
- यूं तो मेरा स्वभाव है कि मैं किसी से बेवजह उलझती नहीं, लेकिन कोई जान-बूझकर मुझसे उलझना चाहे, तो उसे छोड़ती भी नहीं हूं.
- एक नारी को न जाने कितनी जगहों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, ख़ासकर जब आपके साथ उच्च पद पर शिक्षित पुरुषों की जमात हो. ऐसे में अपनी बात को कहने के लिए आपको बड़ी समझदारी से काम लेना पड़ता है.
- मेरी ज़िंदगी में मेरे पैरेंट्स के अलावा ऐसे कई शख़्स रहे, जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है. मेरे टीचर्स पीटर क्लिटंन, ब्रूस लुईस से लेकर पंडित बिरजू महाराज तक. किसी ने साहित्य पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया तो किसी से कला की बारीक़ियों को समझाया.
- डायरेक्टर्स में शशांक खेतान, नीरज घेवन औैर नितेश तिवारी ने मेरे अभिनय को निखारने में काफ़ी मदद की. इनसे मैंने सिनेमा के विभिन्न स्तरों को जाना.
- मैं ख़ुद को लेकर हमेशा से ही बहुत स्ट्रिक्ट रही हूं. मुझे लगता है यह मुझे मेरी मां से विरासत में मिला है.

- घर का माहौैल फिल्मी रहा, तो पापा (बोनी कपूर) को फिल्मों को लेकर जोड़-तोड़ करते देखा है. इसलिए प्रोड्यूसरों को होनेवाली परेशानियों और प्रेशर को अच्छी तरह से समझती हूं. इस बात को भी जानती हूं कि एक्टर्स का बिहेवियर प्रोडयूसर की ज़िंदगी को किस तरह ईज़ी या फिर मुश्किलों भरा बना सकता है. इसी कारण मैं अपने निर्माताओं को कभी किसी प्रॉब्लम्स में डालना पसंद नहीं करती. उनका कहना मानती हूं, क्योंकि जानती हूं कि यह फिल्म के हित में है.
- रिश्तों में लेना-देना दोनों ही होता है. यदि आप प्यार, स्नेह, अपनापन देते हैं तो इसके एवज में ख़ुद भी यह सब चाहते हैं. इसलिए केवल देना ही है ऐसा नहीं है.
- अपनी पहली फिल्म ‘धड़क’ आज देखती हूं तो लगता है इसमें मैं और भी इम्प्रूवमेंट कर सकती थी. लेकिन कहते हैं ना अभिनय भी धीरे-धीरे निखरता है, बस ऐसा ही कुछ है.
- मेरी स्पीड डायल लिस्ट में तीन ख़ास नाम होते हैं. पापा, बहन खुशी और शिकू (शिखर पहाड़िया).
- यदि मेरे ड्रीम वेडिंग की बात की जाए, तो मैं चाहूंगी कि तिरुपति में सिंपल ढंग से शादी हो. जहां मैं गजरा लगाए हुए गोल्ड जरी वाली कांजीवरम साड़ी में रहूं और पति लूंगी में. मेहमान केले के पत्ते पर पारंपरिक व्यंजनों का लुत्फ़ उठाएं.

- लोगों का यह सोचना है कि मैं ख़ुद को सीरियसली नहीं लेती, जबकि ऐसा नहीं है.
- माना मैं बेइंतहा ख़ूबसूरत या टैलेंटेड नहीं हूं, लेकिन मैं बेहद मेहनती हूं, इसमें कोई शक नहीं.
- मैं एक ही तरह के रोल कई बार नहीं कर सकती. मुझे कोई भी भूमिका बार-बार करना पसंद नहीं, इससे मैं बोर हो जाती हूं. मुझे चैलेंज पसंद है, जिससे मैं जान सकूं कि मैं आगे बढ़ रही हूं या नहीं.
- मेरी फिल्मों की बात करें, तो शशांक खेतान लिखित-निर्देशित ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ रोमांटिक कॉमेडी फिल्म है, वहीं तुषार जलोटा के निर्देशन में बन रही सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ ‘परम सुंदरी’ रोमांस से भरपूर लव स्टोरी है. दोनों ही अलग तरह की है, जो फैंस को यक़ीनन रोमांचित करेगी.

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