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कहीं आपका प्यार आपको इमोशनली डैमेज तो नहीं कर रहा? (Is Your Love Emotionally Damaging You?)

सुना था दर्द का एहसास अपनों को होता है
पर दर्द ही अपने दें तो एहसास कौन करेगा…

सच ही तो है, जब अपनों से ही दर्द मिले, तो इसकी सुनवाई आख़िर कोई करे, तो कहां करे? प्यार एक ख़ूबसूरत एहसास है, लेकिन जब यही प्यार भावनात्मक रूप से चोट पहुंचाने लगे, तो इमोशनली डैमेज होते देर नहीं लगती.
जी हां, अब ऐसा अक्सर ही देखने को मिल रहा है कि प्यार भरे रिश्ते में इमोशंस कम और इमोशनल अत्याचार अधिक होने लगा है. प्यार व रिश्तों को लेकर हाल ही में हुए एक सर्वे में यह बात खुलकर सामने आई कि अब प्यार में जुड़ाव कम और शोषण अधिक पैठ जमाने लगे हैं.

अब वो प्यार न रहा…
रिंकी और सुमेश में बेइंतहा प्यार था और दोनों ने लव मैरिज की थी. लेकिन धीरे-धीरे रिंकी को यह एहसास होने लगा कि सुमेश की नज़रों में उसकी एहमियत दिन-ब-दिन कम होती जा रही है. अब वो उसे पहले जैसा न ही प्यार करता है और न ही समय देता है.
ऑफिस से आने के बाद प्यार भरी दो बातें करने की बजाय सुमेश अपनी ऑफिस की सारी भड़ास पत्नी पर उड़ेल देता है. अब वो उसके लिए स्ट्रेस रिलीज़ करने का सॉफ्ट टार्गेट बन गई थी.

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पहले रिंकी इन बातों को गंभीरता से नहीं लेती थी. लेकिन जल्द ही उसे महसूस होने लगा कि यह तो सुमेश की रोज़ की आदत बन गई है. अपनी कमियों, असफलताओं और तनाव को उस पर निकालकर कहीं न कहीं वो ख़ुद तो रिलैक्स हो जाता है, पर उसे इमोशनली डिस्टर्ब कर देता है. एकबारगी देखें, तो धीरे-धीरे भावनाओं का यही खिलवाड़ रिश्तों में दूरियों की वजह बन जाता है.
कहीं आपके साथ भी तो ऐसा नहीं हो रहा? आपका पार्टनर फिर चाहे वो पुरुष हो या महिला आपके साथ ऐसा तो नहीं कर रहे?
डॉ. माधवी सेठ, जो साइकोलॉजिस्ट हैं और आए दिन इस तरह के केसेस की काउंसलिंग करती रहती हैं, का कहना है कि कपल्स को इमोशनली डैमेज होने से ख़ुद को बचाना बेहद ज़रूरी है और यह उसकी ज़िम्मेदारी भी है.
अक्सर देखा जाता है कि पत्नी कहती है कि मुझे यहां पहुंचा दो, मैं वहां अकेली नहीं जा सकती या फिर तुम्हारे बगैर यह काम तो मैं कर ही नहीं सकती… अब बेचारे पति को न चाहते हुए भी वो काम करना पड़ता है, भले ही वो दिल से न चाहता हो, लेकिन इमोशनल ब्लैकमेलिंग के कारण उसे पत्नी का साथ देना ही पड़ता है. यह हुआ इमोशनली डैमेज करने का दूसरा पहलू. इसमें कई तरह के नुक़सान साथी को झेलने पड़ते हैं, जैसे- जीवनसाथी के स्वाभिमान को ठेस पहुंचना, उसे उचित मान-सम्मान न मिलना, मानसिक रूप से आहत होना, दबाव महसूस करना, कभी-कभी घुटन, टेंशन और डिप्रेशन भी पैर जमाने लगते हैं. 

भावनाओं के बगैर ज़िंदगी बेमानी है…
डॉ. माधवी कहती हैं कि ज़िंदगी में इमोशंस का होना बहुत ज़रूरी है, वरना ज़िंदगी बेमानी है. हम सभी को कोई न कोई इमोशन तो होता ही है. रोमांस भी एक तरह का इमोशन ही है. लेकिन कोई भी चीज़ जब अपनी सीमा के बाहर यानी हद के बाहर चली जाए, तो ग़लत ही है. इससे प्रॉब्लम्स बढ़ती ही हैं, फिर चाहे वो इमोशंस ही क्यों न हों.

इमोशनल फूल
इमोशनली डैमेज होने का एक उदाहरण कुछ ऐसा भी. साक्षी और विनोद का एक-दूसरे से गहरा जुड़ाव और दोस्ती थी. जब विनोद ने वैलेंटाइन पर साक्षी को प्रपोज़ किया, तो वो हैरान रह गई. गुलाबी शाम, प्यार भरी धुन के साथ फिल्मी अंदाज़ में प्रपोज़ करना… सब कुछ इतना ख़ूबसूरत और रोमांटिक था कि भावनाओं में बहकर रोमांचित होते हुए साक्षी ने हां कह दी. एक के बाद एक घटनाएं तेज़ी से होती गईं. तब बिना कुछ सोचे-समझे इमोशंस के उस बहाव में वह बहती चली गई. लेकिन शादी होने पर काफ़ी समय बाद यह एहसास हुआ कि फ़ैसला लेने में जल्दबाज़ी हो गई. माना अच्छी दोस्ती थी, लेकिन ज़िंदगीभर का साथ निभाने के लिए कुछ रुकना और जानना-समझना भी बहुत ज़रूरी था. अब विनोद द्वारा बात-बात पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करना, अपनी बात ज़बर्दस्ती मनवाना, इमोशनली ब्लैकमेल करना साक्षी को यह एहसास कराता है कि वो कितनी इमोशनल फूल थी. यदि उस समय थोड़ा संभल जाती या रिश्ते को आगे बढ़ाने से पहले रिश्ते को थोड़ा समय देती, तो शायद उसकी ज़िंदगी कुछ और होती. साक्षी वाली ग़लतियां कई लड़कियां करती हैं. वो भावनाओं में बहकर ग़लत फ़ैसले कर लेती हैं. 

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इमोशंस को मिसयूज़ न करें…
जब हमारी भावनाएं अपने चरम पर होती हैं, तब अमूमन हम ग़लत निर्णय ले लेते हैं. इसलिए इमोशंस को सही तरी़के से यूज़ करना ज़रूरी है. उस पर लगाम लगाना ज़रूरी है और यह बहुत कुछ हम पर निर्भर करता है. इमोशंस यूज़ करें, पर मिसयूज़ कभी न करें.

ख़ामोशी भी ख़तरनाक…
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जिन्हें कोई इमोशन ही नहीं होता. प्रायः आपने किसी न किसी को यह कहते हुए सुना होगा कि अरे भई इसे तो कोई इमोशन ही नहीं है. ये भावनाओं को व्यक्त ही नहीं करते. यह भी ठीक नहीं है. इस तरह के शख़्स अलग तरी़के से भावनात्मक रूप से आहत करते हैं. कभी-कभी इनकी ख़ामोशी ही इनका मेंटल टॉर्चर करने का हथियार बन जाता है.

इमोशनल डंपिंग से बचें…
जब जीवनसाथी बेवजह ग़ुस्सा करते हैं, चिल्लाते हैं, मारपीट करते हैं, तब उनके इस तरह के व्यवहार को एक्सपर्ट्स इमोशनल डंपिंग का नाम देते हैं. कई बार इसके कारण ही रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है और रिश्ते टूटते भी हैं. इसलिए जब कभी इस तरह की बातें लगातार होते हुए देखें, तो पार्टनर के शांत होने पर उनसे इसके बारे में बात करें. उन्हें प्यार से समझाएं. ज़रूरत होने पर मैरिज काउंसलर, मनोचिकित्सक व मनोवैज्ञानिक की भी मदद ली जा सकती है. कई बार काउंसलिंग सेेे भी रिश्ते संभल जाते हैं. ध्यान रहे, रिश्तों की मज़बूती एक-दूसरे को समझने में है, न कि दुखी करने में.

कुछ इमोशनल डैमेज ऐसे भी…
टीनएज में ही राज पढ़ने के लिए विदेश चला गया था. जब दस साल बाद वापस लौटा, तब उसकी बड़ी इच्छा हुई अपनी नैनि से मिलने की, जिन्होंने बचपन से टीनएज तक उसकी अच्छी तरह से देखभाल की थी. बड़े उत्साह से वो उन्हें मिलने गया. लेकिन नैनि राज से उस गर्मजोशी से नहीं मिलीं, जिसकी अपेक्षा उसने की थी. उनके उदासीन व्यवहार ने उसे इमोशनली इस कदर हर्ट किया कि उससे उबरने में लंबा समय लग गया. कहां राज ने सोचा था कि नैनि आंटी उसे देखकर ख़ुशी से झूम उठेंगी.
कहेंगी- कितना लंबा और बड़ा हो गया है… स्नेह-दुलार करेंगी, लेकिन ऐसा कुछ भी न होने पर राज का दिल टूट ही गया. इस तरह के इमोशनल डैमेज से उबरने में वक़्त लगता है.

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सौ से अधिक इमोशंस…
क्या आप जानते हैं कि हमारे मन में तक़रीबन सौ से अधिक इमोशंस होते हैं, जिनमें से बहुत कम का ही हम इस्तेमाल करते हैं. मैं ग़ुस्सा हूं… या फिर आज मैं बहुत ख़ुश हूं… को ही अधिक एक्सप्रेस करते हैं, जबकि उदासी, तड़प जैसी भावनाएं भी होती हैं, जिन्हें हम प्रायः व्यक्त ही नहीं करते. आज इस बात की बेहद ज़रूरत है कि हम सभी भावनाओं का इज़हार करें, ताकि रिश्तों में गर्माहट और अपनापन बना रहे.

इमोशनल अलर्ट

  • हर वक़्त ज़रूरत से ज़्यादा भावनाओं में न बहें.
  • पार्टनर के इमोशंस के साथ-साथ अपने इमोशंस को भी महत्व दें.
  • रिश्तों में होने वाले मेेंटल टॉर्चर यानी इमोशनल डंपिंग से बचें.
  • ताने मारना, कोसना, बार-बार बेमतलब ग़लत ठहराना जैसे इमोशनल अत्याचार को बढ़ावा न दें. इसी से रिश्तों में भावनात्मक शोषण की शुरुआत होती है.
  • एक-दूसरे की बातों को अनदेखा न करें, बल्कि तवज्जो दें. केवल अपनी ही बातें न मनवाते रहें, साथी की आपबीती को जानने में भी दिलचस्पी दिखाएं.
  • छोटी-छोटी बातोें पर ईगो के कारण लड़ाई-झगड़े न करें. इससे इमोशनली डैमेज होेने के सिवा कुछ हासिल नहीं होता. क्यों न कुछ तुम कहो, कुछ हम सुनें, कुछ तुम झुको कुछ हम संभलें… वाला फॉमूर्ला अपनाएं.
  • जज़्बात को नियंत्रण में रखने के लिए योग-प्राणायाम, मेडिटेशन करें.

वैसे भी यह मानी हुई बात है कि हर जगह पर मटैरिलिस्टिक होने की ज़रूरत नहीं पड़ती. कई बार पार्टनर का प्यारभरा साथ, एहसास और प्रतिक्रियाएं भी काफ़ी होती है. पार्टनर को यह समझना होगा कि इमोशनल होना अच्छी बात है, किंतु प्यार में छोटी-छोटी बात पर ब्लैकमेलिंग करना, बिना साथी की भावनाओं को समझे उसे हर्ट करते जाना, अपनी पसंद व इच्छाओं को अधिक महत्व देना आदि रिश्तों में साइलेंट किलर का काम करती हैं, जो वर्तमान में तो दिखाई नहीं देती, लेकिन आगे चलकर रिश्तों के बिखरने की वजह बन जाती हैं.

- ऊषा गुप्ता

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