दंगे हो जाते हैं और अनेक की मृत्यु हो जाती है.
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